UP में संगठन बड़ा है या सरकार? योगी बनाम मौर्य विवाद से क्या निकल कर आया?

4 1 44
Read Time5 Minute, 17 Second

योगी आदित्यनाथ नये मिशन में पूरे मनोयोग से जुट गये हैं. यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए टीम बनाकर सभी की जिम्मेदारी तय कर दी है. खास बात ये है कि डिप्टी सीएम केशव मौर्य को न टीम में जगह दी है, न जिम्मेदारी. केशव मौर्य के साथ साथ दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को भी नई जिम्मेदारी से वंचित रखा है.

केशव प्रसाद मौर्य भी दिल्ली से लखनऊ लौट चुके हैं. एयरपोर्ट से निकलने के बाद मुस्कुराते हुए ही सबसे मुखातिब हुए, लेकिन मीडिया से दूरी बनाते हुए चुपचाप घर निकल गये. खबरें तो आने ही लगी थीं, केशव प्रसाद मौर्य के साथ यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को भी ऊपर से हिदायत मिली है कि ऐसा कोई काम न करें जिससे कार्यकर्ताओं के मनोबल और संगठन के साथ साथ सरकार पर असर आये. केशव प्रसाद मौर्य का एयरपोर्ट से चुपचाप घर चले जाना भी इसी बात का सबूत है.

उप चुनावों को जीतने में योगी आदित्यनाथ वैसे ही जुटे हैं, जैसे 2019 के आम चुनाव में 2018 के उपचुनावों में हारी हुई सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दिये थे. 2018 में बीजेपी गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीटों पर हुए सभी उप चुनाव बीजेपी हार गई थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ नें साल भर बाद ही हिसाब बराबर कर लिया था - हालांकि, 2024 के उपचुनाव उतने आसान नहीं हैं.

Advertisement

बाकी यूपी की राजनीति में समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव भी खासे एक्टिव हैं, और बीजेपी में कुछ दिनों से मची हलचल पर नजर भी रखे हुए हैं. सोशल मीडिया के जरिये कभी हमला तो कभी कटाक्ष कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी की तरफ से केशव प्रसाद मौर्य ने ही जवाब दे दिया है कि 2017 में भी बीजेपी 2017 दोहराएगी - योगी आदित्यनाथ को भला और क्या चाहिये?

क्या यूपी में संगठन पर 'सरकार' भारी है?

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सक्रियता का तो कोई असर नहीं हुआ, लेकिन सरकार से बड़ा संगठन वाला उनका बयान वायरल हो गया - और यूपी बीजेपी की राजनीति में एक बार फिर बहस छिड़ गई - सरकार बड़ी है, या संगठन बड़ा है? और इस बहस में निशाने पर थे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ.

योगी आदित्यनाथ न संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, न कभी बीजेपी के कार्यकर्ता रहे. गोरखपुर के मठ में आने के बाद महंत बने और सियासत भी विरासत में मिली. गोरखपुर से सांसद बने, और भी बनते ही रहे.

योगी आदित्यनाथ जब पहली बार सांसद बने तो केंद्र में एनडीए की सरकार बन गई थी, और जब पांचवी बार संसद पहुंचे तो फिर से एनडीए की केंद्र की सत्ता में वापसी हो चुकी थी. पांच बार सांसद होकर भी एनडीए की किसी भी सरकार में कैबिनेट मंत्री कौन कहे, योगी आदित्यनाथ को राज्य मंत्री भी नहीं बनाया गया. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में सैयद शाहनवाज हुसैन सबसे युवा मंत्री के रूप में मशहूर हुए थे, जबकि वो योगी आदित्यनाथ के साल भर बाद संसद पहुंचे थे.

Advertisement

योगी आदित्यनाथ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसलिए पसंद करता है क्योंकि वो संघ के हिंदुत्व के एजेंडे में सीधे सीधे फिट हो जाते हैं. बीजेपी नेतृत्व को भी पता है कि योगी आदित्यनाथ के हटने के बाद यूपी में सत्ता बरकरार रखना मुश्किल हो जाएगा - खासकर मौजूदा माहौल में तो नामुमकिन भी माना जा सकता है.

और बीजेपी के यूपी की सत्ता से बाहर होने का मतलब, केंद्र सरकार पर सीधा असर - क्योंकि यूपी जितनी बड़ी तादाद में सांसद किसी और राज्य से नहीं आते. और वो टोटका भी तो है कि प्रधानमंत्री पद का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है.

हाल की उथलपुथल के बाद एक बार फिर साबित हो गया है कि यूपी में बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ का कोई विकल्प नहीं है - और यही वजह है कि यूपी में संगठन पर सरकार भारी है.

क्या ये योगी की एनकाउंटर पॉलिटिक्स का असर है?

अव्वल तो योगी आदित्यनाथ अपराधियों के एनकाउंटर के लिए पुलिसवालों की पीठ ठोकते रहते हैं, लेकिन कई बार उनकी राजनीति भी एनकाउंटर पॉलिटिक्स की ही झलक मिलती है.

शुरू से ही योगी आदित्यनाथ अपने राजनीतिक विरोधियों से दो-दो हाथ करने को तैयार नजर आते हैं. भले ही बीजेपी नेतृत्व ही उनके रास्ते की बाधा बनने की कोशिश क्यों न कर रहा हो.

Advertisement

योगी आदित्यनाथ को जब भी, जो भी पसंद नहीं रहा, उसका जोरदार विरोध किया. अगर पार्टी फोरम पर संभव न हो सका तो सार्वजनिक विरोध करने लगे. ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं.

