क्या PK बिहार में केजरीवाल जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे? 5 बड़े मुद्दों पर नीतीश-तेजस्वी से अलग राह अपनाई

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चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी की लॉन्चिंग के लिए तैयार हैं. पीके 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जन सुराज के एक्टिव पॉलिटिक्स में उतरने का औपचारिक ऐलान करेंगे. पीके बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि यह पार्टी बाकी दलों जैसी नहीं, अलग होगी. वह कई मुद्दों पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से अलग राह पर नजर भी आ रहे हैं.

ये कुछ वैसा ही है जैसा दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लॉन्चिंग के समय अरविंद केजरीवाल कहते थे. आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थापना के बाद हुए पहले ही चुनाव में गठबंधन के जरिये ही सही, सत्ता के शीर्ष का स्वाद चख लिया था. अब सवाल है कि क्या पीके क्या बिहार में केजरीवाल जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे?

नीतीश-तेजस्वी से अलग राह पर पीके

नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू बिहार में अपनी सरकार के दौरान हुए काम गिना रही है, सुशासन को उपलब्धि बता रही है. जेडीयू डबल इंजन से तेज विकास के वादे लेकर जनता के बीच जा रही है. तेजस्वी यादव भी रोजगार पर फोकस किए हुए हैं. तेजस्वी आरजेडी के महागठबंधन सरकार में रहते हुई भर्तियों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच ले जा रहे हैं, लेकिन शराबबंदी जैसे मुद्दों पर मुखर होने से सियासी पार्टियां बच रही हैं. पीके कई बड़े मुद्दों पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से अलग राह पर बढ़ते नजर आ रहे हैं.

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1- शराबबंदी

पीके शराबबंदी को लेकर मुखर हैं. उन्होंने सत्ता में आने पर एक घंटे में शराबबंदी खत्म करने की बात कही थी और अब कहा है कि सरकार गठन के बाद 15 मिनट में ही शराबबंदी खत्म करेंगे. शराबबंदी का फैसला जब लागू हुआ था, तब सूबे में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार थी. नीतीश कुमार इसके बाद बीजेपी के साथ गए, महागठबंधन में आए और फिर बीजेपी के साथ गए लेकिन शराबबंदी का फैसला लागू ही रहा. बीजेपी हो या आरजेडी, हर पार्टी महिला वोटबैंक का ध्यान रखते हुए शराबबंदी पर खुलकर बोलने से बच रही है लेकिन पीके मुखर हैं. उन्होंने ये कहा भी कि शराबबंदी खत्म करने की बात पर मुझसे कहा गया कि महिलाएं वोट नहीं देंगी. नहीं देना चाहें तो ना दें, लेकिन गलत नहीं बोलूंगा.

2- रोजगार गारंटी

बिहार में बेरोजगारी बड़ी समस्या है. तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाते हुए यात्रा निकाली, 10 लाख रोजगार का वादा किया. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और महागठबंधन बहुमत के आंकड़े के करीब तक पहुंच सका तो इसके पीछे रोजगार पर वादे का रोल माना गया. तेजस्वी इस बार भी रोजगार को मुद्दा बनाते हुए सत्ता में आने पर रिक्त पद भरने के वादे कर रहे हैं. एनडीए भी नीतीश सरकार में हुई भर्तियों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रहा है. पीके ने भी इस पर फोकस कर दिया है.

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प्रशांत किशोर ने पांच लाख, 10 लाख नौकरियों के वादे को मूर्ख बनाने की कोशिश बताते हुए कहा कि बिहार में स्वीकृत सरकारी पद सिर्फ 23 लाख हैं जो आबादी के अनुपात में करीब दो फीसदी ही है. 98 फीसदी लोगों को ये विकल्प नहीं मिल सकता. उन्होंने विकसित देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि तरक्की का रास्ता सरकारी नौकरियों से नहीं, शिक्षा और पूंजी की उपलब्धता से बना है. नॉर्वे, स्वीडन जैसे देशों में लोग नौकरियों के लिए रेलवे की परीक्षा नहीं देते, उन्हें अच्छी शिक्षा और रोजगार के लिए सुलभ पूंजी मिलती है. यही मॉडल जन सुराज भी बिहार में लागू करेगा और इस पर 10 अर्थशास्त्री काम कर रहे हैं.

3- फैक्ट्रियों का रिवाइवल

नीतीश कुमार ने उद्योग धंधों को लेकर कहा था कि हमारे यहां समंदर नहीं है. वह यह भी कह चुके हैं कि बिहार में सिर्फ आलू और बालू बचा है, बाकी सब झारखंड में चला गया. प्रशांत किशोर ने इसे लेकर नीतीश पर तंज करते हुए कहा कि तेलंगाना, हरियाणा में कौन सा समंदर है जो विकास दर में बिहार से कहीं बेहतर स्थिति में हैं. पीके चीनी मील बंद होने पर सवाल उठाते हुए यह भी कहते हैं कि गन्ने के खेत तो बिहार में ही हैं. पीके का फोकस बंद पड़ी फैक्ट्रियों के रिवाइवल पर भी है.

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4-हर फील्ड से उम्मीदवार

अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी की ही तर्ज पर पीके का फोकस भी हर फील्ड से जुड़े लोगों को पार्टी से जोड़ने, चुनाव मैदान में उतारने पर है. पीके ने विधानसभा चुनाव में 40 महिलाओं, 40 मु्स्लिमों को टिकट देने का ऐलान कर दिया है. पीके पूर्व अफसर से लेकर न्यायाधीश, शिक्षाविद और मजदूर तक, हर वर्ग से उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं. वह यह संदेश देने की कोशिश में हैं कि जन सुराज हर फील्ड से जुड़े लोगों, सभी जाति-वर्ग, सर्व समाज की पार्टी है.

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5- पढ़े-लिखे तबके पर फोकस

पीके का फोकस प्रबुद्ध वर्ग पर है. पीके हाल ही में पटना में प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के साथ बैठक कर कहा था कि नेताओं ने ये भ्रम फैला दिया है कि राजनीति में जाति और धनबल की जरूरत होती है. समाज का एक बड़ा वर्ग जो शिक्षित है, चरित्र भी अच्छा है, राजनीति से दूरी बनाए हुए है. जो सक्षम हैं और जिनकी सोच समाज में कुछ अच्छा करने की है, वे लोग इसी भ्रम की वजह से राजनीति से दूरी बनाकर रहना चाहते हैं. पीके यह भी कह रहे हैं कि युवाओं को लेकर आइए, जन सुराज हर स्तर के चुनाव अपने खर्च पर लड़ाएगा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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