क्या जाटों को दरकिनार करने का फॉर्मूला हरियाणा में BJP को तीसरी बार सत्‍ता में ला सकेगा ?

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लोकसभा चुनाव में हरियाणा की आधी सीटें हार जाने वाली भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए कमर कस रही है. हरियाणा में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. शायद यही कारण है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले एक पखवाड़े में राज्य के दो दौरे कर चुके हैं. अपने दोनों ही दौरों में उन्होंने राज्य के पिछड़े समुदाय के लिए तमाम घोषणाएं की हैं. 29 जून की पंचकुला यात्रा के दौरान शाह ने घोषणा की थी कि नवनियुक्त मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं, के ही नेतृत्व में हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. यानी कि अगर बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतती है तो प्रदेश के सीएम नायब सिंह सैनी ही बनेंगे. मंगलवार को एक बार फिर हरियाणा पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने महेंद्रगढ़ में पिछड़ा वर्ग सम्मान सम्मेलन में क्रीमी लेयर कैप और स्थानीय निकायों में बढ़े हुए कोटा की घोषणा करके पिछड़ों का दिल जीतने की कोशिश की है. पर सवाल यह है कि क्या जाटों को दरकिनार करके हरियाणा में एक बार फिर वापसी करने का बीजेपी का सपना पूरा हो पाएगा?

एंटी जाट सेंटिमेंट पैदा करने की कोशिश

एक ब्राह्मण मोहन लाल बड़ौली को हरियाणा बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने संकेत दे दिया था कि बीजेपी एंटी जाट सेंटिमेंट पैदा करके हरियाणा का चुनाव जीतना चाहती है. दरअसल राजनीतिक प्रेक्षकों को उम्मीद थी कि भारतीय जनता पार्टी ने चूंकि मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से बना दिया है तो प्रदेश अध्यक्ष पर जरूर किसी जाट की नियुक्ति होगी. पर बीजेपी ने ऐसा नहीं किया. 8 से 10 परसेंट ब्राह्मणों को 22 से 25 प्रतिशत जाट मतदाताओं से ज्यादा तरजीह देने का मतलब था कि पार्टी दूसरा गेम खेल रही है.

हरियाणा में लगातार करीब 10 वर्षों से गैर जाट सीएम है. यही नहीं केंद्र में बनी नई सरकार में भी जाटों का ध्यान नहीं रखा गया. मंत्रिमंडल में भी हरियाणा से जिन तीन लोगों को मंत्री बनाया गया है, उनमेंएक भी जाट नहीं है- मनोहरलाल खट्टर (पंजाबी), कृष्णपाल सिंह (गुर्जर), राव इंद्रजीत (अहीर). जबकि इसके पहले हमेशा जाटों को प्रतिनिधित्व मिलता रहा है.महिला पहलवानों के आंदोलन, किसान आंदोलन आदि के चलते जाट समुदाय के बीच बीजेपी का ग्राफ काफी नीचे गया है. इसी का नतीजा रहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान कई ऐसी खबरें आईं कि बीजेपी नेताओं को जाट बहुल गांवों में घुसने नहीं दिया गया. जाहिर है कि ऐसे समय में उम्मीद की जा रही थी कि सरकार जाटों को मनाने के लिए उनका विशेष ध्यान रखेगी. पर बीजेपी ने किया इसका ठीक उलटा. हरियाणा की राजनीति पर पिछले 20 सालों से नजर रख रहे पत्रकार अजय दीप लाठर का कहना है कि बीजेपी की रणनीति है कि हरियाणा में जाटों को छोड़कर सबको इकट्ठा कर लिया जाए. हरियाणा में जाटों से सभी जातियां प्रतिस्पर्धा रखती रही हैं. पंजाबी, पिछड़ा वर्ग, ब्राह्मण और बनिया को मिलाकर बीजेपी हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आने का सपना देख रही है.

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क्या एंटी जाट वोटों से काम बन जाएगा बीजेपी का?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लगभग 30% आबादी ओबीसी समुदाय की है. इसके बाद दूसरे नंबर पर लगभग 25% के करीब जाट और लगभग 20% अनुसूचित जाति (एससी) हैं. लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने का लक्ष्य रखते हुए भाजपा ने ओबीसी को रियायतें प्रदान करने की झड़ी लगा दी है. भाजपा नेताओं का मानना है कि जाट वोट आपस में बंट जाएंगे. भाजपा ने मार्च में दुष्यन्त चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी से नाता तोड़ लिया. बीजेपी नेताओं का अनुमान है कि जाट वोट भूपिंदर हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस और अभय चौटाला के नेतृत्व वाले इंडियन नेशनल लोक दल के बीच विभाजित हो जाएंगे. भाजपा नेताओं का मानना ​​है कि अन्य समुदायों को एकजुट करना अधिक विवेकपूर्ण रणनीति है. बीजेपी के लिए अन्य सभी समुदायों को एकजुट करना राजनीतिक रूप से फायदेमंद होगा, क्योंकि सरकार बनाने के लिए बीजेपी को कुल वोटों का सिर्फ 38-40% वोट चाहिए. जो ओबीसी , ब्राह्मण , पंजाबी और बनिया मिलाकर ज्यादा ही होते हैं.

पर आसान नहीं है बीजेपी की राह, 40 सीटों पर जाट वोटर्स प्रभावी

हरियाणा में ऐसा माना जाता रहा है कि जाटों की आबादी 25 प्रतिशत के करीब है. इसके साथ ही राजनीतिक रूप से जागरूक और दबंग होने के चलते वो अन्य जातियों पर भारी पड़ते हैं. इसलिए ऐसा माना जाता रहा है कि हरियाणा में जाटों को साधकर ही कोई पार्टी सरकार बना सकती है. इसके साथ ही आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 40 पर जाट वोटर्स प्रभावी है. जाट किस कदर प्रदेश की राजनीति पर हावी है इसकी एक मिसाल यह है कि 33 साल प्रदेश की कुर्सी जाटों के हाथ में रही है. बीजेपी से जाटों की नाराजगी की एक वजह यह भी रही है कि पार्टी ने प्रदेश में गैर जाट सीएम बनाया. इसके बावजूद कुछ जाट बीजेपी के साथ हमेशा रहे.इसका कारण बीजेपी की अलग नीति और विकासवादी सोच थी. माना जाता है कि 2014 में जाटों का 74 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला . 2019 में भी करीब 50 प्रतिशत जाटों ने बीजेपी को वोट दिया. पर अब मामला दूसरा है. हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी लगातार जाटों को इग्नोर कर रही है. अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए फैसले ले रही है. भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने ओबीसी क्रीमी लेयर की वार्षिक आय सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी गई है और पंचायतों, नगर निगमों और नगर पालिकाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ा दिया गया है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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