साल 2006 से 2010 और फिर 2014 से 2018 तक दो बार चिली की राष्ट्रपति रहीं मिशेल बेचलेट ने एक बार मजाक में कहा था किअमेरिका में कभी तख्तापलट नहीं हुआ है, क्योंकि वहां कोई अमेरिकी दूतावास नहीं है. 2009 में मिशेल जब अमेरिका दौरे पर आईं तो उनके साथ उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनके इस मजाक को लेकर सवाल किया गया तो मिशेल ने इसेएक अमेरिकी व्यक्ति की ओर से किया गया मजाक बताया था. इसके बाद मिशेल और ओबामा, दोनों हंस पड़े.
अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि वो अपने हिसाब से दुनिया को चलाना चाहता है. जिस देश की सरकार उसके हितों में आड़े आती है, वहां तख्तापलट कर अपनी पसंद का चेहरा बैठा दिया जाता है. कुल मिलाकर अमेरिका जिसे चाहता है, उसे सत्ता से हटा देता है और जिसे चाहता है, उसे बैठा देता है. इसे एक तरह से साम-दाम-दंड-भेद की नीति भी कहा जा सकता है.
ये सारी बातें इसलिए क्योंकि अब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. अमेरिकी चुनावों में उन्हें 294 इलेक्टोरल वोट मिल गए हैं. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद कहीं बेचैनी है तो कहीं सुकून. जिन मुल्कों में बेचैनी है, उनमें से एक बांग्लादेश भी है. बांग्लादेश में अभी मोहम्मद यूनुस सत्ता संभाल रहे हैं. उन्हें 'America's Man' भी कहा जाता है. लेकिन ट्रंप के सत्ता में आने से अब वहां बेचैनी बढ़ गई है.
हसीना 'प्रधानमंत्री', यूनुस के बदले सुर!
रिपब्लिकन पार्टी से तीसरी बार चुनाव लड़े ट्रंप ने जीतकर नया रिकॉर्ड बना दिया है. 131 साल में ये पहली बार है जब व्हाइट हाउस छोड़ने के बाद किसी पूर्व राष्ट्रपति का कमबैक हुआ है.
ट्रंप के कमबैक से अब बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी की उम्मीद बढ़ गई है. शेख हसीना इस साल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं. उनके हटने के बाद मोहम्मद यूनुस अब वहां सरकार चला रहे हैं.
ट्रंप के जीतने पर शेख हसीना ने भी उन्हें बधाई दी. शेख हसीना ने बधाई देते हुए खुद को 'प्रधानमंत्री' बताया है. उनकी पार्टी आवामी लीग की ओर से जारी लेटर में लिखा गया, 'आवामी लीग की अध्यक्ष (प्रधानमंत्री) शेख हसीना ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी है. उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में ट्रंप के साथ हुई बैठकों और बातचीत को भी याद किया. शेख हसीना ने उम्मीद जताई है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में बांग्लादेश और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध और मजबूत होंगे.'
2016 में ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो मोहम्मद यूनुस ने उनकी जीत की तुलना 'सूर्य ग्रहण' और 'काले दिन' से की थी. यूनुस ने ट्रंप को नसीहत दी थी कि राष्ट्रपति के रूप में उन्हें 'दीवार नहीं, बल्कि पुल' की तरह काम करना होगा.
हालांकि, अब जब ट्रंप दूसरी बार चुनाव जीते तो यूनुस ने उन्हें बधाई दी. उन्होंने कहा, 'आपसी हितों के कई क्षेत्रों में दोस्ती और सहयोग का अमेरिका का लंबा इतिहास रहा है. उनके पिछले कार्यकाल में संबंध और गहरे हुए थे.'
अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार यूनुस ने कहा, 'मैं हमारी साझेदारी को और मजबूत करने के लिए मिलकर काम करने को लेकर उत्सुक हूं.'
क्या अमेरिका ने हटाया था हसीना को?
सबसे लंबे वक्त तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना ने अपने तख्तापलट के लिए कथित तौर पर अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया था. उनका इशारा बाइडेन सरकार पर था.
शेख हसीना ने इसी साल मई में कहा था, 'अगर मैं खास देश को बांग्लादेश में एयरबेस बनाने की अनुमति दे देती हूं तो मुझे कोई परेशानी नहीं होगी.' उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया था, लेकिन ये कहा था कि उन्हें ये ऑफर एक 'व्हाइट मैन' से आया था. उन्होंने उस समय कहा था कि उनकी सरकार हमेशा संकट में रहेगी, लेकिन इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा था, 'वो ईस्ट तिमोर की तरह बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को बंगाल की खाड़ी में बेस के साथ लेकर एक ईसाई देश बनाएंगे.'
ईस्ट तिमोर का जिक्र कर शेख हसीना ने एक तरह से अमेरिका की ओर इशारा कर दिया था. ईस्ट तिमोर 2002 में ही आजाद मुल्क बना है. यहां अमेरिका की अच्छी-खासी मौजूदगी है. हर साल अमेरिका यहां लाखों डॉलर खर्च करता है.
तख्तापलट के बाद शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने भी अमेरिका का हाथ होने का शक जाहिर किया था. उन्होंने कहा था, 'अमेरिका मजबूत सरकार नहीं चाहता. वो बांग्लादेश में कमजोर सरकार चाहता है. वो एक ऐसी सरकार चाहता है जिसे नियंत्रित कर सके. वो शेख हसीना को नियंत्रित नहीं कर पाए.'
ट्रंप का कमबैक, हसीना की वापसी?
मोहम्मद यूनुस को डेमोक्रेट्स का करीबी माना जाता है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से उनके अच्छे संबंध रहे हैं.
