पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में इंतकाल हो गया. वह ताउम्र बेहद शांत, सौम्य, विनम्र और सादगी भरे शख्सियत के तौर पर पहचाने जाते रहे. प्रधानमंत्री के तौर पर अपनेदस साल के कार्यकाल के दौरान उन्हेंतमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा लेकिनउन्होंने कुछ ऐसेबोल्ड फैसले भी लिए, जिनके लिए उन्हें याद किया जाता रहेगा.इन्हीं फैसलों में से एक था- भारत और अमेरिका की न्यूक्लियर डील... लेकिन इस डील का जिक्र करने से पहले 18 जुलाई 2005 की उस रात की कहानी जान लेना जरूरीहै, जिसकी वजह से दुनियामनमोहन सिंह के बोल्ड अंदाज से रूबरू हो पाई.
1974 में राजस्थान के पोखरण में देश के पहले परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में तनाव बना रहा. लेकिन जब मई 2004 में मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्हें अमेरिका से रिश्ते सुधारने की पहल की.जुलाई 2005 में मनमोहन सिंह ने अमेरिका का दौरा भी किया. लेकिन मनमोहन सिंह ही नहीं कोंडोलिजा राइस भी इस डील को फाइनल कराने मेंएक इंपोर्टेंट किरदार रहीं.कोंडोलिजा राइस ने जनवरी 2005 में अमेरिका के विदेश मंत्री का पद संभाला था. उन्होंने विदेश मंत्री की कुर्सी संभालते ही भारत के साथ न्यूक्लियर डील को अपने मेन एजेंडे में शामिल किया. यहीवजह रही कि वह कुछ ही महीने के भीतर मार्च में ही भारत दौरे पर आ गईं. यहांउन्होंनेप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री नटवर सिंह से मुलाकात की. उन्होंने दोनों नेताओं को बताया कि राष्ट्रपति बुश भारत के साथ इस डील को लेकर बहुत सकारात्मक हैं.
महीनों के मंथन के बादडॉ. मनमोहन सिंह 17 जुलाई 2005 को अमेरिका गए. इस दौरान उनके साथ उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी था. मनमोहन सिंह को पूरी उम्मीद थी कि वह अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील को अंतिम रूप देंगे. लेकिन अमेरिका पहुंचने से पहले उन्होंने दो बड़े निर्णायक फैसले लिए. पहला- उन्होंने एटॉमिक एनर्जी कमीशन (एईसी) के चेयरमैन अनिल काकोडकर को अपने प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया. उन्हें आभास हो गया था कि अमेरिका के साथ इस प्रस्तावित डील को लेकर एईसी आपत्ति उठा सकताहै.
लेकिन इस प्रस्तावित डील को लेकर लेफ्ट पार्टियां सहज नहीं थी. लेफ्ट पार्टियों को लगता था किइस समझौते से भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर असर पड़ेगा और स्वायत्तता पर अमेरिका की छाप पड़ेगी. इन पार्टियों का मानना था कि ये समझौता अमेरिका की ओर से फेंका गया एक जाल है, जिसका मकसद भारत को सैन्य और रणनीतिक स्तर पर खुद से बांधना है.
नटवर सिंह को एक दिन पहले भेजा था अमेरिका...
लेकिन लेफ्टपार्टियां ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी की आपत्ति भी मनमोहन सिंह के लिए चिंता का सबब थी. इसका कारण था कि सोनिया गांधीलेफ्ट पार्टियों से अच्छे संबंध बनाए रखना चाहती थीं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि यूपीए सरकार के भविष्य के लिए लेफ्ट पार्टियों का साथ जरूरी भी था.
उनका दूसरा बड़ा निर्णायक फैसला विदेश मंत्री नटवर सिंह को एक दिन पहले अमेरिका भेजकर एग्रीमेंट के ड्राफ्ट को तैयार कराना था. नटवर सिंह पर मनमोहन सिंह को ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी को भी भरोसा था. मनमोहन सिंह सोनिया गांधी को भरोसे में लेने के लिए नटवर सिंहपर ही निर्भर थे.
बहरहाल,वॉशिंगटन डीसी पहुंचने के तुरंत बाद मनमोहन सिंह ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक की. प्रतिनिधिमंडल की यह बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति के गेस्ट हाउस ब्लेयर हाउस में हुई, जहां मनमोहन सिंह ठहरे हुए थे. वह दोनों देशों के बीच होने वाली डील के मसौदे पर चर्चा करना चाहते थे. इस मीटिंग में विदेश सचिव श्याम सरन भी थे, जो कुछ समय से अमेरिका में ही रहकर इसकी तैयारियों में जुटे थे. इस बैठक में मौजूद सभी लोगों को डील का ड्राफ्ट दिया गया, जिसके बाद मनमोहन सिंह ने सभी से इस पर उनकी राय जाननी चाही. ज्यादातर लोगों ने महसूस किया कि इस डील को अब अमलीजामा पहना देना चाहिए. लेकिन बैठक में मौजूद कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हें लगा कि अमेरिका के साथ भारत के इस एग्रीमेंट से हम उनके बहुत अधिक प्रभाव में आ जाएंगे.
अनिल काकोडकर ने बताया कि अमेरिका चाहता था कि भारत के सभी न्यूक्लियर रिएक्टर्स को इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के सुपरविजन में लाया जाए. लेकिन भारत को ये स्वीकार्य नहीं था.श्याम सरन का कहना है कि मनमोहन सिंह को लेफ्ट पार्टियों का गुस्सा सताए जा रहा था. मनमोहन सिंह ने बाद में नटवर सिंह से कहा था कि पता नहीं, मैं इस डील को लेकर लेफ्ट पार्टियों को भरोसे में ले भी पाऊंगा या नहीं...