1. केशव प्रसाद मौर्य की बगावत बेकार गई

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी के बाद अखिलेश यादव भी पूरे फॉर्म में नजर आ रहे हैं. अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य को यूपी में अपनी सरकार बनाने के लिए मॉनसून ऑफर दिया है. वो ऐसा पहले भी कर चुके हैं.

असल में केशव प्रसाद मौर्य को 2017 में भी यूपी का सीएम बन जाने की पूरी उम्मीद थी. बीजेपी के चुनाव जीत जाने के बाद वो भी मुख्यमंत्री पद की रेस में बने रहे, लेकिन योगी आदित्यनाथ बाजी मार ले गये.

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भी केशव प्रसाद मौर्य अंगड़ाई लेने लगे थे. सरेआम नाराजगी जाहिर करने लगे थे. लेकिन एक दिन संघ के बड़े नेता उनके घर पहुंच गये, बेटे को आशीर्वाद देने, और उस वक्त योगी आदित्यनाथ भी मौजद थे. केशव प्रसाद मौर्य मान गये, और एक बार फिर उनको खामोश कर दिया गया है.

बेशक 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर यूपी में बीजेपी को सत्ता दिलाने वाली टीम का वो नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन 2022 में वो सिराथू से अपना ही चुनाव हार गये, फिर भी बीजेपी ने उनकी डिप्टी सीएम की कुर्सी बरकरार रखी है.

Advertisement

2. 'अति-आत्मविश्वास' वाली नसीहत

वर‍िष्‍ठ पत्रकार कूमी कपूर ने इंड‍ियन एक्‍सप्रेस में ल‍िखा है क‍ि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 35 मौजूदा सांसदों को दोबारा टिकट नहीं देने की सलाह दी थी, ज‍िसे नहीं माना गया - और उनमें से 27 चुनाव हार गये.

तो क्या योगी आदित्यनाथ की सलाह मान ली गई होती तो यूपी में बीजेपी की इतनी बुरी हालत नहीं हुई होती?

क्या यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ बीजेपी के रणनीतिकारों के 'अति-आत्मविश्वास' को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं?

ये भी देखा गया है कि जब जब बीजेपी योगी आदित्यनाथ की बात नहीं मानती, हमेशा ही हार का मुंह देखना पड़ता है. बीते कुछ ऐसा चुनावों के नतीजे देखें तो बिलकुल ऐसा ही लगता है - और एक बार तो योगी आदित्यनाथ ने खुल कर विरोध किया, खुद को साबित भी कर दिया कि वो सब पर भारी हैं.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद गोरखपुर लोकसभा सीट पर 2018 में उप चुनाव हुआ था. बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ला, योगी आदित्यनाथ को पसंद नहीं थे. बीजेपी चुनाव हार गई.

जिस गोरखपुर नगर सीट से योगी आदित्यनाथ फिलहाल विधायक हैं, उस पर 1989 से लगातार शिव प्रताप शुक्ला चुनाव जीतते आ रहे थे. 2002 में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ला को टिकट देने का विरोध किया, बीजेपी की चुनाव समिति ने उनकी बात नहीं मानी.

Advertisement

योगी आदित्यनाथ ने शहर के एक डॉक्टर को मैदान में उतार दिया, और खूब प्रचार किया. बीजेपी उम्मीदवार की हार हुई, डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल चुनाव जीत गये. डॉक्टर अग्रवाल का योगी के साथ अब वो रिश्ता नहीं रहा, फिलहाल वो राज्यसभा सांसद हैं.

3. योगी को बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं

कोविड संकट के बाद दिल्ली से पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को लखनऊ भेजा गया. अरविंद शर्मा ने कामकाज अच्छे से संभाला, लेकिन वो सीधे पीएमओ के संपर्क में होते थे. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद उनके काम की तारीफ भी की थी.

अरविंद शर्मा को मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात हुई, लेकिन योगी आदित्यनाथ राजी नहीं हुए. 2022 में चुनाव जीतकर सरकार बनाने के बाद ही अरविंद शर्मा को यूपी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी - असल में, योगी आदित्यनाथ को किसी भी सूरत में बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं है.

जब नितिन गडकरी बीजेपी के अध्यक्ष हुआ करते थे, तब का भी एक वाकया है. कभी मायावती के करीबी रहे बाबू सिंह कुशवाहा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, लेकिन उनको बीजेपी में शामिल कर लिया गया. बाबू सिंह कुशवाहा को बीजेपी में लिये जाने के विरोध में तो कई नेता थे, लेकिन सबसे जोरदार आवाज योगी आदित्यनाथ की रही.

Advertisement

योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और आर या पार का ऐलान कर दिया, हम इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते कि जिन्हें हत्या का अभियुक्त बनाना चाहिए... उनके प्रति हमदर्दी दुर्भाग्यपूर्ण है... ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद स्थिति है... हमें सोचना पड़ेगा कि ऐसी स्थिति में हम सार्वजनिक जीवन में रहें या राजनीति से अलग हो जाएं.

प्रेस कांफ्रेंस का ऐसा असर हुआ कि उसके बाद बाबू सिंह कुशवाहा को संदेश भेज गया, और उन्होंने खुद ही बीजेपी से अलग होने का ऐलान कर दिया.

तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. योगी आदित्यनाथ की पुरानी हनक और भी मजबूत हुई है - संगठन को समझा दिया है कि 'सरकार' कौन है?

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

अमानतुल्लाह खान की 10 दिन की हिरासत की मांग वाली ED की याचिका पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

News Flash 02 सितंबर 2024

अमानतुल्लाह खान की 10 दिन की हिरासत की मांग वाली ED की याचिका पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Subscribe US Now