लेबनान और हिज्बुल्लाह के बीच युद्ध ने लाखों लेबनानी लोगों के जीवन को त्रस्त कर दिया है. इजरायली हमले के बाद लेबनान के दक्षिण बेरूत इलाके में स्थानीय लोग और सीरियाई नागरिक भूमध्य सागर के किनारे तंबुओं और शिविरों में शरण ले रहे हैं. इसी बीच हजारों लोग सीरिया और इराक की ओर पलायन की तैयारी कर रहे हैं. सीरिया के रास्ते पर आजतक से बातचीत में 8 साल कीसुरैया ने बताया कि उसे अपने दोस्तों और दादी की बहुत याद आएगी.
लेबनान और सीरिया की सीमा पर हजारों लोग अपने जरूरी सामानों के साथ देश छोड़ रहे हैं. बेरूत के भीतर हवाई हमले का डर ही नहीं, बल्कि एक आशंका यह भी है कि अगर हालात और बिगड़ते हैं, तो उनके पास देश छोड़ने का मौका नहीं होगा. इजरायल ने 4 अक्टूबर को लेबनान और सीरिया को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर हवाई हमला किया था, जिससे सीमा पर 10 फीट से अधिक गहरे गड्ढे बन गए और सड़क को दो हिस्सों में बांटकर ध्वस्त कर दिया.
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सुरैया को आएगी दादी की याद
8 वर्षीय सुरैया भी उन लेबनान नागरिकों में से एक है जो अपने परिवार और जरूरी सामानों के साथ लेबनान को अलविदा कह रही है. रेड क्रॉस के कार्यकर्ता इस 'नो मैन्स लैंड' में सहायता के लिए खड़े हैं. महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सीमा पार कर रहे हैं, उनके हाथों में ईंधन, खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक चीजें हैं. लेबनान ने कई दशकों में ऐसी मानवीय त्रासदी नहीं देखी है.
सुरैया का मानना है कि लेबनान अब उसके रहने के लिए सुरक्षित नहीं है और वह यहां डर महसूस करती है, इसलिए वह लेबनान छोड़ कर सीरिया जा रही है, और वहां से इराक. वह कहती है कि उसे अपने स्कूल, दोस्तों और दादी की बहुत याद आएगी. सुरैया की मां कहती हैं कि लेबनान अब रहने की जगह नहीं है और वे खतरों की वजह से देश छोड़ रहे हैं.
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घर को अलविदा कहने को मजबूरी लेबनानी
सुरैया का 7 वर्षीय भाई भी परिवार के साथ सामान लेकर निकल चुका है, और वह भी कहता है कि लेबनान में बहुत खतरा है. कुछ बच्चे पक्षियों के पिंजरे लेकर चल रहे हैं और कुछ के हाथों में खाने-पीने के सामान हैं. उनके चेहरों पर डर और चिंता साफ नजर आती है और कई मासूम बच्चों को यह भी नहीं पता कि उनका भविष्य किधर है. सीरिया से आगे इराक या मध्य पूर्व के अन्य देशों में ये लेबनानी प्रवासी कहां तक पहुंचेंगे, ये कोई नहीं जानता, लेकिन फिलहाल डर ने उन्हें लेबनान को अलविदा कहने पर मजबूर कर दिया है.
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