चीन के तेवर आखिर क्यों पड़े नरम? कजान में PM मोदी-जिनपिंग की मुलाकात के पीछे ये 5 कारण

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रूस के कजान शहर में ब्रिक्स समिट के इतर प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच करीब 50 मिनट तक द्विपक्षीय मुलाकात हुई. 5 साल बाद दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग को दो टूक तरीके से याद दिलाया कि रिश्तों की बेहतरी के लिए सीमा पर शांति सबसे जरूरी है. दोनों नेताओं ने बुधवार को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त और पीछे हटने के भारत-चीन समझौते का समर्थन किया और विभिन्न द्विपक्षीय वार्ता तंत्रों को पुनर्जीवित करने के निर्देश जारी किए, जो 2020 में एक घातक सैन्य झड़प से प्रभावित संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों का संकेत देते हैं.

दरअसल, साल 2020 में गलवान झड़प के बाद दोनों नेताओं के बीच ये पहली द्विपक्षीय बैठक हुई. इसमें दोनों नेताओं ने सीमा पर शांति और एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने को कहा. द्वीपक्षीय वार्ता के पहले शी जिनपिंग पीएम मोदी के साथ चहलकदमी करते दिखे. उनके साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी थे. लेकिन सवाल ये है कि 5 साल पहले कोरोना महामारी के बीच पूर्वी लद्दाख में चुपके से अपनी सेना लाने वाले जिनपिंग नरम क्यों पड़े. आखिर वो 5 कौन सी मजबूरियां हैं जिसने चीन को भारत की तरफ दोबारा देखने को मजबूर कर दिया?

लेकिन सवाल ये है कि चीन को 5 साल बाद भारत से रिश्ते सुधारने की बात याद क्यों आई? इसे समझने के लिए दुनिया के सबसे ऊंचे एयरफील्ड की तस्वीर देखने की जरूरत है.

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आखिरी बार 2019 में मिले थे दोनों नेता

साल 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद चीन ने एक तरफ भारत को चौंकाया तो दूसरी तरफ उससे जुड़े खतरे को लेकर चेताया. इसके बाद भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी तैयारियों को इस दौरान पुख्ता किया और चीन को झुकने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन अब दोनों देश अपने रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने की ओर आगे बढ़ गए हैं. आखिरी बार पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच औपचारिक बैठक अक्टूबर 2019 में तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम में हुई थी. और अब कजान में दोनों देशों के मुखिया मिले हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बता दिया कि हिंदुस्तान की ताकत क्या है. पिछले पांच वर्षों में अगर देखा जाए तो पीएम मोदी ने दुनिया भर में देश का लोहा मनवाया है. एक तरफ शी जिनपिंग थे जिनकी कोविड काल में बहुत आलोचना हुई, दूसरी तरफ पीएम मोदी थे जिन्होंने न सिर्फ भारत में कोविड के खिलाफ मुहिम छेड़ी. इतना ही नहीं, कई देशों को मदद तक पहुंचाई. एक चीन था जो गलवान घाटी में कोविड के दौरान भी साजिशें रच रहा था. दूसरी ओर भारत था जो लोगों के जीवन को बचा रहा था. बीतते वक्त के साथ शी जिनपिंग की साख पर बट्टा लग रहा था और पीएम मोदी वैश्विक नेता के तौर पर उभर रहे थे. कहीं न कहीं इन सब बातों ने जिनपिंग को रिश्तों की गाड़ी दोबारा शुरू करने को मजबूर कर दिया.

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...तो इन कारणों से नरम पड़े चीन के तेवर?

अगर चीन के नरम पड़ने के पीछे 5 कारणों को देखें तो उसमें पहले नंबर पर धीमा पड़ती विकास दर है. दूसरा डॉनाल्ड ट्रंप के उस वादे का डर है, जिसमें चीन के माल पर 60 फीसदी टैरिफ लगाना शामिल है. तीसरा ट्रंप राष्ट्रपति बनते हैं तो इस फैसले से चीन में पहले से ही बढ़ चुकी बेरोजगारी बेकाबू हो सकती है. चौथा जिनपिंग की तमाम कोशिशों के बावजूद डॉलर के मुकाबले युआन को दुनिया ने स्वीकार नहीं किया है. और पांचवा ये कि दक्षिण चीन सागर में रोजाना पड़ोसियों से होने वाली झड़प से उसके रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं. ये वो पांच वजह हैं जिसने चीन को भारत के साथ बातचीत की मेज पर बैठने को मजबूर होना पड़ा है. एलएसी से सेना को पीछे हटाने का आदेश देना पड़ा है.

