बदलाव के लिए फिर बिहार दौरे पर निकलेंगे प्रशांत किशोर कहां चूक जा रहे हैं?

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प्रशांत किशोर के साथ सब ठीक ही चल रहा था. बिहार की चार सीटों पर हुए उपचनावों में भी प्रदर्शन ठीक ठाक ही रहा. चुनाव मैदान में पहली बार उतरते ही 10 फीसदी वोट मिल जायें, भला और क्या चाहिये.

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बीपीएससी छात्रोंं के आंदोलन में, प्रशांत किशोर एक मोड़ पर पहुंचकर फंस जरूर गये थे, लेकिन निकलने का सम्मानजनक रास्ता तो निकाल ही लिया था - ये बात अलग है कि पटना की बदलाव रैली में चूक गये.

ऐसी चूक के लिए अकेले प्रशांत किशोर को जिम्मेदार भी नहीं माना जाना चाहिये. हर राजनीतिक दल में नेता को ऐसी जिम्मेदारियों से बचाने की कोशिश होती है. और वैसे भी, ऐसी जिम्मेदारियां अकेले की नहीं, बल्कि टीम वर्क की वजह से ही होती हैं.

बहरहाल, प्रशांत किशोर ने जज्बा तो दिखाया ही है. और, जब किसी रैली की भीड़ वोटों में तब्दील नहीं होती, तो एक फ्लॉप रैली के आधार पर ये भी नहीं कहा जा सकता कि वोट भी नहीं मिलेंगे.

हां, रैलियों की भीड़ से लोगों में परसेप्शन बनता है. उत्साह बढ़ता है, और बना रहता है. खासतौर पर कार्यकर्ताओं का उत्साह तो बढ़ता ही है - और चुनावों में ऐसी ही बातों का फायदा मिलता है.

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पटना रैली के कड़वे या खट्टे अनुभव का ठीकरा प्रशांत किशोर ने पटना प्रशासन पर फोड़ दिया है, और नीतीश कुमार के साथ साथ लालू यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को निशाने पर लिया है - और अब तक चुनावी चर्चाओं का हिस्सा रहे जंगलराज की जगह जनता का राज लाने का वादा और दावा एक साथ कर रहे हैं.

प्रशांत किशोर की बदलाव रैली और यात्रा

पटना में रैली के मंच पर प्रशांत किशोर भी करीब पौने चार घंटे लेट पहुंचे थे. भीड़ न जुटने की स्थिति में नेता लोग ऐसा अक्सर करते हैं. कई बार तो रैलियां रद्द होने की वजह भी ऐसी सुनी गई है, कम लोग थे इसलिए रैली रद्द कर दी गई.

लेकिन प्रशांत किशोर ने रैली रद्द नहीं की. अच्छा किया, करनी भी नहीं चाहिये थी. लोगों में मैसेज बहुत गलत जाता. और, राजनीतिक विरोधी हमलावर हो जाते.

जनसुराज की तरफ से दावा किया गया था कि रैली ऐतिहासिक होगी और बिहार में बदलाव की नींव रखेगी. नाम भी बदलाव रैली ही रखा गया था. पहले 5 और फिर 10 लाख लोगों के रैली में शामिल होने का दावा किया जा रहा था.

गांधी मैदान में रैली के दौरान खाली पड़ी कुर्सियों की तस्वीरें आई हैं. प्रशांत किशोर अब तक अपने कार्यक्रम किसी न किसी हॉल में किया करते थे. सब कुछ भरा भरा, भरपूर नजर आता था - लेकिन, गांधी मैदान में मामला अलग दिखा. प्रशांत किशोर के विरोधियों ने हमला बोलने के लिए ड्रोन से बनाये गये वीडियो का भी इस्तेमाल किया.

