बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और चुनावी साल से पहले बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्रीगिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा ने सियासी तापमान बढ़ा दिया था. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) गिरिराज की यात्रा के खिलाफ खुलकर उतर आई. गठबंधन के दो प्रमुख घटक दलों के बीच तल्खी की बातें शुरू हुई तो बीजेपीने इस यात्रा से पल्ला झाड़ लिया.
एनडीए की एकजुटता से लेकर मुख्यमंत्री के चेहरे तक, तमाम सवाल पिछले कुछ दिनों से बिहार की सियासत का हॉट टॉपिक बने हुए थे. इन सवालों के जवाब सोमवार कोनीतीश के आवास पर हुई बैठक से मिल गए हैं. गिरिराज सिंह की मौजूदगी में नीतीश की बैठक से कौन से संदेश निकले? आइए नजर डालते हैं.
1- बिहार की सियासत के नीतीश ही बॉस
बिहार में नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर भी अटकलों का दौर चल रहा था. नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव के बाद जब महागठबंधन का हाथ झटक एनडीए में वापसी की, उनके साथ बीजेपी कोटे से दो डिप्टी सीएम- सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने भी शपथ ली. बिहार बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने शपथग्रहण के तुरंत बाद भी कहा था कि बीजेपी की सरकार बनाना हमारा लक्ष्य है.
बीजेपी संख्याबल में भी जेडीयू पर भारी है. ऐसे में कयास नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर भी लगाए जाने लगे थे. इन अटकलों के पीछे नीतीश कुमार का पिछले विधानसभा चुनाव के समय प्रचार थमने से पहले खुद किया गया वह ऐलान भी था जिसमें उन्होंने 2020 के चुनाव को अपना अंतिम चुनाव बताया था. अब यह साफ हो गया है कि बिहार चुनाव में एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे के साथ ही मैदान में जाएगी. यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बिहार की सियासत के नीतीश कुमार ही बॉस हैं.
2- बिहार में एनडीए मतलब नीतीश
एनडीए की जहां भी सरकार है, ड्राइविंग सीट पर कोई और हो तब भी ड्राइविंग फोर्स बीजेपी ही रहती है. महाराष्ट्र इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है जहां सरकार की ड्राइविंग सीट पर शिवसेना और एकनाथ शिंदे हैं लेकिन वहां भी ड्राइविंग फोर्स बीजेपी ही है. बिहार में सीटों के मामले में आगे रहने के बावजूद बीजेपी बैक सीट पर ही है.
नीतीश कुमार ने पहले अपने आवास पर बैठक बुलाकर यह संदेश दिया कि ड्राइविंग सीट पर ही नहीं, ड्राइविंग फोर्स भी वही हैं. इस बैठक में स्लोगन तय हुआ- 2025 फिर से नीतीश. यह स्लोगन इस बात पर मुहर की तरह देखा जा रहा है कि बिहार में एनडीए का मतलब ही नीतीश कुमार है. इस स्लोगन के साथ ही सीएम फेस को लेकर कयासों पर भी विराम लग गया और यह साफ हो गया है कि एनडीए की ओर से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.
3- बिहार एनडीए में चलेगी नीतीश की आइडियोलॉजी
बिहार एनडीए में आइडियोलॉजी को लेकर भी द्वंद की स्थिति बन गई थी, खासकर गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा के बाद. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू इसके विरोध में खुलकर उतर आई थी. बीजेपी ने भी गिरिराज की यात्रा को निजी बता इससे पल्ला झाड़ लिया था लेकिन इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया था कि सूबे में किसकी आइडियोलॉजी चलेगी, नीतीश कुमार की या बीजेपी की? नीतीश के आवास पर हुई एनडीए की बैठक से भी जेडीयू ने ये संदेश दे दिया है कि सूबे में उसकी ही आइडियोलॉजी चलेगी. बैठक में नीतीश कुमार ने नाम लिए बिना भागलपुर दंगों का जिक्र कर पीड़ितों को न्याय दिलाने, पेंशन देने जैसे कदम गिनाए जो इसी तरफ इशारा माने जा रहे हैं.
4- एलजेपी मतलब चिराग पासवान
पिछले दिनों बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के प्रमुख पशुपति पारस से मुलाकात की थी. बिहार बीजेपी अध्यक्ष से मुलाकात के बाद पशुपति पारस ने दिल्ली पहुंचकर अमित शाह से मुलाकात की थी. लोकसभा चुनाव में खाली हाथ रह गए पशुपति ने अमित शाह से मुलाकात के बाद दावा किया था कि विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा. हमें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी.
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पशुपति पारस की यहां तो बोहनी ही बिगड़ती दिख रही है. सीटों की बात तो पता नहीं, यहां एनडीए की बैठक के लिए उनको न्योता तक नहीं मिला. एनडीए के लिए एलजेपी का मतलब और दलित वोटों के झंडाबरदार चिराग पासवान ही हैं, यह इसी बात का संकेत बताया जा रहा है.
5- एकजुटता पर होगा जोर
सीएम नीतीश ने एनडीए की बैठक ऐसे समय में बुलाई थी, जब गिरिराज की यात्रा के बाद घटक दलों में तल्खी के कयास जोर पकड़ रहे थे. इस बैठक में खुद गिरिराज सिंह भी मौजूद थे. गिरिराज को मंच पर दूसरी पंक्ति में बैठाया जाना और फिर नीतीश कुमार का यह कहना कि एकजुटता ही हमारी पूंजी है, ये दोनों ही गिरिराज की यात्रा से निकले मैसेज को दबा ऑल इज वेल का संदेश देने की रणनीति से जोड़कर देखे जा रहे हैं.
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गिरिराज को दूसरी पंक्ति में बैठाया जाना बीजेपी की नरमी का भी संकेत बताया जा रहा है. नीतीश के एकजुटता वाले बयान को देखें तो चुनावी आंकड़े बताते हैं कि बिहार में बीजेपी अकेले सरकार तब भी नहीं बना सकी है जब वह 2014 चुनाव के बाद विजय रथ पर सवार थी. जेडीयू का ग्राफ भी 2010 चुनाव के बाद से लगातार गिरा ही है. सरकार का चेहरा भले ही नीतीश कुमार ही रहे हों लेकिन उनके गठबंधन सहयोगी बदलते रहे हैं.
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