Trump की वापसी क्या दुनिया में जंग रुकवा देगी? पहले भी करा चुके हैं कई कट्टर दुश्मनों में दोस्ती

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति चुने जा चुके. अगले दो महीनों के भीतर वे पद की शपथ लेंगे. इससे पहले से ही युद्धरत देशों में हलचल शुरू हो चुकी. माना जा रहा है कि ट्रंप का आना लड़ाई रुकवा सकता है. ये अंदाजा हवाहवाई नहीं, बल्कि पिछले कार्यकाल में ट्रंप कई ऐसे देशों को हाथ मिलाने पर विवश कर चुके जो आपस में कट्टर दुश्मन थे.

मॉस्को और कीव के मामले में क्या हो सकता है

सबसे पहले बात करते हैं, रूस और यूक्रेन युद्ध की, जो तीन सालों से चला आ रहा है. चुनावी कैंपेन के दौरान भी ट्रंप ने लड़ाई का जिक्र करते हुए इसे रुकवाने की बात की थी. ऐसा काफी हद तक संभव है. और अगर युद्ध न रुके तो भी ट्रंप के कहने पर मॉस्को और कीव दोनों के बीच सीजफायर तो हो ही सकता है.

बहुत मुमकिन है कि दोनों देशों के बीच समझौता हो जाए, जिसमें साल 2014 के युद्ध में कब्जे वाले क्रीमिया का हक रूस को मिल जाए, और साल 2022 के बाद से रूस ने जो भी हथियाया है, वो यूक्रेन को लौटा दिया जाए.

दोनों देश क्यों मानेंगे ट्रंप की बात

बाकी अमेरिकी राष्ट्रपतियों से अलग ट्रंप के रूस के लीडर व्लादिमीर पुतिन से काफी अच्छे संबंध रहे. खुद अमेरिकी लीडर ने पुतिन से शानदार व्यक्तिगत संबंधों का जिक्र कई बार किया. संभव है कि ट्रंप की वापसी से रूस पर लगे कई प्रतिबंध हट जाएं. दोनों तरह के फायदों को देखते हुए मॉस्को ट्रंप की बात मान सकता है. यही हाल यूक्रेन का है. तीन सालों में रूस जैसे बड़े देश से जंग के लिए उसे काफी सारी मदद अमेरिका से मिली. अब सत्ता बदल चुकी है. हो सकता है कि ट्रंप सहायता से सीधे इनकार न करते हुए हाथ कस लें. इससे पहले से कमजोर पड़ा कीव और मुसीबत में आ सकता है.

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एक और वजह भी है

यूक्रेन कुछ समय से खुद को नाटो में शामिल किए जाने की सिफारिश कर रहा है. वहीं रूस इसके खिलाफ रहा. ट्रंप के पास इतनी ताकत है कि वे इस मामले को भी किसीनतीजे तक ले जा सकते हैं. यहां याद दिला दें कि अमेरिका नाटो का सबसे बड़ा फंडर रहा और ट्रंप कई बार धमका चुके कि वे नाटो से हाथ खींच लेंगे. ये ऐसी धमकी है जो पूरे वेस्ट में हलचल पैदा कर सकती है.

US president donald trump may end war in middle east israel iran and russia ukraine photo AFP

क्या हो सकता है मध्य-पूर्व में

मिडिल ईस्ट में इजरायल एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहा है. फिलिस्तीन में मौजूद हमास उसपर हमलावर रहा. साथ ही ईरान और उससे जुड़े कट्टर गुट भी इजरायल को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. लेबनान भी बीच-बीच में आक्रामकता दिखाता रहा. डोनाल्ड ट्रंप हमेशा से इजरायल के पक्षधर रहे. साथ ही ईरान को लेकर उनका कड़ा रुख पिछले टर्म में भी दिख चुका. तो यहां मामला साफ है. इजरायल को मदद देते हुए वे ईरान की फंडिंग पर पल रहे सारे चरमपंथी समूहों जैसे हिजबुल्लाह, हमास और हूतियों को कमजोर कर सकते हैं.

इस एशियाई देश के साथ रार

चीन फिलहाल एक ऐसा देश है, जो किसी से सीधे युद्ध नहीं लड़ रहा, लेकिन जो पड़ोसियों के साथ लगातार तनाव बनाए हुए है. बाजार और कूटनीति पर अमेरिका से उसकी सीधी लड़ाई है. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में चीन को साधने के लिए कई नीतियां बनाई थीं ताकि उसकी आक्रामकता कुछ हद तक कम हो सके. उनके बाद के लीडर जो बाइडेन ने यही पॉलिसीज जारी रखीं.

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पुरानीरस्सी छोटी-बड़ी की जा सकती है

पिछली बारउन्होंने चीन से आ रहे सामान पर भारी शुल्क लगा दिया था ताकि आयात कम हो और अमेरिका खुद अपने उत्पाद बनाए. ये चलन जारी रह सकता है. दक्षिण चीन सागर पर भी ट्रंप बेहद सख्त रहे और कई कदम लिए थे ताकि चीन को सागर पर कब्जा करने से रोका जा सके. इस मामले में भी उनका पुराना रवैया दिख सकता है लेकिन हो सकता है कि व्यापार और कूटनीति पर ट्रंप कुछ नई फैसले लें जो अमेरिका और चीन के बीच ठंडेपन को कम कर सकता है.

US president donald trump may end war in middle east israel iran and russia ukraine photo AFP

युद्धरत देशों के बीच ट्रंप की वापसी से जो उम्मीद जागी है, उसके पीछे ट्रंप का पुराना रिकॉर्ड है. पुराने कार्यकाल में उन्होंने कई समझौते करवाए. या समझौते अंजाम तक नहीं पहुंच सके तो भी उसकी कोशिश जरूर की.

किन देशों के बीच सुलह में हाथ

- ट्रंप ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग से मुलाकात कर कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव को कम करने की कोशिश की. ये भेंट वैसे कोई ठोस चेहरा नहीं ले सकी लेकिन नॉर्थ कोरिया की आक्रामकता कुछ समय के लिए थमी जरूर.

- अफगानिस्तान में संघर्ष कम करने के लिए ट्रंप प्रशासन के दौरान दोहा समझौता हुआ. इसके तहत अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से लौट आई ताकि तालिबान और स्थानीय सरकार में तालमेल बैठ सके, हालांकि ये गणित भी ठीक नहीं बैठा.

- इजरायल और अरब देशों के बीच अब्राहम समझौता बड़ी जीत थी. इसकी वजह से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे अरब देशों के संबंध इजरायल से काफी हद तक सुधरे. कईयों ने तभी इजरायल को देश की मान्यता दी.

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नोबेल पुरस्कार तक जा पहुंची थी बात

ट्रंप की फॉरेन पॉलिसी में मिडिल ईस्ट और कोरियाई प्रायद्वीप में स्थिरता पर काफी फोकस था. यहां तक कि हरदम अमेरिका के खिलाफ आग उगलते उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग से भी ट्रंप ने तीन बार भेंट की. इन शांति वार्ताओं का एजेंडा कोरिया में स्थाई शांति लाना था. हालांकि ये हो नहीं सका लेकिन कोशिश इतनी बड़ी थी कि इसके लिए डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित हो गया. यानी ट्रंप की कोशिशें इंटरनेशनल मंच पर असर बना चुकी थीं. हालांकि उन्हें ये पुरस्कार मिल नहीं सका.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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