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रैली में भीड़ कम होने के सवाल पर जनसुराज के कार्यकर्ता खराब मौसम को दोषी ठहरा रहे थे. कह रहे थे, मौसम खराब होने के कारण हजारों लोग नहीं आ पाये… धूप होने के कारण गांधी मैदान में ही पेड़ों के नीचे बैठे रहे. कार्यकर्ताओं का कहना था, आम लोगों और स्कूली बच्चों को परेशानी न हो, इसलिए दो बजे से कार्यक्रम रखा गया था.

मंच पर चढ़ते ही प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर धावा बोल दिया. कहा, सरकार ने तानाशाही कर मुझे जेल में डाला था… लेकिन, कोर्ट ने मुझे इंसाफ दिलाया और बाइज्जत बरी कर दिया. पटना प्रशासन को निकम्मा करार देते हुए प्रशांत किशोर ने इल्जाम लगाया कि रैली में आने वाले लाखों लोगों को जानबूझकर रोका गया. कह रहे थे, मैं पांच लाख लोगों के साथ सभा करना चाहता था, लेकिन हजारों लोग अब भी जाम में फंसे हैं… मैं खुद दो घंटे से घूम रहा हूं… लोग पैदल चलकर आ रहे हैं… मेरी वजह से जो कष्ट हुआ, उसके लिए माफी चाहता हूं.

और फिर मंच से ही प्रशांत किशोर ने घोषणा की, 10 दिन बाद मैं यहीं से 'बिहार बदलाव यात्रा' पर निकलने वाला हूं. बोले, आपके गांव-घर आऊंगा… बिहार में बदलाव की आंधी को कोई नहीं रोक सकता.'

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प्रशांत किशोर की ये दूसरी यात्रा होगी. इससे पहले वो जन सुराज यात्रा कर चुके हैं.

जंगलराज से डराया, ‘जनता का राज’ लाने का वादा

प्रशांत किशोर ने बिहार के लोगों से अपील की है कि वे 6 महीने के लिए तैयार हो जायें, और दावा है, नवंबर में ‘जनता की सरकार’ बनने जा रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो प्रशांत किशोर के निशाने पर रहते ही हैं, प्रशांत किशोर ने चुनाव आते देख आरजेडी नेता लालू यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लिया है.

रैली में सवाल-जवाब वाली स्टाइल में प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार का नाम लेकर लोगों से तीन बार पूछा, 'नीतीश कुमार को उखाड़ फेंकना है कि नहीं?'

और फिर बोले, अगर मोदी जी कहेंगे कि नीतीश को मत हटाओ, तो क्या मानोगे? लालू का जंगलराज नहीं चाहिये ना? तो फिर बिहार में जनता का राज चाहिए कि नहीं?

भाषण देते देते प्रशांत किशोर यहां तक बोल गये कि 2015 में अगर नीतीश कुमार की मदद नहीं किये होते तो वो राजनीति से संन्यास ले चुके होते, और आज बड़े होशियार बन रहे हैं. रैली में भीड़ कम होने की तोहमत भी प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार पर मढ़ दी. दावा है कि निकम्मी सरकार और प्रशासन के कुप्रबंधन के कारण दो लाख से अधिक लोग गांधी मैदान नहीं पहुंच सके.

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और बातों बातों में ये भी बता डाला कि अब वो बदला कैसे लेने जा रहे हैं, जो शादी कराता है, वही श्राद्ध भी कराता है… अगर 2015 में हम मदद नहीं करते, तो नीतीश आज संन्यास में होते… अब जन सुराज उनका राजनीतिक श्राद्ध करेगा.

बाकी सब तो चलेगा, राजनीति है. सवाल है कि प्रशांत किशोर कौन सा ‘जनता का राज’ देने की बात कर रहे हैं? जंगलराज के 15 साल की हर चुनाव में याद दिलाते दिलाते नीतीश कुमार 19 साल से कुर्सी पर काबिज हैं. अरविंद केजरीवाल ने भी तो ऐसे ही वादे किये थे. 10 साल में दिल्ली के लोगों ने सत्ता से बेदखल कर दिया - मंजिल की कौन कहे, प्रशांत किशोर तो अभी सफर की शुरुआत भी नहीं कर पाये हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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