बीजेपी, कांग्रेस, AAP, NC, PDP, चौटाला... दो राज्यों के चुनाव में किसने क्या पाया-क्या खोया? 10 Points में समझें

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हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का शोर नतीजों के साथ ही थम गया है. अब सरकार गठन की बारी है. हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लगातार तीसरी बार जीत के साथ इतिहास रच दिया है तो वहीं जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिला है.

हरियाणा से लेकर जम्मू कश्मीर तक, विधानसभा चुनाव नतीजों में सियासी दलों के लिए बड़े संदेश भी हैं. बीजेपी और कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी, इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी), जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने इन चुनावों में क्या खोया-क्या पाया?

1-बीजेपी ने बचाए गढ़, कांग्रेस ने गंवाए

हरियाणा से लेकर जम्मू कश्मीर तक, बीजेपी ने अपने मजबूत गढ़ बचाए हैं. हरियाणा में अहीरवाल रीजन और जीटी रोड बेल्ट बीजेपी का गढ़ रहे हैं. बीजेपी ने अहीरवाल बेल्ट की 11 में से नौ सीटें जीत 2019 का प्रदर्शन दोहराया है तो वहीं जीटी रोड बेल्ट का किला बचाए रखते हुए बीजेपी ने कांग्रेस के किले जाटलैंड में भी सेंध लगाई है. बीजेपी के उम्मीदवार जाटलैंड की नौ सीटों पर जीते हैं. इसके उलट कांग्रेस को गोहाना विधानसभा जैसी अपनी मजबूत सीट और हुड्डा के गढ़ मध्य हरियाणा में भी मात खानी पड़ी है.

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2- खिसक गई चौटाला परिवार की जमीन

वर्षों तक हरियाणा की सियासत की धुरी रहे चौटाला परिवार की सियासत के लिहाज से यह चुनाव नतीजे ढलान का संदेश लेकर आए. 2019 में चौटाला परिवार की आईएनएलडी एक सीट जीत सकी थी लेकिन परिवार के ही दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी 10 सीटें जीतकर किंगमेकर बनकर उभरी थी. इस बार के नतीजे देखें तो चौटाला परिवार 2019 की 11 सीटों से सिमटकर इस बार महज दो सीटों पर रह गई. दुष्यंत चौटाला खुद अपनी सीट पर पांचवे स्थान पर रहे. ऐलनाबाद जैसा दुर्ग भी आईएनएलडी नहीं बचा पाई. हालांकि, आईएनएलडी को दो सीटों पर जीत मिली जो पिछली बार के मुकाबले एक सीट ज्यादा है. 2019 की ही बात करें तो अभय चौटाला, दुष्यंत चौटाला, नैना चौटाला और रणजीत चौटाला, चौटाला परिवार के चार सदस्य हरियाणा विधानसभा पहुंचे थे लेकिन इस बार अर्जुन चौटाला इस परिवार के इकलौते विधायक होंगे.

3- हरियाणा में चली फेस पॉलिटिक्स

हरियाणा चुनाव में इस बार फेस पॉलिटिक्स का दांव चल गया. बीजेपी ने यह ऐलान कर दिया था कि नायब सिंह सैनी ही उसकी ओर से चेहरा होंगे. बीजेपी सैनी के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी तो वहीं कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं ने सीएम फेस घोषित करने से परहेज करते हुए सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले के साथ चुनावी रणभूमि में कदम रखा. सी-वोटर के सर्वे में कांग्रेस की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम पद के लिए सबसे लोकप्रिय चेहरा बनकर उभरे थे. कुमारी सैलजा भी सीएम पद के लिए लगातार दावेदारी करती रहीं. कांग्रेस ने गुटबाजी से बचने के लिए फेस पॉलिटिक्स से किनारा करना ठीक समझा लेकिन बगैर फेस के उतरी कांग्रेस पर सैनी का चेहरा भारी पड़ गया.

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4- नए पर यकीन से ज्यादा आजमाए पर भरोसा

हरियाणा चुनाव में किसान और जवान के मुद्दे अधिक हावी दिखाई दे रहे थे. कांग्रेस पहलवान आंदोलन को हरियाणवी अस्मिता से जोड़ने के साथ ही इन दो मुद्दों को लेकर अधिक आक्रामक थी. बीजेपी ने ऐन प्रचार के दौरान 24 फसलों पर एमएसपी का वादा करने के साथ ही हर हरियाणवी अग्निवीर को पक्की पेंशन वाली नौकरी की गारंटी का दांव चल दिया.

कांग्रेस ने एमएसपी की लीगल गारंटी का वादा किया और अग्निवीर का विरोध भी, लेकिन जनता ने बीजेपी पर विश्वास किया. आईएनएलडी ने बसपा, जेजेपी ने एएसपी के साथ गठबंधन कर नया विकल्प देने की कोशिश की, आम आदमी पार्टी ने भी हर सीट पर उम्मीदवार उतार खुद को विकल्प के रूप में पेश किया लेकिन जनता ने नए पर यकीन करने की जगह आजमाई पार्टियों पर भरोसा किया.

