RJD को टेंशन दे चुके प्रशांत किशोर क्‍या बिहार में दिखा सकेंगे केजरीवाल जैसा करिश्मा?

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जनसुराज के संयोजक और चुनाव रणनीतिकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी की औपचारिक शुरुआत की घोषणा कर दी है. जैसा कि वो पहले भी कहते रहे हैं कि बिहार में होने वाले 2025 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी मजबूती से जोर आजमाइश करेगी.हाल ही में इसकी घोषणा करते हुए, जन​​सुराज संयोजक ने कहा कि वह पार्टी मामलों को संभालने के लिए 21 नेताओं का एक पैनल बनानेपर विचार कर रहे हैं, और अगले साल के विधानसभा चुनावों में बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. यही नहीं उन्होंने बिहार में 75 मुसलमानों को टिकट देने की बातकर के अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की नींद उड़ा दी है. जाहिर है कि जिस योजनाबद्ध तरीके से वो काम कर रहे हैं उससे उनकी तुलना आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से होना लाजिमी है. पर क्या वो बिहार में वो करिश्‍मादिखा सकेंगे जो अरविंद केजरीवाल नेदिल्ली में दिखाया?

1-आरजेडी का डर बहुत कुछ कहता है

राष्ट्रीय जनता दल इस समय बिहार में सबसे मजबूत दल है. अभी प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में है. हालांकि लोकसभा चुनावों में आरजेडी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी पर अगले विधानसभा चुनावों के लिए उसके हौसले बुलंद है. पिछली बार काफी कम अंतर से प्रदेश में आरजेडी सरकार बनाने से चूक गई थी. प्रशांत किशोर ने जब से प्रदेश में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है तब से पार्टी टेंशन में आ गई है. दरअसल लोकसभा चुनावों के कुछ दिनों पहले RJDके तत्कालीन उपाध्यक्ष अब्दुल माजिद और तत्कालीन महासचिव रियाज अंसारी प्रशांत किशोर की जनसुराज में शामिल हो गए थे. ये तब की बात बात है जब जनसुराजराजनीतिक दल का रूप अख्तियार भी नहीं कर सका था.

मुसलमानों में जनसुराज की लोकप्रियता को देखते हुए आरजेडी के बड़े नेता डरे हुए हैं कि कहीं लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में भी खेला न हो जाए. इसी बीच सोशल मीडिया पर आरजेडीप्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का एक कथित पत्र खूब शेयर किया गया, जिसमेंउन्होंने पीके की जनसुराज को बीजेपी की बी-टीम बताया और कार्यकर्ताओं से पीके के अभियान में शामिल नहीं होने की अपील की. जगदानंद के लेटर वायरल होने के एक दिन बाद पीके ने मुसलमानों को 75 टिकट देने का ऐलान कर दिया है. जाहिर है प्रशांतकिशोर का यह दांव आरजेडी पर भारी पड़ने वाला है. क्योंकि लोकसभा चुनावों में पार्टी ने मुसलमानों को टिकट देने से दूरी बनाई थी. अब अगर जनसुराज 75 टिकट देने की बात कर रहा है तो जाहिर टिकट मिलने की संभावना ज्यादा होगी. हो सकता है कि विधानसभा चुनाव आने तक टिकट की उम्मीद में आरजेडी के मुस्लिम नेताओं के और विकेट गिरें.

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2- बिहार में खाली है राजनीतिक स्पेस

बिहार राजनीतिक रूप से नेतृत्व विहीन हो रहा है. कभी बिहार के नेता पूरे देश को नेतृत्व दे रहे थे. लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, जार्ज फर्नाडिस, शरद यादव वाली राजनीतिक पीढ़ी अब अवसान की ओर है.इनकी जगह लेने वाले नेताओं में इतनी कूवत भी नहीं है कि वो अपने राज्य को ही लीड कर सकें. तेजस्वी का तेज अपने पिता के बल पर है. बिहार बीजेपी अभी भी नेतृत्व न मिलने के चलते बुजर्ग नीतीश कुमार के सहारे कदमताल कररहा है . प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा में इतनी ताकत भी नहीं है कि अधिक एमएलए होने के बावजूद नीतीश कुमार को हटाने का दम भर सकें.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी अंतिम राजनीतिक पारी खेल रहे हैं. पिछले चुनावों में उन्होंने खुद अपना अंतिम चुनाव कहकर जनता से वोट मांगा था. ये अलग बात है कि कुर्सी का मोह छुड़ाए भी नहीं छूटता है. रामविलास पासवान की असमय मृत्यु होने के बाद उनके बेटे चिराग पासवान अभी भी पासवान वोटों के बल पर ही राजनीति कर रहे हैं. बाकी जितने भी दल बिहार में हैं उनकी अपनी जाति के लोगों में ही सिर्फ पहचान है. प्रशांत किशोर राजनीति का नया ककहरा लोगों को बता रहे हैं. किशोर के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि पाने के लिए पूरा बिहार है.

