बीता वीकेंड चंद्रबाबू नायडू के लिए काफी अहम रहा. तेलंगाना पहुंचने पर बेगमपेट के पुराने हैदराबाद हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही बड़ी संख्या में तेलुगु देशम कार्यकर्ताओं ने उनका भव्य स्वागत किया. हवाई अड्डे से जुबली हिल्स में उनके निवास तक का रास्ता पार्टी के पीले रंग में रंगा हुआ था, जिस पर बैनर, पोस्टर और टीडीपी के झंडे लगे हुए थे. यह ऐसा दृश्य था जो 90 के दशक की याद दिलाता है, जब पार्टी संयुक्त आंध्र प्रदेश में खासा दखल रखती थी.
दूसरे दिन नायडू हैदराबाद में अपने धुर विरोधी के चंद्रशेखर राव द्वारा बनवाए गए प्रजा भवन के अंदर रेवंत रेड्डी के साथ दिखे. ये दोनों ऐसे नेता थे जिन्हें केसीआर ने 2015 में निशाना बनाया था. तब केसीआर ने रेवंत रेड्डी को कैश-फॉर-वोट कांड में 30 दिनों के लिए जेल भेज दिया था, जिसमें उन पर एमएलसी चुनाव में टीडीपी को वोट देने के लिए एक निर्दलीय विधायक को रिश्वत देने का आरोप था. वहीं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा लगातार परेशान करने के बाद नायडू के लिए हैदराबाद से काम करना मुश्किल कर दिया था और इसकी वजह से उन्होंने अमरावती में अपना ठिकाना बना लिया.
नायडू देख रहे हैं तेलंगाना में अवसर
2019 में, केसीआर ने खुले तौर पर वाईएस जगनमोहन रेड्डी का समर्थन किया और नायडू को "रिटर्न गिफ्ट" देने की बात कही. आज हालात बिल्कुल उलट गए हैं. केसीआर अपनी पार्टी को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जबकि रेड्डी और नायडू दोनों सत्ता में हैं और सुर्खियों में बने हुए हैं.
तीसरे दिन नायडू हैदराबाद में एनटीआर भवन स्थित अपने दफ्तर पहुंचे तो पुरानी यादें ताजा हो गईं. तेलंगाना में टीडीपी के सभी कार्यकर्ता लंबे समय से मायूस हैं, क्योंकि अधिकांश प्रमुख नेता पार्टी छोड़कर बीआरएस में शामिल हो गए थे. जो कुछ लोग पार्टी में बने रहे वह भी पार्टी के फिर से उत्थान की उम्मीद तब खो बैठे जब नायडू ने 2023 के विधानसभा चुनाव लड़ने से भी इनकार कर दिया था.
आंध्र प्रदेश में पार्टी की शानदार जीत और रेड्डी के बीआरएस को खत्म करने के दृढ़ संकल्प के साथ, नायडू अब तेलंगाना में एक क्षेत्रीय ताकत के लिए अवसर देख रहे हैं. लेकिन यहां पार्टी को फिर से स्थापित करने के लिए उन्हें काफी चुनौतीपूर्ण कार्य करना होगा क्योंकि पार्टी पिछले कुछ वर्षों से आईसीयू में है.
जब नायडू अपने वापस आंध्रा जाएंगे तो क्या वह तेलंगाना के गिलास को आधा भरा हुआ या आधा खाली देखेंगे? अधिक संभावना है कि पूरी तरह से खाली देखें. लेकिन इससे नायडू को नए सिरे से शुरुआत करने का मौका भी मिलता है. 2025 में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनावों के माध्यम से नायडू तेलंगाना के सियासी मैदान में उतर सकते हैं और उस वोटबैंक को भुनाने की कोशिश कर सकते हैं, जो अभी भी शहर के विकास में उनकी भूमिका के बारे में जानता है.
