बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला चर्चा में बना है. अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर को खुदकुशी कर ली थी. अतुल ने अपनी मौत के लिए पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग सिंघानिया और चाचा सुशील सिंघानिया को जिम्मेदार ठहराया था. अतुल ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद से ही निकिता और उसके परिवार वाले किसी न किसी बहाने से उनसे पैसे मांगते थे.
अतुल और निकिता की शादी 2019 में हुई थी. दोनों का एक बेटा भी है. हालांकि, शादी के सालभर बाद से ही दोनों अलग-अलग रह रहे थे.
अपनी मौत से पहले अतुल ने लगभग डेढ़ घंटे का एक वीडियो भी पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने बताया था कि निकिता और उसके परिवार वालों ने उनके खिलाफ कई सारे झूठे केस दर्ज करवा दिए थे. अतुल और निकिता कई साल से अलग-अलग रह रहे थे. दोनों के बीच तलाक की प्रक्रिया चल रही थी. एलिमनी को लेकर बहस भी चल रही थी. अतुल और निकिता का मामला जौनपुर की फैमिली कोर्ट में चल रहा था.
बहरहाल, अतुल सुभाष का मामला सामने आने के बाद एक धड़ा ऐसा भी है जो तलाक के कानूनों में खामियां निकाल रहा है. भारतीय समाज में तलाक को अच्छा नहीं माना जाता है. फिर भी हर साल लाखों की संख्या में तलाक के मामले अदालतों में जाते हैं.
क्या भारत में बढ़ रहे हैं तलाक के मामले?
आजादी के बाद 50 के दशक में हिंदू कोड बिल आया. इस कानून ने महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया. इसके बाद 1976 में इसमें संशोधन किया गया और पति-पत्नी को सहमति से तलाक की अनुमति मिली.
अमेरिका और यूरोपीय देशों से इतर भारतीय समाज में तलाक या फिर शादी के बाद अलग-अलग रहने को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है. लेकिन समय के साथ-साथ तलाक के मामले भी बढ़े हैं.
भारत में कितने लोग तलाकशुदा हैं? इसका आखिरी आधिकारिक आंकड़ा 2011 का है, क्योंकि तभी जनगणना हुई थी. 2011 की जनगणना के मुताबिक, 13.62 लाख से ज्यादा भारतीय तलाकशुदा थे. ये कुल आबादी का कुल 0.11 फीसदी है. पुरुषों की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं की संख्या लगभग दोगुनी है. उस समय तक जहां तलाकशुदा पुरुषों की संख्या 4.52 लाख थी, तो ऐसी महिलाओं की संख्या 9.09 लाख से ज्यादा थी.
इससे भी ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि तलाकशुदा से तीन गुना ज्यादा संख्या ऐसे लोगों की थी जो शादी के बाद अलग-अलग रह रहे थे. पति या पत्नी से अलग रह रही आबादी 35.35 लाख से ज्यादा थी. इनमें भी महिलाएं ही ज्यादा थीं. करीब 24 लाख महिलाएं अपने पति से अलग रह रही थीं.
एक आंकड़ा ये भी हैरान करता है कि शहरों की तुलना में गांवों में तलाकशुदा लोगों की संख्या ज्यादा है. शहरों में 5.04 लाख तलाकशुदा थे तो गांवों में 8.58 लाख से ज्यादा. इतना ही नहीं, गांवों में लगभग 24 लाख लोग ऐसे थे जो पति या पत्नी से अलग रह रहे थे.
इससे पहले जब 2001 में जनगणना हुई थी तो उसमें सामने आया था कि 33.31 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे जो या तो तलाकशुदा थे या फिर अलग-अलग रह रहे थे. इस हिसाब से देखा जाए तो 2011 में तलाकशुदा या अलग-अलग रह रहे लोगों की आबादी 50 लाख से ज्यादा हो गई थी.