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3-अरविंद केजरीवाल की तरह से धीरे-धीरे जमा रहे हैं जड़

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को भारी जीत दिलाने के तुरंत बाद, किशोर ने घोषणा की थी कि वह चुनावी रणनीतिकार के काम से दूर हो रहे हैं और 2 अक्टूबर, 2022 से शुरू होने वाली यात्रा में बिहार के चप्पे चप्पे को नापेंगे. पश्चिम चंपारण से जन सुराज यात्रा शुरू करने के बाद से, किशोर का दावा है कि उन्होंने 5,000 किमी से अधिक की दूरी तय की है. 14 जिलों से पैदल यात्रा की और अन्य 10 जिलों की यात्रा कार से की. यही नहीं उन्होंने इस दौरे में सामाजिक और क्षेत्रीय संरचना को ध्यान में रखते हुए जमीनी स्तर के नेताओं का एक समूह तैयार किया.इस बीच उन्हे हर फील्ड , हर समुदाय से समर्थन मिलता रहा. करीब हर पार्टियों के लोग उनकी पार्टी से जुड़े हैं. जनसुराज को लेकर लोगों में वैसी उत्सुकता है जैसे कभी दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लेकर हुआ करती थी. दिल्ली और पंजाब में जिन लोगों ने आम आदमी पार्टी की सफलता देखा है उन्हें कोई ताज्जुब नहीं होगा कि अगले विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की पार्टी एक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में उभर जाए.

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4- प्रशांत किशोर की जाति सबसे बड़ी रुकावट

बिहार में प्रशांत किशोर का राजनीति में पहला प्रवेश जेडीयू के रास्ते हुआ. पार्टी में शामिल होने के तुरंत बाद नीतीश कुमार ने उन्हें एक वरिष्ठ पद पर नियुक्त किया था.हालांकि जल्द ही किशोर को एहसास हुआ कि नीतीश कुमार की जाति की राजनीति में वो कहीं से फिट नहीं बैठते हैं.किशोर को पता है कि ऊंची जाति के ब्राह्मण के रूप में उनकी अपनी जाति की पहचान और खुद को एक नेता के रूप में अत्यधिक प्रचारित करने से चीजें शुरू होने से पहले ही खराब हो सकती हैं. इसलिए ही वो जाति धर्म से ऊपर उठकर राजनीति करने की बात करते हैं. अभी बिहार में जितनी भी पार्टियां सभी किसी न किसी जाति और धर्म को लेकर थोड़ा झुकाव रखतीं हैं. इस स्थिति में ये हो सकता है कि आम आदमी पार्टी की तरह जनसुराज को लोगों का समर्थन मिल जाए.हालांकि किशोर ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण को राजनीतिक स्टंट बता चुके हैं. वो कहते हैं कि नीतीश ने इस विषय पर अपना अभियान चलाया जब वह इंडिया ब्लॉक के साथ थे लेकिन बाद में एनडीए में शामिल हो गए. चाहे राजद हो या जेडीयू, ये पार्टियां पिछले तीन दशकों से लोगों की आंखों में धूल झोंकती रही हैं. उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि ओबीसी, ईबीसी और एससी की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ है? इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि प्रशांत किशोर की ये बातें लोगों को अच्छी लग रही हैं.

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5- आरजेडी और जेडीयू के सबसे बड़े विरोधी बनकर उभरे

प्रशांत किशोर लगातार हैं लालू यादव पर हमला करते रहे हैं. जन सुराज पदयात्रा के दौरान किशोर सबसे ज्यादा हमलावर लालू परिवार पर ही रहे हैं. हालांकि नीतीश कुमार और बीजेपी भी उनके टार्गेट पर रहते हैं. पर सबसे ज्यादा हमले वो आरजेडी पर ही करते हैं. तेजस्वी यादव के लिए उनके मुंह से हमेशा नौंवी फेल नेता ही निकलता रहा है. उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान एक बार कहा था कि बिहार में राजनीतिक दलों के नेता कितने बड़बोले हैं, उन्होंने बिहार की सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी आरजेडी का जिक्र करते हुए कहा था कि जिस पार्टी का एक भी सांसद नहीं हैं, वो लोग बता रहे हैं कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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