अलग राज्य के मुद्दे पर नायडू से अलग हुए थे तब केसीआर
लेकिन क्या तेलंगाना के लोग भूल जाएंगे कि एक दशक पहले नायडू ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के विभाजन के प्रति एक अनिश्चित रवैया अपनाया था. बीआरएस नायडू को तेलंगाना विरोधी ताकत बताकर उनके इर्द-गिर्द लोगों के बीच ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेगा. 2001 में केसीआर ने टीडीपी इसी वजह से छोड़ी थी क्योंकि उन्हें तेलंगाना के लिए आंदोलन शुरू करना था. उनका मानना था कि संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नायडू तेलंगाना के जिलों के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. दूसरी ओर यह भी है कि तेलंगाना की भावना अब उतनी प्रबल नहीं है जितनी राज्य के गठन के पहले दशक में थी, अन्यथा केसीआर पिछले दिसंबर में चुनाव नहीं हारते.
नवंबर 2023 में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव में पवन कल्याण की जन सेना ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. गठबंधन विफल हो गया. हालांकि, आंध्र में जीत के टॉनिक ने पार्टियों को फिर से मौका देने का जोश दिया है. फैक्ट यह है कि टीडीपी और भाजपा ने पहले भी संयुक्त आंध्र प्रदेश में एक साथ चुनाव लड़ा है, इसलिए कई लोग तेलंगाना में आंध्र को हराने वाले उसी गठबंधन को मैदान में उतारने की संभावना पर विचार कर सकते हैं.
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रेड्डी और नायडू की मुलाकात से क्या मिला
शनिवार को दो तेलुगु राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बहुप्रचारित बैठक में बीआरएस को कुछ शंका भी नजर आ रही है. तमाम प्रचार के बावजूद, बैठक से बहुत कुछ हासिल नहीं ह सका क्योंकि विवादास्पद मुद्दों पर विचार करने के लिए केवल समितियां गठित की गईं है. पार्टी को संदेह है कि यह बीआरएस को कमजोर कर तेलंगाना में टीडीपी को पुनर्जीवित करने की रणनीति का हिस्सा है. कांग्रेस का मानना है कि टीडीपी की वापसी का मतलब होगा कि दोनों क्षेत्रीय दल जगह और प्रासंगिकता के लिए लड़ेंगे, जिससे अंततः त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस को फायदा होगा.
रेवंत रेड्डी न केवल टीडीपी के पूर्व नेता हैं, बल्कि कई पूर्व टीडीपी नेता जिन्होंने बीआरएस में सत्ता के सुख का आनंद लेते हुए काफी समय बिताया, अब कांग्रेस के रंग में रंग गए हैं. इनमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पोचाराम श्रीनिवास रेड्डी और पूर्व उपमुख्यमंत्री कदियम श्रीहरि जैसे नेता शामिल हैं. ग्रेटर हैदराबाद क्षेत्र के कई अन्य विधायक जो अब कथित तौर पर कांग्रेस के साथ बातचीत कर रहे हैं, उनकी जड़ें टीडीपी में हैं.
दोनों राज्यों पर नायडू की नजर
इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि 2014 से पहले के दौर के विपरीत, कांग्रेस और टीडीपी अब तेलुगु राजनीति में मुख्य प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं. टीडीपी का जन्म कांग्रेस विरोधी ताकत के रूप में हुआ था, लेकिन अब कांग्रेस आंध्र प्रदेश में शून्य पर है, जबकि नायडू रेवंत रेड्डी के बजाय केसीआर के साथ हिसाब बराबर करना ज़्यादा पसंद करेंगे. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नायडू हैदराबाद में अपना आधार बनाना चाहेंगे.
आंध्र से तेलंगाना के विभाजन से पहले के दिनों में नायडू तेलंगाना के पक्ष या विपक्ष में कोई रुख़ अपनाने से बचते रहे और इसके लिए वह अक्सर कहते थे कि तेलंगाना और आंध्र उनकी दो आँखों की तरह हैं. दस साल बाद, अब उनकी नज़र दोनों राज्यों पर है.
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