कल्कि 2898 आपको क्यों रोमांचित कर सकती है? मरियम को भी हैविष्णु के दशावतार का इंतजार

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बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान की ब्लॉकबस्टर मूवी जवान और पठान का रिकॉर्ड तोड़ती कल्कि 2898 की आजकल बहुत चर्चा में है.अगर आप सिनेमाप्रेमी हैं तो दक्षिण की 6 भाषाओं में बनी इस मूवी में ऐसा क्या खास है ये आपको भी बेचैन कर रहा होगा.बहुत दिनों बाद कोई ऐसी फिल्म आई है जो पैन इंडिया ही नहीं विदेशों में भी गदर मचाए हुए है. दरअसल हमेशा से विज्ञान और अध्यात्म के बीच संघर्ष चलता रहा है. पर कल्कि की कहानी ऐसी है जहांआपको विज्ञान और अध्यात्म एक साथ हुए गुत्थमगुत्थ होते नजर आएंगे. यही चीज इसफिल्म को खास बना देती है. यही नहीं कल्कि की कहानी हिंदू धर्म को चरमपर ले जाती है. कहां अभी देश में हिंदू राष्ट्र पर जंग मचीहुईहै कहां इस फिल्म की कहानी में खत्म हो चुकी दुनिया को बचाने के लिए विष्णु के दशावतार का इंतजार हो रहा है. जाहिर है कि ऐसी कहानी देखकर आम हिंदुस्तानियों का सीना गर्व से दूना हो रहा होगा. इसके साथ ही इस फिल्म में देखने को मिलता है कि दुनिया के सारे शहर खत्म हो चुके हैं बसहिंदुओं का पवित्र शहर काशी का ही अस्तित्व ही बचा है.काशी के अस्तित्व के बारे मेंबचपन में सुनी कहानियां याद आने लगती हैं.हमें बचपन में ही बताया गया था कि काशीपृथ्वी पर बसा हुआ शहर नहीं है. भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसे उस पुरानी कहानी को जब फिल्म में विस्तार लेते आप देखेंगे तो जरूर रोमांचित होंगे.

आज से करीब आठ सौ साल आगे की कहानी को भारत की पौराणिक कथाओं से जोड़ना आसान नहीं था. महाभारत के युद्ध को आधार बनाकर कहानी का ताना बाना बुना गया है. निश्चित ही आपको यह कहानी बोर कर सकती है. पर फिल्म की खासियत यही है कि कहानी इंप्रेसिव न होने के बावजूद आपके दिलोदिमाग पर छा जाती है. फिल्म के अंतिम क्षणों में जब बिगड़ैल, लापरवाह टाइप का एक युवा अचानक कर्ण की भूमिका में आ जाता है और अश्वत्थामा (अमिताभ बच्चन) से कहता है कि 'देर तो नहीं हो गई आचार्यपुत्र?'.बस इस एक डॉयलॉग के बाद पूरी फिल्म को लेकर आपका नजरिया ही बदल जाएगा.

फिल्म की कहानी में विज्ञान और अध्यात्म की जुड़ी गुत्थियां हो सकता है किसी को हजम न हो. दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें रामायण और महाभारत की कहानियों पर भी भरोसा नहीं होता. पर यहां जो कुछ भी है वह बहुत तार्किक है. फिर वह चाहे विज्ञान हो या धर्म. हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले हर शख्स को पता है कि विष्णु का दशावतार भगवान कल्कि के रूप में होने वाला है. इस तथ्य को फिल्मकार ने अपनी कल्पना से आगे बढ़ाया है. जैसा कि हम जानते हैं कि हर कहानी में एक राम होता है और एक रावण. यानि कि अच्छाई और बुराई के 2 प्रतीक होते हैं . इसी आधार पर दुनिया भर में कहांनियां बनाईं गईं हैं. यहां भी कुछ ऐसा ही है.

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फिल्म के डायरेक्टर नाग अश्विन की इस कहानी का रावण है सुप्रीम यास्किन. जिसका किरदार कमल हासन ने निभाया है. दुनिया खत्म हो चुकी है बस काशी बची है. पर जिस तरह से धरती पर पानी की कमी हो रही है ,प्रदूषण बढ़ रहा है उससे जाहिर है कि 800 सालों बाद नदियां सूख जाएंगी. फिल्म की कहानी में गंगा सूख चुकी है. प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि आक्सीजन मास्क बार बार लगाकर खुद को चार्ज करना पड़ता है. इस बीच यास्किन काशी के ऊपर आकाश में सोने की लंका ( फिल्म में कॉम्लेक्स ) बनाया है. यहां दुनिया के सारे ऐश ओ आराम की सुविधा मौजूद है. इस संसार में वही प्रवेश कर सकता है जिसके पास एक निश्चित संख्या में यूनिट्स (रुपया या डॉलर) हैं. जैसा कि आज भी दुनिया के अमीर देशों में सिटीजनशिप के लिए जरूरी है. फिल्म का हीरो भैरवा जो किराए का लड़ाका है की भी तमन्ना है कि वह किसी तरह एक मिलियन यूनिट्स इकट्ठाकरके कांप्लेक्स की हसीन दुनिया में पहुंच जाए. यह सब इसलिए आपको देखने में अच्छा लग सकता है कि आज से 800 साल बाद जब आप देखेंगे कि दुनिया में विज्ञान कितना तरक्की कर चुका है. उड़ने वाली कारें सामान्य हो चुकी हैं.

