चंद्रबाबू नायडू ने चौथी बार संभाली आंध्र प्रदेश की कमान, जानें- पहले के मुकाबले कितनी अलग हैं चुनौतियां?

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घटना 1989 की है, जब जे जयललिता बिखरे बाल, फटी साड़ी और आंखों में आंसू लिए तमिलनाडु विधानसभा से बाहर निकलीं. उन्होंने द्रमुक विधायकों पर उन पर हमला करने का आरोप लगाया और कसम खाई कि जब तक उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, जो मुख्यमंत्री के रूप में एम करुणानिधि के अधीन सत्ता में थे, हार नहीं जाते, तब तक वह सदन में वापस नहीं आएंगी. साल 1991 में जयललिता ने विजयी होकर अपना वादा निभाया और डीएमके की हार हुई.

पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में इतिहास ने खुद को दोहराया है. नवंबर 2021 में, चंद्रबाबू नायडू को विधानसभा के अंदर तत्कालीन सत्तारूढ़ दल वाईएसआरसीपी के विधायकों द्वारा अपमानित किया गया था. नायडू ने इस घटना को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था. उन्होंने दावा किया कि वाईएसआरसीपी विधायकों ने उनकी पत्नी भुवनेश्वरी के बारे में व्यक्तिगत टिप्पणियां की थीं और वह रो पड़े थे.

चंद्रबाबू नायडू ने उस दिन आंध्र प्रदेश विधानसभा में हुई घटना की तुलना 'कौरवों की सभा' ​​से की थी, जिसमें द्रौपदी का चीरहरण किया गया था. उन्होंने 2024 में सत्ता में आने तक विधानसभा में कदम नहीं रखने की कसम खाई. नायडू अब विजयी होकर सत्ता में लौट आए हैं, जबकि उस दिन उनका अपमान करने वालों में से अधिकांश को मतदाताओं ने खारिज कर दिया है.

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हालांकि, 2024 की जीत और मुख्यमंत्री के रूप में चंद्रबाबू नायडू की पिछली पारियों के बीच अंतर यह है कि उन्हें इतना बड़ा जनादेश कभी नहीं मिला है. इस बार आंध्र प्रदेश विधानसभा में 93 प्रतिशत ​सदस्य सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए के हैं. एनडीए को आंध्र ने इतना बड़ा जनादेश दिया है कि जगन मोहन रेड्डी को केवल 11 विधायकों के साथ विपक्ष के नेता का दर्जा भी नहीं मिलेगा. नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए सदन की कुल ताकत का कम से कम 10 प्रतिशत होना चाहिए जो कि आंध्र प्रदेश के मामले में 18 विधायक होते हैं.

प्रचंड जनादेश प्राप्त करना किसी भी राजनेता के लिए एक अच्छा अनुभव होता है, लेकिन यह 74 वर्षीय नायडू के कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी भी लेकर आया है. वेलफेयर एजेंडे और राज्य के विकास दोनों के संदर्भ में बहुत कुछ वादा किया गया है. 2019 और 2024 के नतीजों को देखने के बाद नायडू जानते हैं कि आंध्र की जनता बहुत डिमांडिंग है. उन्हें एक ब्लॉकबस्टर प्रदर्शन से कम की उम्मीद नहीं है. यही कारण है कि नायडू 4.0 को एक अलग चंद्रबाबू की जरूरत है, न कि उसी पुरानी स्क्रिप्ट पर चलने वाले की.

'चंद्रबाबू नायडू रिटर्न्स' एक सीक्वल है, लेकिन नायडू ने बदलाव के पहले कदम के रूप में एक नई कास्ट पर फोकस किया है. उन्होंने अतीत की टीडीपी सरकारों में मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे चेहरों को दोहराने के बजाय कई युवा विधायकों को पर भरोसा दिखाया है. उन्हें कन्ना लक्ष्मीनारायण, जी बुचैया चौधरी, कोनाथला रामकृष्ण, सोमिरेड्डी चंद्रमोहन रेड्डी, अय्याना पात्रुडु जैसे वरिष्ठों को मनाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे, जिनके पास कैबिनेट से बाहर किए जाने पर नाराज होने की वजह है. वहीं, 9 नए चेहरों को कैबिनेट में शामिल करने से सरकार में एक नयापन दिखेगा.

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नायडू ने बदला लेने के बजाय पुनर्निर्माण, विध्वंस के बजाय विकास को अपनाने का विकल्प चुना है. इसका एक उदाहरण स्कूली बच्चों को जगन की तस्वीर वाले किट के वितरण को हरी झंडी देने का उनका निर्णय है, क्योंकि शैक्षणिक वर्ष गुरुवार से शुरू होने वाला है. नायडू के इस फैसले का मतलब होगा कि आंध्र प्रदेश सरकार को स्कूल किट बदलने में अधिक पैसा खर्च नहीं करना होगा, जिनमें स्कूल बैग, ड्रेस, जूते और अन्य स्टेशनरी शामिल हैं.

