डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद कई बड़े ऐलान किए हैं. इसके बाद दुनियाभर में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आखिर ट्रंप का शासनकाल अन्य देशों पर कैसा प्रभाव डालेगा. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर ट्रंप 2.0 अमेरिका-भारत रक्षा संबंधों पर कैसा असर डालेगा. दरअसल, अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने एक व्यापारिक विदेश नीति पर जोर दिया था, जिसमें अमेरिकी रक्षा निर्यात को प्राथमिकता दी गई थी और भारत जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को मजबूत किया गया था. लेकिन उनका दूसरा कार्यकाल इस महत्वपूर्ण साझेदारी के लिए कई अवसरों और चुनौतियों को लेकर आ सकता है.
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में प्रमुख प्रगति
हालिया वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है. दोनों देशों ने सैन्य समन्वय, आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें से कुछ प्रमुख समझौते हैं:
सुरक्षा आपूर्ति व्यवस्था (SOSA): यह एक गैर-बाध्यकारी समझौता है, जिसके तहत दोनों देश राष्ट्रीय रक्षा को बढ़ावा देने वाले सामान और सेवाओं के लिए आपसी प्राथमिकता समर्थन प्रदान करेंगे. यह समझौता संकट के समय में महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करेगा.
लायजन अधिकारी नियुक्ति के लिए समझौता (MoA): इस समझौते के तहत दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच समन्वय को मजबूत करने के लिए लायजन अधिकारियों का आदान-प्रदान किया जाएगा.
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के बीच कुछ प्रमुख समझौते हुए थे, जिनमें कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA), बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) और इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स (ISA) शामिल हैं. इन समझौतों ने सैन्य सहयोग, खुफिया जानकारी साझा करने और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ावा दिया.
प्रमुख रक्षा समझौते और हाल की उपलब्धियां
2024 में भारत और अमेरिका ने 31 MQ-9B सी गार्डियन ड्रोन के लिए 3.5 बिलियन डॉलर का एक ऐतिहासिक सौदा किया. यह अधिग्रहण न केवल भारत की खुफिया, निगरानी और पहचान (ISR) क्षमता को मजबूत करता है, बल्कि इसमें महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का भी प्रावधान है, जो भारत के रक्षा निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देगा.
एक और महत्वपूर्ण समझौता जनरल इलेक्ट्रिक F414 इंजन के सह-निर्माण के बारे में है, जो भारत के हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस के लिए है. हालांकि, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों के कारण इन इंजनों की डिलीवरी में देरी हुई है और भारत SOSA के तहत अमेरिकी पक्ष से इन इंजनों की शीघ्र आपूर्ति के लिए दबाव डाल सकता है.
भारत के 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम पर निर्णय के मद्देनज़र, अमेरिका F/A-18 सुपर हॉर्नेट और F-21 जेट्स को शामिल करने का प्रस्ताव रख सकता है, जिससे यह सौदा भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों को और मजबूत कर सकता है.
ट्रंप 2.0 के तहत संभावित अवसर
ट्रंप के तहत रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने और इंडो-पैसिफिक रणनीति को मजबूत करने पर जोर देने से भारत-अमेरिका सहयोग में वृद्धि हो सकती है.
रक्षा खरीदारी में तेजी: ट्रंप का द्विपक्षीय सौदों पर जोर इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति करवा सकता है, जिसमें अतिरिक्त ड्रोन, मिसाइल रक्षा प्रणालियां और नौसैनिक प्लेटफ़ॉर्म शामिल हो सकते हैं.
चीन के खिलाफ सख्त रुख: ट्रंप का चीन के प्रति सख्त रुख और क्वाड ढांचे पर जोर देने से सुरक्षा और रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है.
नई प्रौद्योगिकियां: ट्रंप का व्यापारिक दृष्टिकोण उन्नत प्रौद्योगिकियों जैसे कि एआई-आधारित बिना पायलट प्रणालियां, साइबर रक्षा और अंतरिक्ष आधारित क्षमताओं के लिए प्रतिस्पर्धात्मक प्रस्तावों को बढ़ावा दे सकता है.
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ट्रंप की नीतियों से क्या नुकसान हो सकता है
हालांकि इन अवसरों के बावजूद कुछ चुनौतियां भी सामने हैं:
1. व्यापारिक दृष्टिकोण: ट्रंप का व्यापार घाटे पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को अमेरिकी रक्षा उपकरणों के आयात में वृद्धि करने का दबाव बन सकता है, जो भारत के "आत्मनिर्भर भारत" अभियान को प्रभावित कर सकता है.
2. CAATSA प्रतिबंध: ट्रंप के पहले कार्यकाल में रूस से रक्षा प्रणालियां खरीदने वाले देशों पर **काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट (CAATSA) के तहत प्रतिबंध लगाए गए थे. भारत के रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर भविष्य में प्रतिबंध एक जटिल समस्या बन सकते हैं.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में एकतरफा निर्णयों, जैसे बहुपक्षीय समझौतों से अचानक हटने के कारण वैश्विक साझेदारों के लिए अनिश्चितताएं पैदा हुई थीं. भारत को ट्रंप 2.0 के तहत अमेरिकी नीतियों में संभावित असंगतियों से निपटना होगा.
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संयुक्त सैन्य अभ्यास और ऑपरेशनल सहयोग
संयुक्त सैन्य अभ्यास भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग का एक अहम हिस्सा बने हुए हैं. प्रमुख अभ्यासों में शामिल हैं:
- मालाबार अभ्यास: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा आयोजित क्वाड-नेतृत्व वाला नौसैनिक अभ्यास.
- युद्ध अभ्यास (Yudh Abhyas): एक संयुक्त सेना अभ्यास, जो सामरिक समन्वय और संचालन की तत्परता को बढ़ावा देता है.
- टाइगर ट्रायम्फ: त्रि-सेवा अभ्यास जो मानवीय सहायता और आपदा राहत की क्षमताओं को प्रदर्शित करता है.
- कोप इंडिया: एक उन्नत वायुसेना अभ्यास, जो हवाई युद्ध और सामरिक समन्वय पर जोर देता है.
ये अभ्यास क्षेत्रीय स्थिरता और सैन्य सहयोग में साझा प्राथमिकताओं को उजागर करते हैं.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में रक्षा उपलब्धियां
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका रक्षा सौदों में 15 बिलियन डॉलर से अधिक की वृद्धि हुई थी. इसमें शामिल थे...
MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर (24): 2.6 बिलियन डॉलर का सौदा, जिसने भारत की एंटी-सबमरीन और सतही युद्ध क्षमता को मजबूत किया.
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- P-8I समुद्री गश्ती विमान: समुद्री डोमेन जागरूकता को बढ़ावा देने वाला एक और महत्वपूर्ण सौदा.
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