2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद जब एक बांग्लादेशी डेलिगेशन ने ट्रंप से मुलाकात की थी, तो वो यूनुस पर भड़क गए थे. उस डेलिगेशन में यूनुस नहीं थे, लेकिन ट्रंप ने पूछा था, 'वो ढाका का माइक्रो फाइनेंसर कहां है? सुना है वो इलेक्शन में हारते हुए देखना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने डोनेशन भी दिया था.'
ट्रंप उस वक्त क्लिंटन फाउंडेशन की बात कर रहे थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोहम्मद यूनुस ने क्लिंटन फाउंडेन से एक से ढाई लाख डॉलर का डोनेशन दिया था.
ट्रंप और यूनुस के संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. अमेरिका में रिपब्लिकन की सरकार का आना यूनुस के लिए अच्छा नहीं माना जाता. साल 2017 में रिपब्लिकन सीनेटर चार्ल्स ग्रैसली ने यूनुस को फायदा पहुंचाने के लिए क्लिंटन पर बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखल का आरोप लगाया था. ग्रैसली ने आरोप लगाया था कि बराक ओबामा की सरकार में हिलेरी क्लिंटन ने शेख हसीना की सरकार पर यूनुस के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच बंद करने का दबाव बनाया था.
अब ट्रंप के कमबैक से शेख हसीना की वापसी की उम्मीद भी बढ़ गई है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं समेत अल्पसंख्यक के खिलाफ हो रहे हमलों की ट्रंप ने खुलकर आलोचना की थी. अपने दिवाली मैसेज में उन्होंने कमला हैरिस और जो बाइडेन पर हिंदुओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था. ट्रंप ने कहा था, 'मेरे रहते ऐसा कभी नहीं होगा. कमला हैरिस और जो बाइडेन ने अमेरिका समेत दुनियाभर में हिंदुओं की अनदेखी की है.'
अमेरिका पर क्यों लगते हैं तख्तापलट के इल्जाम?
शेख हसीना और अवामी लीग के नेताओं का मानना है कि बाइडेन सरकार ने उनका तख्तापलट कर दिया. अब उन्हें उम्मीद है कि ट्रंप के आने से यूनुस का तख्तापलट भी हो सकता है. क्योंकि शेख हसीना ने ट्रंप को भेजे लेटर में खुद को 'प्रधानमंत्री' बताया है. इसी साल जनवरी में हुए चुनाव में शेख हसीना की जीत हुई थी.
अगर अमेरिका चाह ले तो ऐसा हो भी सकता है. अपनी पसंद के चेहरे को बैठाने के लिए मौजूदा सरकार का तख्तापलट करवाने का अमेरिका का लंबा इतिहास रहा है. कहीं विपक्षी दलों का समर्थन करके तो कहीं आतंकी गुटों को फंडिंग कर उसने उन देशों में बगावत करवानी शुरू कर दी. उस पर कुछ देशों के राष्ट्रप्रमुखों का कत्ल करवा कर वहां अराजकता फैलाने का आरोप भी लगा.
1953 में ईरान में चुने गए प्रधानंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. उनके तख्तापलट में अमेरिका का हाथ था. दरअसल, मोहम्मद मोसद्दिक ने तेल का राष्ट्रीयकरण दिया था. इससे पश्चिमी मुल्क नाराज हो गए थे. इसके बाद मोहम्मद मोसद्दिक को सत्ता से हटाने का खेल शुरू हुआ. पिछले साल सीआईए ने माना था कि मोहम्मद मोसद्दिक को हटाना अलोकतांत्रिक था.
इसके बाद 1954 में ग्वाटेमाला, 1960 में कॉन्गो, 1963 में साउथ वियतनाम, 1964 में ब्राजील और 1973 में चिली की सरकार को गिराने में अमेरिका की अहम भूमिका रही है.
2007 में अमेरिकी लेखक स्टीफन किंजर ने अपनी किताब 'Overthrow: America’s Century of Regime Change from Hawaii to Iraq' में बताया था कि चुनी हुई सरकारों को गिराना और उनका तख्तापलट करना अमेरिका की विदेश नीति का अहम हिस्सा रहा है. इस किताब में स्टीफन किंजर लिखते हैं, 'अमेरिका ने उन सरकारों को उखाड़ फेंकने में जरा भी संकोच नहीं किया जो उसके राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों के रास्ते में खड़ी थीं.'
इसी तरह 2016 में वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका ने 72 देशों में तख्तापलट करने की कोशिश की थी.
9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया. वहां की सत्ता से तालिबान को बेदखल कर दिया और हामिद करजई की अगुवाई में अंतरिम सरकार का गठन किया. हामिद करजई बाद में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बने. उनके बादग 2014 में अशरफ गनी राष्ट्रपति चुने गए. हालांकि, अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान फिर सत्ता में आ गया.
2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया और सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर दिया. सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया था. दिसंबर 2006 में सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी गई.
दो साल पहले जब पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिरी थी, तो इसके लिए भी अमेरिका पर ही आरोप लगा था. पिछले साल अगस्त में एक लीक डॉक्यूमेंट में खुलासा हुआ था कि अमेरिका ने पाकिस्तानी राजदूत से इमरान खान को सत्ता से हटाने को कहा था.
इस लीक डॉक्यूमेंट में खुलासा हुआ था कि मार्च 2022 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दो अधिकारियों और पाकिस्तान के राजदूत के बीच बातचीत हुई थी. इस मीटिंग में अधिकारियों ने पाकिस्तानी राजदूत से कहा था कि अगर इमरान खान को सत्ता से हटा दिया जाता है तो अमेरिका, पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध रखेगा. इससे पहले इमरान खान ने भी आरोप लगाया था कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ है.
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