जर्मनी, नॉर्वे से फ्लोरिडा तक... लोन वुल्फ टेररिज्म कैसे सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती साबित हो रहा

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साल 2019 में ग्लोबल टैररिज्म इंडेक्स में लोन वुल्फ आतंक का ग्राफ बढ़ता दिखा. माना गया कि आने वाले समय में ये और खौफनाक हो सकता है. यही हुआ भी. जर्मनी में हाल में एक सऊदी डॉक्टर ने क्रिसमस बाजार में गाड़ी घुसा दी, जिसमें कई मौतें हो चुकीं, जबकि दो सौ घायल हैं. ठीक आठ साल पहले बर्लिन में एक इस्लामिक चरमपंथी ने ट्रक से क्रिसमस मार्केट पर हमला किया था, जिसमें 13 लोग मारे गए थे. पुलिस का कहना है कि यह अकेले हमलावर का काम है, यानी आगे कोई खतरा नहीं. हालांकि यही बात ज्यादा खतरनाक हो सकती है.

क्या है लोन वुल्फ अटैक

ग्लोबल टैररिज्म इंडेक्स के मुताबिक, सत्तर के दशक में लोन वुल्फ अटैक केवल 5 प्रतिशत था, जो 2018 के बाद बढ़ते हुए 70 फीसदी हो गया. ये वो हमला है, जो अकेला व्यक्ति करता है. हालांकि इस अटैक के पीछे हमेशा कोई न कोई खास आइडियोलॉजी होती है. वे किसी खास सोच से प्रेरित होते हैं, और कई बार उस सोच से जुड़ी संस्थाएं उन्हें फंड भी करती हैं ताकि वे हिंसा को अंजाम दे सकें.

कैसे करते हैं ये आतंकी काम

आमतौर पर लोन टैररिस्ट्स सामान्य आबादी के बीच ही उठते-बैठते हैं. ऐसे में उनके हमले की ट्रैकिंग पुलिस या इंटेलिजेंस भी नहीं कर पाती. यही बात लोन वुल्फ टैररिज्म को ज्यादा खतरनाक बना देती है. सुरक्षा एजेंसियों के लिए आतंक या ये पैटर्न बेहद चुनौतीभरा साबित हो रहा है. इसमें डार्कनेट पर काम होता है, जो बेहद गोपनीय है, इससे हमला होने तक इसकी भनक तक नहीं लग पाती. आमतौर पर लोन वुल्फ किसी आइडियोलॉजी पर काम तो करते हैं, लेकिन वे आतंकी गुट में सीधे पहुंच नहीं रखते. ऐसे में हमलावर के पकड़ाने के बाद भी गुट तक पहुंचने की संभावना कम ही रहती है.

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German Christmas market lone wolf attack what is it photo AP

टैररिस्ट गुट भी दे रहे बढ़ावा

आतंकी संगठन खुद लोन वुल्फ टैररिज्म को प्रमोट कर रहे हैं. वे इसे डोमेस्टिक टैररिज्म कहते हैं. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि इस्लामिक स्टेट का हेडक्वार्टर सीरिया में था. अगर उसे पश्चिम के किसी देश में आतंकी गतिविधि करनी है तो इसका भारी इंतजाम करना होगा. ये काफी खर्चीला तो होगा ही, इसके फेल होने का भी डर रहता है. ऐसे में वो ऑनलाइन फोरम से अपनी सोच वाले लोगों को जोड़ेगा, और उन्हें अपने ही देश में हमलों के लिए उकसाएगा. ये हींग लगे, न फिटकरी, रंग भी चोखा, जैसा मामला रहता है.

कब और कैसे शुरू हुआ लोन वुल्फ अटैक

वैसे तो आतंकी लंबे समय से सुसाइड बॉम्बर की तरह काम करते रहे, जो टैररिज्म की यही श्रेणी है, हालांकि ये टर्म नब्बे के दशक में आई. वाइट सुप्रीमिस्ट यानी वे लोग, जो रंगभेद के समर्थक थे, उन्होंने अपील की कि एक-सी सोच वाले लोग हिंसक गतिविधियों को अंजाम देना शुरू करें. एक्ट अलोन- लेकिन वाइट सुप्रीमेसी की बजाए इसे इस्लामिक चरमपंथियों ने लपक लिया.

इस्लामिक स्टेट के प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल अदनानी ने सितंबर 2014 में लोन वुल्फ अटैक करने की अपील की थी. अदनानी का कहना था कि अगर आप हथियार अरेंज कर सकते हों, तो उससे या फिर अपनी गाड़ी से ही जितना हो सके, अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के लोगों को नुकसान पहुंचाएं. लोन वुल्फ टैररिज्म का बड़ा उदाहरण साल 2019 में न्यूजीलैंड में दिखा, जब एक चरमपंथी ने क्राइस्टचर्च में मस्जिदोंपर हमला कर 50 से ज्यादा जानें ले लीं, साथ ही हमले की लाइव स्ट्रीमिंग भी की.

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German Christmas market lone wolf attack what is it photo Getty Images

अमेरिका में हमलों का ये पैटर्न आम होता जा रहा है. वहां प्रोफाइल्स ऑफ इनडिविजुअल रेडिकलाइजेशन इन यूएस नाम से एक प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसमें ट्रैक रखा जाता है कि देश में कितने हमले लोन वुल्फ हैं. इसमें पाया गया कि वहां हो रहे आतंकी हमलों में 70 फीसदी को अकेले लोग अंजाम दे रहे हैं. इसमें इस्लामिक चरमपंथी ही नहीं, वाइट सुप्रीमिस्ट भी शामिल हैं.

कई बार हमलावर सीधे ही किसी चरमपंथी गुट से जुड़े होते हैं तो कई बार ये ऑनलाइन कंटेंट देखते हुए उससे प्रेरित हो जाते हैं और हमले की योजना बना लेते हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार, चूंकि ऐसे लोगों का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं होता, लिहाजा वे हथियार चलाने या बम बनाने की ट्रेनिंग भी ऑनलाइन लेते हैं. डार्कनेट पर रेडिकल सोच वाले लोग ऐसे काम में एक-दूसरे की मदद करते हैं. ग्लोबल टैररिज्म इंडेक्स की मानें तो पश्चिम, खासकर पश्चिमी यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और ओशिनिया में हाल के सालों में ऐसे मामले बढ़े.

कुछ लोन वुल्फ अटैक, जिसमें मास किलिंग हुई

- साल 2011 में हुआ नॉर्वे अटैक. इसमें ओस्लो में हुए ब्लास्ट में 77 लोग मारे गए.

- साल 2016 में अमेरिका के फ्लोरिडा में एक नाइटक्लब पर अटैक में 49 मौतें हुईं.

- इसी साल फ्रांस में आतंकी ने त्योहार के बीच ट्रक चला दी, जिसमें 80 से ज्यादा लोग खत्म हो गए.

- साल 2018 में यहूदी सिनेगॉग पर अटैक में 11 लोग मारे गए थे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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