हेमंत सोरेन को हड़बड़ी क्यों थी? चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बने रहने का फायदा उठा सकते थे

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हेमंत सोरेन ने जेल से जमानत पर छूटने के हफ्ते भर के भीतर ही झारखंड की कमान अपने हाथ में ले ली है. लेकिन इसके लिए चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी, वो भी झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 से बमुश्किल दो महीने पहले.

क्या चंपई सोरेन खुद ऐसा करना चाहते थे? क्या हेमंत सोरेन को ही मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी थी? क्या कल्पना सोरेन मुख्यमंत्री की रेस में नहीं थीं?

अगर आपके भी मन में ये सवाल हैं, तो सूत्रों के हवाले से जवाब भी आ रहे हैं, और तीनों सवालों के बिलकुल अलग अलग जवाब मिल रहे हैं, क्योंकि न तो चंपई सोरेन ऐसा करना चाहते थे, न ही हेमंत सोरेन - और हां, मुख्यमंत्री पद की रेस में कल्पना सोरेन भी थीं.

JMM की अंदरूनी राजनीति से इतर देखें तो हेमंत सोरेन की पत्नी और अब गांडेय विधायक कल्पना सोरेन ने सोशल साइट X पर कई पोस्ट लिखा है, वक्त बदलेगा और हम आपके सामने फिर उपस्थित होंगे... हर अन्याय को पता है कि एक दिन उसे न्याय परास्त करेगा... लोकतंत्र की अंततः जीत हुई... 31 जनवरी 2024 से शुरू हुए अन्याय को अब सही मायनों में न्याय मिलने की शुरुआत हुई है.

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अब ये समझना है कि क्या हेमंत सोरेन के इस फैसले से झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए सत्ता में वापसी संभव हो पाएगी? और ये भी समझने की कोशिश होनी चाहिये कि क्या चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बने रहने से हेमंत सोरेन को किसी तरह के नुकसान की आशंका थी?

क्या चंपई सोरेन खुद कुर्सी छोड़ना चाहते थे?

नहीं. जैसे खबरें आ रही हैं, और जो कुछ सुनने को मिल रहा है, ऐसा ही कहा जा सकता है. बल्कि, सूत्रों के हवाले से ये भी खबर आई है कि चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन को समझाने की भी पूरी कोशिश की थी. जब वो सुनने को तैयार नहीं हुए तो अपनी एक बात पर अड़ भी गये, और अपनी बात मनवाई भी.

चंपई सोरेन का मानना था कि महज दो महीने के लिए मुख्यमंत्री बदले जाने से बाहर अच्छा संदेश नहीं जाएगा. चंपई सोरेन की तरफ से ये भी समझाने की कोशिश हुई कि वो भी कोई गये गुजरे नेता तो हैं नहीं, उनका भी अपना अच्छा खासा जनाधार है.

झारखंड के कोल्हन क्षेत्र से आने वाले चंपई सोरेन का इलाके में काफी मजबूत जनाधार है - और इलाके की दर्जन भर से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनका खासा प्रभाव है.

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चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन को ये बोलकर भी समझाने की कोशिश की कि वो अभी अभी जमानत पर छूटे ही हैं. मतलब, ऐसी बात तो नहीं ही है कि वो अदालत से पूरे मामले में बरी कर दिये गये हों - और लगे हाथ ये आशंका भी जाहिर की कि उनके मुख्यमंत्री बनने पर राजनीतिक विरोधी सरकार को डिस्टर्ब करने के अलग अलग हथकंडे आजमा सकते हैं.

लेकिन चंपई सोरेन की बातों का हेमंत सोरेन पर कोई असर नहीं हुआ. सहयोगी दलों की मीटिंग में भी यही बात सामने आई कि कांग्रेस और आरजेडी भी हेमंत सोरेन के ही फिर से कमान संभालने के पक्ष में थे. सहयोगी दलों का कहना था कि 2019 का चुनाव हेमंत के नेतृत्व में ही लड़ा गया था, और एक बार फिर ऐसा ही करना ठीक रहेगा.

