अयोध्या में क्यों हारी बीजेपी? कितना हुआ उसका रामभक्तों पर असर? पढ़ें सुधीर चौधरी का ब्लैक एंड व्हाइट विश्लेषण

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अयोध्या की फैजाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार के बाद से लगातार देश में अयोध्या के लोगों की ट्रोलिंग हो रही है और अयोध्या के लोगों को गद्दार तक बताया जा रहा है. कुछ लोग सोशल मीडिया पर ये दावा भी कर रहे हैं कि 4 जून के नतीजों के बाद से अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर सूना पड़ा है और बीजेपी की हार के कारण अब श्रद्धालु राम मन्दिर में दर्शन करने के लिए नहीं आ रहे.

ये भी कहा जा रहा है कि अयोध्या में बीजेपी इसलिए चुनाव हार गई क्योंकि अयोध्या में राम मन्दिर और उससे जुड़े निर्माण कार्यों के लिए हज़ारों मकानों, दुकानों और कुछ मन्दिरों को तोड़ गया था और इसके बदले में किसी को कोई मुआवज़ा नहीं मिला. और इन सारी बातों पर आपने शायद विश्वास भी कर लिया होगा और आपको भी यही लग रहा होगा कि अयोध्या में बीजेपी इसीलिए हारी. लेकिन हकीकत में ये सारे दावे गलत हैं और इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.

सच्चाई ये है कि बीजेपी अयोध्या में नहीं, बल्कि फैजाबाद में चुनाव हारी है. फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें पहली सीट है, अयोध्या, दूसरी है रुदौली, तीसरी है मिल्कीपुर, चौथी है बीकापुर और पांचवीं है दरियाबाद. इन पांच सीटों में सिर्फ अयोध्या की एक सीट ऐसी है, जहां बीजेपी ने समाजवादी पार्टी को चुनाव हराया है और बाकी की चार सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई है.
इससे ये पता चलता है कि जिस अयोध्या नगरी में भगवान श्री राम का मन्दिर बना, उस अयोध्या के लोगों ने तो बीजेपी को चुनाव जिता दिया और वहां बीजेपी को समाजवादी पार्टी से साढ़े चार हज़ार से ज्यादा वोट मिले. लेकिन जो बाकी के चार विधानसभा क्षेत्र थे, वहां बीजेपी को समाजवादी पार्टी से कम वोट मिले, जिसके कारण बीजेपी इस बार फैजाबाद की सीट लगभग 50 हज़ारों वोटों से हार गई.

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इसके अलावा ये दावा भी गलत है कि अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण की वजह से जिन लोगों के मकानों और दुकानों को तोड़ा गया, वो लोग मुआवज़ा नहीं मिलने से बीजेपी से नाराज़ थे, जिसकी वजह से उन्होंने बीजेपी को चुनावों में हरा दिया. सच्चाई ये है कि जिस अयोध्या में मन्दिर, एयरपोर्ट, अस्पताल और सड़कें बनाने के लिए मकानों और दुकानों को तोड़ा गया, वहां तो बीजेपी हारी ही नहीं है. बीजेपी उन विधानसभा क्षेत्रों में हारी, जहां ना तो मन्दिर बना है और ना ही उसकी वजह से किसी का मकान और दुकान तोड़ गई है.

उदाहरण के लिए फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र की जिस दरियाबाद विधानसभा सीट पर बीजेपी 10 हज़ार से ज्यादा वोटों से चुनाव हारी, वो सीट अयोध्या जिले में नहीं बल्कि बाराबंकी ज़िले में आती है. एक और तथ्य ये है कि अयोध्या में मन्दिर, एयरपोर्ट और सड़कों को चौड़ा करने के लिए जिन लोगों के मकानों और दुकानों को तोड़ गया, उन्हें सरकार और प्रशासन की तरफ से 1 हज़ार 253 करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया गया और ये राशि सरकार ने समय से लोगों के बैंक खातों में जमा करा दी थी. ये जानकारी खुद अयोध्या जिले के प्रशासन ने दी है.

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अब समझते हैं कि फैजाबाद में बीजेपी की हार के तीन बड़े और असली कारण क्या रहे?