हमारे देश में तलाक या सेपरेशन (पति-पत्नी का अलग-अलग हो जाना) से जुड़े मामले फैमिली कोर्ट में निपटाए जाते हैं. सरकार के मुताबिक, देशभर में 800 से ज्यादा फैमिली कोर्ट्स हैं. इन्हीं अदालतों में तलाक, सेपरेशन, एलिमनी, गुजारा भत्ता, पति-पत्नी के बीच संपत्ति का विवाद और बच्चे की कस्टडी जैसे विवाद निपटाए जाते हैं.
आंकड़े बताते हैं कि फैमिली कोर्ट्स में दायक मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 2023 के आखिरी तक इन फैमिली कोर्ट्स में लगभग साढ़े 11 लाख मामले पेंडिंग थे.
लोकसभा में सरकार ने इसी साल फरवरी में फैमिली कोर्ट्स में दायर मुकदमों और निपटाए गए मामलों की जानकारी दी थी. इसके मुताबिक, 2023 में देशभर में फैमिली कोर्ट्स ने 8.26 लाख मामलों का निपटारा हुआ था. यानी, हर दिन औसतन 2,265 मामले निपटाए गए थे. इस हिसाब से देखा जाए तो तलाक या पति-पत्नी के बीच विवाद से जुड़े औसतन 94 मामलों को निपटाया गया. इससे पहले 2022 में 7.44 लाख मामलों को निपटाया गया था.
टूटती शादियां!
भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. ऐसी जगहों पर तलाक, दूसरी शादी या सेपरेशन को सामाजिक बुराई समझा जाता है. शायद यही वजह है कि तमाम परेशानियों के बावजूद यहां रिश्ते बने रहते हैं.
लेकिन, अब भारत में भी शादियां टूटने लगी हैं. लोग ज्यादा समय तक ऐसे रिश्ते में नहीं बने रहते, जहां समझौता करना पड़े. सर्वे बताते हैं कि अब तलाक सिर्फ शहर तक सीमित नहीं हैं.
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, 2023-24 में शहर में रहने वाली महिलाओं में से 0.7 फीसदी तलाकशुदा थीं. जबकि, तलाकशुदा पुरुष 0.5 फीसदी थी.
भले ही भारत में तलाक के मामले बढ़ रहे हों. पति और पत्नी में मनमुटाव बढ़ रहा हो. लेकिन अब भी भारत में तलाक की दर सबसे कम है. भारत में तलाक की दर 1 फीसदी के आसपास है. यानी, यहां होने वाली हजार शादियों में से महज एक फीसदी ही तलाक पर खत्म होती है.
वर्ल्ड बैंक और OECD की रिपोर्ट्स बताती हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा तलाक की दर पुर्तगाल में है. यहां तलाक की दर 92% है. पुर्तगाल ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्यादा तलाक की दर यूरोपीय देशों में ही है. सबसे ज्यादा तलाक की दर के मामले में अमेरिका 19वें नंबर पर है. यहां तलाक की दर 45 फीसदी है.
आखिर में, तलाक पर क्या है कानून?
हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू होता है. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में 'तलाक' का प्रावधान किया गया है. इसमें तलाक के कुछ आधार दिए गए हैं.
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक का जिक्र है. हालांकि, इस धारा के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए तभी आवेदन किया जा सकता है जब शादी को कम से कम एक साल हो गए हैं. इसके अलावा, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए कम से कम 6 महीने का समय देता है और अगर फिर भी सुलह नहीं होती है तो तलाक हो जाता है.
पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर पति-पत्नी में रिश्ते इस कदर टूट चुके हैं कि ठीक होने की गुंजाइश नहीं है और दोनों सहमति से अलग होना चाहते हैं तो वेटिंग पीरियड में छूट दी जा सकती है. यानी, सहमति से तलाक लेने पर 6 महीने का इंतजार नहीं करना होगा.
इसी तरह मुस्लिम और ईसाइयों में शादी और तलाक को लेकर अपने पर्सनल लॉ हैं.
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