हाल ही में हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के चुनाव हुए. हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी (सपा) जैसे इंडिया ब्लॉक के घटक दलों को साथ नहीं लिया और पार्टी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी थी. हरियाणा के रण में कांग्रेस को मात मिली. जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी. नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने निर्दलीयों को साथ जोड़कर अपना विधायक बेस भी बढ़ा लिया और जम्मू रीजन में खराब प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा भी कर दिया. नौबत ये आ गई कि जम्मू कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार की कैबिनेट में कांग्रेस शामिल भी नहीं हुई और अब बाहर से समर्थन देने तक की बात कह दी है.
जम्मू कश्मीर के ताजा अनुभव के बाद अब कांग्रेस और विपक्षी इंडिया ब्लॉक के लिए झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव रियल टेस्ट की तरह हो गए हैं. झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव इंडिया ब्लॉक का रियल टेस्ट कहे जा रहे हैं तो इसके पीछे भी कई वजहें हैं. हरियाणा और जम्मू कश्मीर में गठबंधन से अधिक दलों की सीधी फाइट थी.
हरियाणा में जहां इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के अपने-अपने गठबंधन थे लेकिन अधिकतर सीटों पर मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच ही रही. इसी तरह जम्मू कश्मीर में भी मिजाज एकतरफा ही नजर आया. जम्मू रीजन में जहां बीजेपी भारी रही तो वहीं घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस. झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव रियल टेस्ट कैसे हैं? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधनों की पहली बड़ी फाइट
लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला मौका होगा जब बीजेपी और कांग्रेस नहीं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी इंडिया ब्लॉक के बीच सीधी फाइट होगी. महाराष्ट्र में बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना, अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं. वहीं, कांग्रेस के साथ उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टियों का गठबंधन है.
महाराष्ट्र में एनडीए की ड्राइविंग सीट पर जहां शिंदे की शिवसेना है तो वहीं झारखंड में इंडिया ब्लॉक की अगुवाई झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) कर रही है जिसमें कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियां हैं. इंडिया ब्लॉक के सामने लोकसभा चुनाव के बाद इस पहली बड़ी चुनावी फाइट में जीत के साथ दिल्ली और बिहार चुनाव से पहले जीत का मोमेंटम बरकरार रखने की चुनौती होगी.
2- दोनों ही राज्य नेशनल पॉलिटिक्स के लिए अहम
झारखंड और महाराष्ट्र, दोनों ही राज्य नेशनल पॉलिटिक्स के लिहाज से अहम हैं. हरियाणा में बीजेपी सरकार बचाने में सफल रही थी और अब अगर झारखंड में भी नतीजे एनडीए के पक्ष में जाते हैं तो बिहार चुनाव से पहले ये इंडिया ब्लॉक के लिए झटके की तरह होंगे. बिहार और हिंदी पट्टी के दूसरे राज्यों में भी विपक्षी गठबंधन के नेताओं और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है. वहीं, महाराष्ट्र लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. सूबे के नतीजे भी नेशनल पॉलिटिक्स के लिहाज से अहम माने जा रहे हैं.
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3- दांव पर बीजेपी-मोदी को लेकर विपक्ष का नैरेटिव
हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी 240 सीटें जीतकर अकेले दम बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई थी. एनडीए ने बहुमत का आंकड़ा पार किया लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले सीटें घटकर 293 रह गई थीं. इसके बाद से ही विपक्षी इंडिया ब्लॉक के नेता यह दावे कर रहे हैं कि बीजेपी का ग्राफ गिर रहा है, पीएम मोदी के चेहरे का जादू फीका पड़ रहा है. हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद अब अगर झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में भी एनडीए सरकार बनाने में सफल हो जाता है तो यह नैरेटिव ध्वस्त हो जाएगा.
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4- साबित करना होगा कि आम चुनाव का प्रदर्शन तुक्का नहीं
झारखंड और महाराष्ट्र, दोनों ही राज्यों में इंडिया ब्लॉक का प्रदर्शन अच्छा रहा था. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से पांच सीटों पर इंडिया ब्लॉक (कांग्रेस और जेएमएम) के उम्मीदवार जीते थे. वहीं, महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटों में से 29 सीटों पर इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार जीते थे जबकि एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली थी. इंडिया ब्लॉक को इन दोनों राज्यों के चुनाव में यह साबित करना होगा कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन का प्रदर्शन तुक्का नहीं था.
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