5- मेजॉरिटी पॉलिटिक्स का बोलबाला

हरियाणा से जम्मू कश्मीर तक, मेजॉरिटी पॉलिटिक्स ही चली. हरियाणा में बीजेपी ने जाट की जगह ओबीसी और एससी-एसटी, सामान्य वर्ग पर फोकस किया जिनकी आबादी सूबे में करीब 51 फीसदी है. ये रणनीति सफल भी रही. वहीं, जम्मू कश्मीर में भी मेजॉरिटी पॉलिटिक्स का दांव ही चला. जम्मू रीजन के उन जिलों में जहां हिंदू मेजॉरिटी है, वहां बीजेपी ने करीब-करीब एकतरफा अंदाज में जीत दर्ज की. जम्मू रीजन के मुस्लिम बहुल जिलों के साथ ही कश्मीर घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस का जोर देखने को मिला.

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6- घाटी में कमजोर पड़ा अलगाववादी सेंटीमेंट

लोकसभा चुनाव में इंजीनियर राशिद जैसे निर्दलीय उम्मीदवार की जीत के बाद बात इसे लेकर होने लगी थी कि क्या घाटी में अलगाववादी सेंटीमेंट मजबूत हो रहा है? लोकसभा चुनाव से पनपे नैरेटिव की हवा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने निकाल दी है. लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित इंजीनियर राशिद की अगुवाई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) पूरी घाटी में कुलांचे मार रही थी. विधानसभा चुनाव नतीजों में जनता ने एआईपी को फिर से लंगेट विधानसभा तक ही सीमित कर दिया है. एआईपी सिर्फ एक यही सीट जीत सका.

7-नैरेटिव ही नहीं, चुनाव मैनेजमेंट भी जरूरी

देश में पिछले कुछ समय से, खासकर 2014 के आम चुनाव के बाद ऐसी धारणा बन गई थी कि चुनाव नैरेटिव से जीते जाते हैं. पहले 2024 के लोकसभा चुनाव और अब हरियाणा चुनाव, इन नतीजों से साफ हो गया है कि चुनाव बस नैरेटिव से नहीं, चुनाव मैनेजमेंट से जीते जाते हैं. हरियाणा चुनाव में नैरेटिव की लड़ाई कांग्रेस ने जीती लेकिन नंबर गेम में बीजेपी भारी पड़ी. बीजेपी ने बूथ लेवल और डोर-टू-डोर कैंपेन, दोनों पर ही साथ-साथ फोकस किया और कांग्रेस बड़ी रैलियों पर अधिक निर्भर नजर आई.

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8- सेनापति से अधिक सेना जरूरी

हरियाणा में नायब सिंह सैनी का चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आगे नहीं टिकेगा, ऐसा माना जा रहा था. लेकिन बीजेपी के पास लोकल लेवल पर मजबूत संगठन की शक्ति थी. कांग्रेस की बात करें तो हुड्डा से लेकर कुमारी सैलजा से लेकर रणदीप सुरजेवाला तक, सेनापति कई थे लेकिन सेना नहीं थी. पार्टी के पास हरियाणा में प्रदेश अध्यक्ष को छोड़ दें तो संगठन के नाम पर कुछ भी नहीं है. यह बात भी कांग्रेस के लिए निगेटिव गई.

9- लेगेसी जीत की गारंटी नहीं

हरियाणा की सियासत वर्षों तक तीन लाल के इर्द-गिर्द घूमती रही है- भजनलाल, बंसीलाल और देवीलाल. इन तीन लाल के परिवार से 12 सदस्य चुनाव मैदान में उतरे थे. जब चुनाव नतीजे आए तो 9 को मात मिली और हर लाल के परिवार से केवल एक लाल ही विधानसभा का दरवाजा अपने लिए खोल सके.

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भजनलाल के परिवार से चंद्रमोहन बिश्नोई, बंसीलाल के परिवार से श्रुति चौधरी और देवीला के परिवार से अर्जुन चौटाला चुनाव जीतने में सफल रहे. ये नतीजे इस बात का संकेत माने जा रहे हैं जब लेगेसी के नाम पर सियासी परिवारों की नई पीढ़ी आसानी से चुनावी वैतरणी पार कर जाती थी. बस लेगेसी ही जीत की गारंटी नहीं है.

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10- बीजेपी को मिला मोमेंटम, कांग्रेस ने गंवाया

लोकसभा चुनाव में चार सौ पार का नारा देने वाली बीजेपी जब 243 सीटें ही जीत सकी, इस तरह की चर्चाएं तेज हो गई थीं कि क्या मोदी मैजिक फीका पड़ने लगा है? क्या बीजेपी का ग्राफ अब गिरने लगा है? क्या 2014 चुनाव के बाद विजयरथ पर सवार होकर एक के बाद एक राज्य दर राज्य जीतती चली गई बीजेपी के लिए राज्यों की राह अब मुश्किल होने वाली है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब दो राज्यों के नतीजों ने दे दिए हैं. लोकसभा चुनाव में फिसली बीजेपी ने कमबैक करते हुए जीत की लय वापस पा ली है. वहीं, कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से जो मोमेंटम मिला था, पार्टी ने वह गंवा दिया है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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