मोदी-पुतिन-जिनपिंग की मौजूदगी में BRICS करेंसी के आइडिया पर क्या बनेगी बात? डॉलर की बादशाहत पर ऐसे होगा असर

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रूस के शहर कजान में मंगलवार से 16वें ब्रिक्स समिट का आयोजन होने जा रहा है. इस समिट में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रवाना हो चुके हैं. G-7 जैसे प्रभावशाली समूह की तुलना में ब्रिक्स का इतिहास बेशक ज्यादा पुराना नहीं हो लेकिन इस समिट में ऐसे बड़े फैसलों को अमलीजामा पहनाया जा सकता है, जिसके भविष्य में बड़े प्रभाव हो सकते हैं. इनमें से एक है- ब्रिक्स करेंसी.

ब्रिक्स देश एक ऐसी रिजर्व करेंसी शुरू करना चाहते हैं, जो डॉलर के प्रभुत्व को टक्कर दे सके. 22 से 24 अक्तूबर तक रूस के कजान शहर में होने वाले ब्रिक्स समिट में सदस्य देश ऐसी गोल्ड बैक ब्रिक्स करेंसी शुरू करने पर चर्चा को आगे बढ़ा सकते हैं.

चीन के साथ अमेरिकी ट्रेड वॉर और चीन एवं रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बीचअगर ब्रिक्स देशों के बीच इस नई करेंसी को लेकर रजामंदी हो जाती है तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम को चुनौती देने के साथ इससे इन सदस्य देशों की आर्थिक ताकत बढ़ सकती है.

मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सिसस्टम में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व है. दुनियाभर में लगभग 90 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है. वहीं, अभी तक 100 फीसदी तेल कारोबार भी अमेरिकी डॉलर में ही होता था लेकिन पिछले साल कथित तौर पर गैर अमेरिकी डॉलर में भी थोड़ा बहुत तेल कारोबार होने लगा है.

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ब्रिक्स देश नई करेंसी क्यों चाहते हैं?

नई करेंसी की चाहत के कई कारण हैं. हाल के समय की वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और अमेरिका की आक्रामक विदेश नीतियों की वजह से ब्रिक्स देशों को एक साझा नई करेंसी की जरूरत पड़ी. ब्रिक्स देश चाहते हैं कि वे अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम कर आर्थिक हितों के लिए एक नई साझा करेंसी शुरू करें.

सबसे पहले 2022 में 14वें ब्रिक्स समिट के दौरान इस नई करेंसी की जरूरत पर पहली बार बात हुई थी. उस समय रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि ब्रिक्स देश नई वैश्विक रिजर्व करेंसी शुरू करने की योजना बना रहे हैं. इसके बाद अप्रैल 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने ब्रिक्स करेंसी के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा था कि ब्रिक्स बैंक जैसे संस्थान के पास ब्राजील और चीन या फिर ब्राजील या अन्य ब्रिक्स देशों के बीच ट्रेड करने के लिए नई करेंसी क्यों नहीं हो सकती?

दक्षिण अफ्रीका के ब्रिक्स एंबेसेडर अनिल शुकलाल ने कहा कि 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई थी. 2023 में ब्रिक्स समिट में छह देशों अर्जेंटीना, मिस्र, इथीयोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स सदस्य के तौर पर शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. ये देश जनवरी 2024 में ब्रिक्स संगठन में शामिल हो गए.

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ब्रिक्स करेंसी का अमेरिकी डॉलर पर कैसे पड़ेगा असर?

दशकों तक अमेरिकी डॉलर का विश्व पर एकतरफा वर्चस्व रहा है. यूएस फेडरल रिजर्व के मुताबिक, 1999 से 2019 के बीच अमेरिका में 96 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार डॉलर में, एशिया प्रशांत क्षेत्र में 74 फीसदी कारोबार डॉलर में और बाकी दुनिया में 79 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ.

हालांकि, हाल के कुछ सालों में डॉलर का रिजर्व करेंसी शेयर घटा है क्योंकि यूरो और येन की लोकप्रियता भी बढ़ी है. लेकिन डॉलर अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है.

लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर कारोबार के लिए ब्रिक्स देश डॉलर के बजाए नई ब्रिक्स करेंसी का इस्तेमाल करने लगेंगे तो इससे प्रतिबंध लगाने की अमेरिका की ताकत पर असर पड़ सकता है. इससे डॉलर का मूल्य यकीनन घटेगा. हो सकता है कि इससे अमेरिका में घरेलू स्तर पर भी प्रभाव देखने को मिले.

ब्रिक्स करेंसी से किन-किन क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है?

- तेल और गैस
- बैंकिंग और फाइनेंस
- कमोडिटीज
- अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड
- टेक्नोलॉजी
- टूरिज्म एंड ट्रैवल
- फॉरेन एक्सचेंज मार्केट

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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