जातियों में बंटा हिंदू वोटर

अखिलेश यादव इस बात को जानते थे कि उत्तर प्रदेश की बाकी सीटों की तरह फैजाबाद में भी हिन्दुओं को जातियों में विभाजित किए बिना चुनावों को नहीं जीता जा सकता और इसीलिए उन्होंने इस गैर आरक्षित सीट से अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया, जो दलित हैं और पासी समुदाय से आते हैं. फैजाबाद में कुल 18 लाख वोटर हैं, जिनमें से 26 फीसदी दलित हैं और इनमें भी पासी समुदाय के लोगों की संख्या 3 लाख से ज्यादा है.

इसके अलावा इस सीट पर 14 पर्सेंट मुस्लिम और 12 पर्सेंट यादव हैं और इन्हीं सारी जातियों को देखकर अखिलेश यादव ने अवधेश प्रसाद को यहां से चुनाव लड़ाया और ये नारा भी दिया कि ''ना अयोध्या, ना काशी, अबकी बार अवधेश पासी'' और जातियों की इसी सोशल इंजीनियरिंग के कारण बीजेपी फैजाबाद में चुनाव हार गई.

लल्लू सिंह के ख़िलाफ़ ANTI INCUMBENCY

लल्लू सिंह इस सीट से वर्ष 2014 और 2019 में दो बार चुनाव जीत चुके थे और इस बार उनके ख़िलाफ़ लोगों में काफी नाराज़गी थी और स्थानीय नेता चाहते थे कि इस बार बीजेपी इस सीट से अपने उम्मीदवार को बदले लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ANTI INCUMBENCY के कारण लल्लू सिंह यहां से चुनाव हार गए और क्योंकि लल्लू सिंह की तुलना में समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद एक मजबूत उम्मीदवार थे और वो 9 बार के विधायक भी रह चुके हैं, इसलिए इस मुश्किल सीट पर उनकी जीत सम्भव हो गई.

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संविधान बदलने का मुद्दा

इस हार का तीसरा बड़ा कारण ये रहा कि लल्लू सिंह ने ही चुनावों में ये बयान दिया था कि बीजेपी को संविधान बदलने के लिए 400 सीटें चाहिए, जिससे चुनावों में बीजेपी को नुकसान हुआ और विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और ये कहा कि बीजेपी अगर चुनाव जीती तो वो संविधान बदलकर आरक्षण खत्म कर देगी और इसी मुद्दे से पिछड़े और दलितों के वोट बीजेपी से अलग हो गए.

सोशल मीडिया पर लगातार दावा किया जा रहा है कि 4 जून के नतीजों के बाद से अयोध्या में भगवान श्रीराम का मन्दिर सूना पड़ा है और लोग अयोध्यावासियों से इतने निराश हैं कि वो राम मन्दिर में दर्शन करने के लिए नहीं आ रहे हैं, लेकिन हकीकत में ये दावा भी पूरी तरह से गलत है. भीषण गर्मी और खतरनाक लू के बावजूद 1 जून से 12 जून के बीच 7 लाख 36 हज़ार श्रद्धालु अयोध्या में राम मन्दिर के दर्शन करने के लिए आ चुके हैं और ये आंकड़े पिछले महीने आए श्रद्धालुओं की संख्या के ही बराबर हैं.

पिछले महीने 15 दिन में लगभग 8 लाख श्रद्धालुओं ने राम मन्दिर के दर्शन किए थे और इस बार 12 दिनों में 7 लाख 36 हज़ार श्रद्धालु वहां आ चुके हैं और अब भी शनिवार और रविवार को छुट्टी वाले दिन हर रोज़ एक लाख से ज्यादा और बाकी दिनों में 50 हजार श्रद्धालु राम मन्दिर के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं.

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और ये भीड़ इस बात का सबूत है कि लोगों को राजनीति से कोई लेना देना नहीं है और वो अब भी अपने आराध्य भगवान श्री राम के मन्दिर में उनकी भक्ति करने के लिए आ रहे हैं और गर्मी की वजह से मई के आखिरी हफ्ते में कुछ श्रद्धालुओं की संख्या घटना शुरू हुई थी, लेकिन इसका चुनावों से कोई संबंध नहीं है और अब भी राम मन्दिर में भक्तों की भीड़ लगी हुई है.

कहने का मतलब यही है कि अब अयोध्यावासियों की ट्रोलिंग बंद होनी चाहिए और उनके ख़िलाफ़ ये जो माहौल बनाया जा रहा है और उन्हें बदनाम किया जा रहा है, वो सही नहीं है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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