एक खास बात और, जो बातों और मुलाकातों के बीच से निकलकर आई है, वो ये कि पहले हेमंत सोरेन ये तो चाहते थे कि चंपई सोरेन कुर्सी छोड़ दें, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वो खुद ही मुख्यमंत्री बनना ही चाहते थे.

हैरानी तो ये जानकर हो रही है कि चंपई सोरेन को हटाकर हेमंत सोरेन खुद नहीं बल्कि पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे थे, लेकिन चंपई सोरेन ये प्रस्ताव मानने को बिलकुल राजी नहीं हुए.

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चंपई सोरेन ने साफ साफ बोल दिया कि हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने से उनको कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कल्पना सोरेन के नाम पर वो कतई तैयार नहीं होंगे - और उसके बाद खुद ही कुर्सी छोड़ देने के लिए हामी भर दी.

ये सब घटनाक्रम इतनी तेजी से बदले हैं, जिसका प्रभाव हेमंत सोरेन के शपथग्रहण में भी देखा जा रहा है. चंपई सोरेन के इस्तीफे के बाद भी बताया जा रहा था कि हेमंत सोरेन 7 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं, लेकिन फिर तीन दिन पहले ही ऐसा करने का फैसला किया हुआ.

असल में हेमंत सोरेन जेल जाने से पहले भी कल्पना को भी कमान सौंपना चाहते थे, लेकिन परिवार में विरोध और पार्टी में सहमति नहीं बन पाने के कारण संभव नहीं हो सका. अब एक बार फिर कोशिश तो भी सहमति नहीं बन पाई, जबकि कल्पना सोरेन चुनाव जीत कर विधायक भी बन चुकी हैं.

कहते हैं, चंपई सोरेन, हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन को बेटे और बेटी जैसा ही मानते हैं. और हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद भी कभी उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. बताते हैं कि हेमंत सोरेन के करीबियों से बातचीत में चंपई सोरेन ने कहा भी कि एक बार भी उन्होंने या किसी ने कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री आवास खाली करने के लिए नहीं बोला होगा. करीब 5 महीने के कार्यकाल के दौरान उनके मुख्यमंत्री आवास में न रहने को लेकर सवाल तो उठा ही होगा.

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खास बात ये भी रही कि चंपई सोरेन का कार्यकाल भी काफी अच्छा रहा है. कभी कोई ऐसी बात नहीं हुई, जो पार्टी या सरकार के खिलाफ जाती हो. उसी दौरान कल्पना सोरेन ने भी मोर्चा संभाला था, विपक्षी रैलियों में शामिल हुईं, और वहां अहमियत भी मिली. जब कल्पना सोरेन के विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला हुआ तो चंपई सोरेन हमेशा पीछे मजबूती के साथ खड़े रहे.

चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बने रहने से फायदा ही होता, नुकसान नहीं

जिस बात की आशंका चंपई सोरेन जता रहे थे, वो तो होना ही है. हेमंत सोरेन के सामने चुनावों में कहीं न कहीं ये सवाल तो उठेगा ही, और कहीं नहीं तो चंपई सोरेन के कोल्हन इलाके में तो लोगों के मन में ये सवाल होगा ही.

और बीजेपी ने तो अभी से सवाल उठाना शुरू कर दिया है. झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने तो बोल दिया है कि ये साफ हो गया है कि सोरेन परिवार से बाहर का कोई आदिवासी नेता ही क्यों न हो, मुख्यमंत्री तो परिवार से ही बनेगा. यानी, बीजेपी ने अभी से परिवारवाद की राजनीति को लेकर हेमंत सोरेन पर हमला बोल दिया है.

फर्ज कीजिये हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बने रहने देते तो क्या निश्चिंत होकर चुनाव कैंपेन पर फोकस नहीं करते. चुनावी रणनीति तैयार करते, घूम घूम कर जोरशोर से चुनाव प्रचार करते - और कोशिश करते कि ज्यादा से ज्यादा सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिलें.

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और अगर चुनाव जीत जाते तो बड़े आराम से मन करता तो खुद या कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बना देते. तब तो शायद ही किसी को आपत्ति होती, या किसी की आपत्ति का कोई मतलब ही होता - चंपई सोरेन की आपत्ति का भी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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