महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अगले सीएम को लेकर खींचतान जारी है. इसी बीच बुधवार को शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि उनकी ओर से कोई अड़चन नहीं है. उन्होंने साफ किया कि जो भी फैसला बीजेपी करेगी वो उन्हें मंजूर होगा. उन्होंने अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी और शाह की तारीफ भी की. उन्होंने कहा कि मैं कार्यकर्ता हूं और जो भी फैसला लिया जाएगा उसमें हम साथ देंगे. ऐसे में अब सवाल उठता है कि आखिर एकनाथ शिंदे सीएम रेस को लेकर बैकफुट पर क्यों आए?
क्यों बैकफुट पर आए शिंदे
23 नवंबर को नतीजे आने के बाद से अगले मुख्यमंत्री को लेकर अटकलें तेज हो गई थीं. शिवसेना और एनसीपी के साथ-साथ बीजेपी की ओर से भी सीएम को लेकर दावे किए जाने लगे. शिवसेना और एनसीपी ने अपने विधायक दल का नेता चुनकर प्रेशर पॉलिटिक्स भी की. लेकिन पहले एनसीपी और अब शिवसेना बैकफुट पर हैं.
दरअसल, 288 विधानसभा वाली सीट में महायुति को 230 सीट मिली है. इसमें 132 सीटों पर अकेले बीजेपी को जीत मिली है, जो बहुमत से 13 सीट कम है. सूत्रों की मानें तो जब बीजेपी अकेले 110 सीट के पार गई तो शिवसेना और एनसीपी को ये समझ आने लगा था कि मुख्यमंत्री पद पर उनकी पकड़ कमजोर हो गई है.
मराठा फेस का दांव भी नहीं चला...
वहीं, एकनाथ शिंदे के मराठा फेस को लेकर भी दबाव बनाने की कोशिश की गई.लेकिन जिस तरह से बीजेपी को हर वर्ग का वोट मिला उसने इस नैरेटिव को भी तोड़ने का काम किया. फडणवीस 2019 और 2022 में सीएम बनने से चूके थे. इसका भी उनको फायदा मिल रहा है.
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शिवसेना ने विधायकों को समझाया
खबरें सामने आ रही हैं कि एकनाथ शिंदे ने अपने विधायकों को समझाकर अपने-अपने क्षेत्र में जाने को कहा है कि जबकि एकनाथ शिंदे ने भी खुद को महायुति का कार्यकर्ता करार दिया है. ऐसे में अब साफ है कि देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लग सकती है.
एनसीपी ने क्यों किया बीजेपी का समर्थन
वहीं, अब सवाल उठता है कि आखिर अजित पवार की एनसीपी ने बीजेपी का समर्थन क्यों किया. दरअसल, एनसीपी के बीजेपी के समर्थन के पीछे कई कारण हैं. पहला तो ये कि वो इस दांव से शिवसेना के बराबरी पर आकर खड़े हो जाएंगे. दूसरा उन्हें भी पता है कि बीजेपी का नंबर ज्यादा है. ऐसे में वह सीएम के लिए हकदार है. बता दें कि महाराष्ट्र में महायुति को 288 में से 230 सीटें मिली थीं.
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