हालांकि चीन एलएसी पर शांति बहाली के लिए भारत से बात तो कर रहा है मगर ये वो चीन है जिसकी फितरत में धोखेबाजी है, इसलिए भारत को सतर्क रहना ही होगा. चीन बार बार लगातार चालाकी दिखाता रहा है, मगर भारत की चतुराई के आगे मुंह की खाता रहा है. एक बार फिर से चीन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. ये बताता है कि चीन को मालूम है कि भारत के साथ संबंधों को खराब रखना खुद उसके हित में नहीं है.

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वार्ता के बाद, मोदी ने 'एक्स' पर पोस्ट किया: "भारत-चीन संबंध हमारे देशों के लोगों और क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं. आपसी विश्वास, आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता द्विपक्षीय संबंधों का मार्गदर्शन करेंगे."

दोनों देशों के बीच सामान्य होंगे रिश्ते: विदेश सचिव

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि मोदी और जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन परिपक्वता और समझदारी के साथ और एक-दूसरे की संवेदनशीलता, हितों, चिंताओं और आकांक्षाओं के लिए आपसी सम्मान दिखाकर शांतिपूर्ण, स्थिर और लाभकारी द्विपक्षीय संबंध बना सकते हैं. पूर्वी लद्दाख विवाद पर नई दिल्ली की लगातार स्थिति का जिक्र करते हुए, मिस्री ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता की बहाली दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण के रास्ते पर लौटने के लिए जगह बनाएगी.

उन्होंने कहा, "जैसा कि आप सभी जानते हैं, यह बैठक 2020 में भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में उत्पन्न मुद्दों के समाधान और सैनिकों की वापसी तथा गश्त समझौते के तुरंत बाद हुई. स्वाभाविक रूप से, दोनों नेताओं ने पिछले कई हफ्तों से कूटनीतिक और सैन्य चैनलों पर निरंतर बातचीत के माध्यम से दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते का स्वागत किया. दोनों नेताओं ने रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति की भी समीक्षा की. उनका मानना ​​है कि दुनिया के दो सबसे बड़े देशों भारत और चीन के बीच स्थिर द्विपक्षीय संबंधों का क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और समृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

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2020 के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आ गई थी खटास

बता दें कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों एशियाई देशों के बीच संबंधों में काफी गिरावट आई थी, जो दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था. सोमवार को भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त और सैनिकों की वापसी पर एक समझौते को अंतिम रूप दिया, जो चार साल से चल रहे गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है.

बैठक में अपने उद्घाटन भाषण में मोदी ने कहा कि भारत-चीन संबंध न केवल दोनों देशों के लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा, "हम सीमा पर पिछले चार वर्षों में उत्पन्न मुद्दों पर बनी आम सहमति का स्वागत करते हैं. सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. पारस्परिक विश्वास, आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता हमारे संबंधों का आधार बने रहना चाहिए. मुझे यकीन है कि हम खुले दिमाग से बात करेंगे और हमारी चर्चा रचनात्मक होगी."

चीन पर भरोसा किया जा सकता है?

एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद क्या ये कहा जा सकता है की भारत और चीन के बीच रिश्ते अब सामान्य हो गए हैं और क्या चीन पर अब भरोसा किया जा सकता है? इसके जवाब में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि पिछले दो दिन में जो कदम हमने उठाए गए हैं, वो हमारे सामने हैं. इन पर जो काम हुआ है वो काफी समय से चल रहा है. इनसे हमारी एक तरह से जो प्रक्रिया है सामान्य रिश्ते बनाने के लिए, वो यात्रा एक तरह से चल पड़ी है. जो पीछे अभी समझौता हुआ है उससे सीमा पर शांति का रास्ता अब खुल गया है. रास्ते पर अब चलने की हम दोनों (भारत-चीन) को आवश्यकता है और जहां तक चीन पर भरोसे का सवाल है, जो हम दोनों के बीच आगे चल के प्रतिक्रिया होगी, हमे आशा है कि उससे भरोसा बढ़ेगा दोनों देशों के बीच.

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जिनपिंग का भारत-चीन संबंधों को सकारात्मक बनाए रखने का आह्वान

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन और भारत के बीच सहयोग के महत्व पर जोर दिया, प्राचीन सभ्यताओं और विकासशील देशों के रूप में उनकी साझा स्थिति का उल्लेख किया. चीनी पक्ष द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, शी ने जोर देकर कहा कि चीन और भारत के बीच सकारात्मक संबंध बनाए रखना दोनों देशों और उनके नागरिकों के मूल हितों के अनुरूप है. उन्होंने दोनों देशों के बीच संचार और सहयोग बढ़ाने का आग्रह किया, किसी भी विरोधाभास या मतभेद को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता पर बल दिया. जिनपिंग ने दोनों देशों से विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने, बहुध्रुवीय दुनिया को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अधिक लोकतंत्रीकरण के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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