इस निर्णय के साथ, चंद्रबाबू नायडू यह दिखाना चाहते हैं कि वह जगन मोहन रेड्डी के नक्शेकदम पर चलने के इच्छुक नहीं हैं, जिनका 2019 में पहला निर्णय 8.9 करोड़ रुपये की लागत से पिछली सरकार द्वारा बनाए गए कन्वेंशन हॉल, प्रजा वेदिका के निर्माण में अवैधताओं का हवाला देते हुए ध्वस्त करने का आदेश देना था. नायडू अपने इस कार्यकाल में पोलावरम सिंचाई परियोजना और अमरावती को राजधानी के रूप में विकसित करने पर पूरा फोकस करेंगे. यह निर्माणाधीन शहर पिछले पांच वर्षों में एक सुनसान से इलाके (ghost town) में बदल गया था.

उनके सामने अमरावती को एक जीवंत शहर में बदलने की चुनौती होगी और शहर की अर्थव्यवस्था को गति देकर दुनिया को यह संकेत देने की होगी कि आंध्र का मतलब श्रृजन है, विध्वंस नहीं. लेकिन अमरावती को दुनिया के सामने पेश करते समय नायडू को वह गलती नहीं करनी चाहिए जो उन्होंने 1995 से 2004 के बीच सीएम के रूप में अपने पहले दो कार्यकाल के दौरान हैदराबाद में या 2014-19 के बीच अमरावती में की थी. दोनों अवसरों पर, उनका ध्यान अत्यधिक केन्द्रीकृत था, जिसके कारण अन्य जिले उपेक्षित महसूस करने लगे.

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अब, उन्हें विशेष रूप से प्रत्येक जिले को अलग-अलग प्रकार के निवेशकों के लिए अलग-अलग तरीके से शोकेस करना चाहिए ताकि अमरावती का आकर्षण बना रहे और अन्य जिले अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ एक आकर्षक इंवेस्टमेंट डेस्टिनेशन बन सकें. नायडू ने घोषणा की है कि विशाखापत्तनम आंध्र की वित्तीय राजधानी होगी. लेकिन 'सिटी ऑफ डेस्टिनी' अपने खुशनुमा मौसम के साथ उद्योगों और आईटी सेक्टर के विकास के लिए समान रूप से अनुकूल है. इसी तरह, काकीनाडा जलीय कृषि के लिए, अनंतपुर मैन्युफैक्चरिंग के लिए उपयुक्त है.

राजनीतिक मोर्चे पर मुझे नायडू और लोकेश के बीच उनकी भूमिकाओं को लेकर स्पष्ट रूप से विभाजन होने की उम्मीद है. नायडू खुद को एक ऐसे वरिष्ठ राजनेता के रूप में पेश करना चाहेंगे जो आंध्र प्रदेश में विपक्ष के साथ मौखिक रूप से नोंक-झोंक या फिर वाद-विवाद में शामिल नहीं होंगे. यह भूमिका, जिसके लिए आंध्र की राजनीति में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है और जिसके लिए बहुत अधिक आक्रामक होने की आवश्यकता होगी, लोकेश और टीडीपी के युवा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं द्वारा संभाले जाने की संभावना है. नायडू को रणनीति बनाने पर अधिक ध्यान देने के साथ-साथ काम करने वाले नौकरशाहों और केंद्र के साथ काम करना चाहिए ताकि वह राज्य के लिए जितना संभव हो सके उतना हासिल कर सकें. मोदी और नायडू का एक-दूसरे को गले लगाना एक अच्छी एवं खुशहाल दोस्ती का संकेत है. उम्मीद है कि डबल इंजन सरकार निर्णय लेने और परियोजनओं को मंजूरी मिलने के लिए बुलेट ट्रेन जैसी गति प्रदान कर सकती है.

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आंध्र प्रदेश में पहली दो सरकारों में, टीडीपी और वाईएसआरसीपी दोनों ने ऐसे संगठन बनाए जो अंततः खुद ही कानून बन गए. नायडू ने टीडीपी कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए गांवों में जन्मभूमि समितियां बनाई थीं, लेकिन वे निर्वाचित पंचायत निकायों के समानांतर एक ढांचे के रूप में उभरीं, जिससे अक्सर झड़पें हुईं. 2019 में टीडीपी की हार के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया. यही हाल वाईएसआरसीपी का भी है जिसने दरवाजे पर सरकारी सहायता पहुंचाने में मदद करने के लिए 2.5 लाख स्वयंसेवकों की एक टीम बनाई. जगन शासन के दौरान, ये स्वयंसेवक सत्तारूढ़ पार्टी का विस्तार बन गए, जो किसी की भी जगन विरोधी बातों को पसंद नहीं करते थे. नायडू को ऐसा कोई भी संगठन नहीं बनाना चाहिए जो कानूनी रूप से अनिवार्य न हों.

मंगलवार को जब एनडीए विधायक दल नायडू को अपना नेता चुनने के लिए बैठा तब टीडीपी प्रमुख ने देखा कि उनके लिए एक शानदार कुर्सी रखी गई है. उन्होंने अपने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि वे ये कुर्सी हटा दें और इसकी जगह पवन कल्याण और आंध्र प्रदेश भाजपा प्रमुख डी पुरंदरेश्वरी जैसी कुर्सी लाएं. किस्सा कुर्सी का मामला सुलझने के बाद, अब टीम नायडू को शासन की मेज पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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