दरअसल इस संभावित एग्रीमेंट को लेकर एक बड़ी चिंता ये थी कि इस डीलके जरिए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को भारत के सिविल परमाणु संयंत्रों की जांच करने की अनुमति दी जाएगी. इसकेचलते मनमोहन सिंह एक समय पर इस डील से पीछे हटने पर मजबूर हो गए थे. उस दिन ब्लेयर हाउस में मैराथन बैठकों का दौर खत्म हुआ तो मनमोहन सिंह पूरी तरह से स्पष्ट थे कि उन्हें क्या करना है. उनकीइस आपत्ति सेनिकोलस बर्न्स को अवगत कराया गया. बाद में बर्न्स ने ये जानकारी राष्ट्रपति बुश और कोंडोलिजा राइस को दी. राइस ने बुश से कहा कि ऐसे काम नहीं बनेगा. सिंह ऐसे होने नहीं देंगे.
इसी असमंजस के बीच18 जुलाई की रात विलार्ड होटल में नटवर सिंह के फोन की घंटी बजी. नटवर सिंह भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विलार्ड होटल में ठहरे हुए थे. नींद में ही नटवर सिंह ने फोन का रिसीवर उठाया. कोंडोलिजा राइस फोन पर थीं. उन्होंने नटवर से कहा कि मैं आपसे मिलना चाहती हूं. वह रात में इस वक्त उनके फोन और मिलने की उनकी इच्छा से हैरान रह गए. नटवर सिंह ने राइस से कहा कि मैं आता हूं आपसे मिलने. इस पर राइस ने कहा कि नहीं, मैं आपसे मिलने आ रही हूं. नटवर सिंह भांप गए कि ड्राफ्ट एग्रीमेंट को लेकर वह उनसे मिलना चाह रही हैं.
इस वाकये के सालों बाद कोंडोलिजा राइस ने अपनी किताब No Higher Honour में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि 18 जुलाई तड़के 4.30 बजे ही मैं नींद से जागी और मैंने सोच लिया कि इस डील को मैं बर्बाद नहीं होने दूंगी. मनमोहन सिंह 19 जुलाई की सुबह 10 बजे ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति बुश से मिलने वाले थे. मैंने सबसे पहले निकोलस बर्न्स को फोन कर कहा कि मैं इस डील के फेलियर के लिए तैयार नहीं हूं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मेरी मीटिंग का बंदोबस्त करें. बर्न्स ने कुछ देर बाद मुझे फोन कर बताया कि मनमोहन सिंह उनसे मिलना नहीं चाहते. तो मैंने कहा कि विदेश मंत्री नटवर सिंह से मेरी बात कराइए. इस तरह मैंने नटवर सिंह से बात की.
कोंडोलिजा राइस नटवर सिंह को फोन करने के कुछ देर बाद उनके होटल पहुंचीं. नटवर सिंह बताते हैं कि उस समय सुबह के 6.30 बज रहे थे. मैं अपने ड्रेसिंग गाउन में ही था. राइस ने पूछा कि प्रधानमंत्री ने मुझसे मिलने से इनकार क्यों कर दिया? नटवर बताते हैं कि मैंने उन्हें बताया कि वह (मनमोहन सिंह) आपको 'ना'नहीं कहना चाहते. राइस ने कहा कि मुझे उनसे मिलने दीजिए. मैं इस डील को बचाना चाहती हूं. उनसे दोबारा पूछिए.
इस पर नटवर सिंह ने मनमोहन सिंह को फोन कर कहा कि वो आ रही हैं...आप मिल लो.मनमोहन सिंह सुबह आठ बजे ब्लेयर हाउस में कोंडोलिजा राइस से मिलने को तैयार हो गए. इस मीटिंग में राइस ने मनमोहन सिंह से कहा कि आप मुझे बताइए कि कहां दिक्कत आ रही है? समस्या क्या है, मुझे बताएं... मैं उसका समाधान करना चाहती हूं. आप और राष्ट्रपति बुश भारत-अमेरिका संबंधों को नया आयाम देने जा रहे हैं. मुझे पता है कि यह आपके लिए मुश्किल भरा है लेकिन ये राष्ट्रपति के लिए भी मुश्किल है. मैं यहां आपसे यह कहने आई हूं कि अपने अधिकारियों से कहें कि इस डील पर आगे बढ़ें और राष्ट्रपति से मिलने से पहले इस पर मुहर लगा दें. इस तरह मनमोहन सिंह ने इस डील पर एक बार फिर आगे बढ़ने की हामी भरी. मनमोहन सिंह से मिलने के बाद राइस सीधे राष्ट्रपति बुश से मिलने पहुंची और उन्हें बताया कि इस एग्रीमेंट को ग्रीन सिग्नल मिल गया है.
इस बीच तय समय पर सुबह 10 बजे मनमोहन सिंह ने ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति बुश से मुलाकात की. अंदर मीटिंग चल रही थी, नटवर सिंह, पृथ्वीराज चव्हाण, एमके नारायणन और कोंडोलिजा राइस बाहर इंतजार कर रहे थे. जब मनमोहन सिंह और बुश मीटिंग खत्म कर बाहर निकले तो दोनों मुस्कुरा रहे थे.उस दिन को याद करते हुए नटवर सिंह ने बाद में बताया था कि जैसे ही दोनों नेता बाहर निकले. मैंने कहा- हो गया है..
19 जुलाई को भारत लौटने से पहले काकोडकर ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में 17 जुलाई की रात के वाकये पर दोनों के बीच चर्चा हुई. मनमोहन सिंह ने उनसे कहा कि मैं उस दिन पूरी रात सो नहीं पाया और प्रार्थना करता रहा.
(वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कि किताब हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड से साभार)
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