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महाभारत काल और रामायण काल में जिस तरह की ताकत उस दौर के योद्धाओं में होती थी वैसी ताकत भैरवा के पास भी है. मगर उसके पीछे कोई सुपर नेचुरल ताकत नहीं है बस विज्ञान है. जैसे वो अपने जूते के बटन को दबाता है तो वह उड़ने लगता है. वो किसी की आकृति का छायाचित्र बनाकर उसे कन्फ्यूज कर सकता है. जैसे वो अपनी छायाचित्र बनाकर दस अवतार में दिख सकता है. अपनी इसी कला के आधार पर वह अश्वत्थामा से मुकाबला करने की कोशिश करता है.

दूसरी तरफ सुपर नेचुरल शक्तियों से लैस अश्वत्थामा भी हैं. जो महाभारत काल से कलियुग 2898 ईयर में भी जिंदा हैं. क्योंकि उन्हें श्रीकृष्ण का श्राप है कि वो अपनी मौत के लिए तरस जाएंगे.जब अश्वत्थामा पश्चाताप करते हैं कृष्ण इस श्राप से मुक्ति का उपाय भी बताते हैं. फिल्म की कहानी में अभी तक विज्ञान और अध्यात्म का अलग अलग रूप देखा. पर सुप्रीम यास्किन जिसकी आयु करीब 200 वर्ष हो चुकी है वो उस भ्रूण को खोज रहा है जिस भ्रूण से भगवान जन्म लेने वाले हैं. यास्किन किसी भी महिला को गर्भवती नहीं होने देता है. कुछ उसी तरह जिस तरह कंस अपनी बहन देवकी से पैदा हुए हर बच्चे को मार डालता है.पर यहां कहानी थोड़ीऔर आगे की दुनिया की है. सुप्रीम यास्किन भगवान को जन्म देने वाली मां के भ्रूण से सुपर शक्तियां हासिल करना चाहता है.यानि विज्ञान और अध्यात्म का मेल हो जाता है. हो सकता है ये सब आपको पसंद न आए पर यह भी संभव है कि यह कहानी बार बार आपको सोचने पर मजबूर करे.

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पुराणों और बौद्ध कथाओं में आपको कल्कि की चर्चा मिलेगी. उस चर्चा के मुताबिक ही शंबाला नामक जगह भी फिल्म में देखने को मिलेगा. धरती के सारे संसाधनों को खत्म करने के जिम्मेदार सुप्रीम यास्किन के खिलाफ संघर्ष के लिए विश्व भर के क्रांतिकारी शंबाला में रहते हैं. शंबाला की अलग दुनिया है जहां पर सभी धर्मों के लोग आपसी भेदभाव भूलकर यास्किन को हराने की तैयारी कर रहे हैं. यहां मस्जिद या चर्च तो नहीं दिखते पर बौद्ध लामा लोग जरूर दिखते हैं. बौद्धों का मणि चक्र (प्रेयर व्हील) भी दिखता है. पर यहां के हर शख्स को विष्णु के दशावतार का इंतजार है. यहां लोगों का नेतृत्व करने वाली महिला का नाम मरियम है.मरियम को भी भरोसा है कि अब कल्कि अवतार का समय आ चुका है. सुप्रीम यास्किन के लोग शंबाला तक पहुंचना चाहते हैं. भगवान को जन्म देने वाली युवती यास्किन के कांप्लेक्स से एक क्रांतिकारी की सहायता से भागने में सफल होती है. उसको बचाने के लिए अश्वत्थामा भी उसके साथ शंबाला पहुंचते हैं. इस बीच यास्किन के लोग भी उसका पीछा करते हुए शंबाला पहुंचते हैं.यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि त्रेता में भगवान का जन्म दशरथ की पत्नी कौशल्या को ऋषियों के दिए फल खाने से होता है. उसी तरह यहां भी भगवान कल्कि का जन्म भी कृत्रिम भ्रूण से प्रेगनेंट हुई लेडी के पेट से होने वाला है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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