दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की बजाय केजरीवाल के साथ खड़े होकर अखिलेश क्या संदेश देना चाहते हैं? 5 Points में समझें मायने

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दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और सियासी पिच में अभी से खाद-पानी दिया जाने लगा है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है. एक दिन पहले सोमवार को दिल्ली में महिला अदालत के जरिए अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. केजरीवाल ने इस कार्यक्रम में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को न्योता दिया और अखिलेश ने दो कदम आगे जाकर खुले मंच से चुनाव में केजरीवाल का हरसंभव मदद करने का ऐलान कर दिया. हैरानी वाली बात यह है कि यूपी में सपा और कांग्रेस का गठबंधन है और दिल्ली में AAP और कांग्रेस कट्टर प्रतिद्वंदी हैं.

दरअसल, दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप कांड की 12वीं बरसी पर सोमवार को 'महिला अदालत' कार्यक्रम का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री आतिशी और विशेष अतिथि के तौर पर यूपी के पूर्व सीएम और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी रही. चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध को लेकर केजरीवाल को केंद्रीय गृह मंत्रालय पर लगातार हमलावर भी देखा जा रहा है.

1. दिल्ली में AAP और कांग्रेस में लड़ाई

हाल ही में लोकसभा चुनाव में भले ही AAP और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन नतीजों के बाद केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव वो अकेले लड़ेंगे. यहां तक कि केजरीवाल ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं. कांग्रेस ने भी पहली लिस्ट में 21 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. यानी साफ है कि दिल्ली की लड़ाई त्रिकोणीय रहने वाली है. यहां सत्तारूढ़ AAP से बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है. अखिलेश यादव केजरीवाल के साथ खड़े होकर यह संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस के इतर अन्य क्षेत्रीय दल भी विपक्ष की अहम धुरी बन सकते हैं. विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की बड़ी भूमिका के बावजूद अखिलेश यादव ने यह संदेश दिया है कि गठबंधन में क्षेत्रीय पार्टियों की अहमियत कम नहीं है.

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2. क्या अखिलेश ने कांग्रेस से बना ली है दूरी?

सवाल यह है कि महीनेभर पहले ही यूपी उपचुनाव में सपा और कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वो एक साथ खड़े हैं. सपा ने सभी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और कांग्रेस ने इसका समर्थन किया था. अखिलेश का कहना था कि हमने रणनीति के तहत सिर्फ सपा के सिंबल पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है. हालांकि, नतीजे आए तो सपा सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी. अब अचानक ऐसा क्या हुआ जो अखिलेश यादव दिल्ली में AAP के समर्थन में खड़े हो गए और हरसंभव मदद करने का ऐलान कर दिया? क्या अखिलेश ने कांग्रेस से दूरी बना ली है और यूपी में भी इंडिया अलायंस का वजूद पर संकट है?

3. क्यों चलने लगीं नाराजगी की खबरें?

वैसे तो AAP, सपा और कांग्रेस तीनों ही दल इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं, लेकिन दिल्ली की सियासत में इस अलांयस की शर्तें अलग हैं. यहां विधानसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है. दिल्ली में कांग्रेस, AAP की प्रतिद्वंदी है. जबि कांग्रेस, यूपी में सपा की अलायंस पार्टनर है. यानि कांग्रेस और सपा दोनों यूपी में सहयोगी दल हैं. ऐसे में अखिलेश का कांग्रेस की बजाय केजरीवाल के बुलावे पर कार्यक्रम में आने से तमाम चर्चाएं और सुगबुगाहटें होने लगी हैं.

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हाल ही में इंडिया ब्लॉक में लीडरशिप की लड़ाई लड़ रही है. एक धड़ा कांग्रेस के समर्थन है, जबकि दूसरा धड़ा चाहता है कि लीडरशिप में बदलाव हो और अब यह कमान कांग्रेस की बजाय टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के हाथों में सौंपी जाए. ममता खुद इसके लिए तैयार हैं. सपा, AAP, NCP (SP), शिवसेना (UBT) और RJD जैसे दल चाहते हैं कि ममता बनर्जी को INDIA ब्लॉक की कमान दी जाए. आम आदमी पार्टी, बीजेपी के खिलाफ मुखर रही है और अखिलेश यादव का समर्थन यह भी संदेश देता है कि उनका मुख्य उद्देश्य बीजेपी को चुनौती देना है. इससे यह भी संकेत मिलता है कि वे विपक्षी दलों में ऐसे नेतृत्व का समर्थन कर रहे हैं जो बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है.

4. सिटिंग अरेंजमेंट से बढ़ गई दूरियां?

अखिलेश की कांग्रेस से दूरी के भी मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल, हाल ही में लोकसभा में सिटिंग अरेंजमेंट के बाद अखिलेश के नाराज होने की खबरें आई थीं. जून 2024 में नतीजे आने के बाद जब मानसून सत्र चल रहा था, तब अखिलेश यादव, अवधेश प्रसाद और डिंपल यादव आठवें ब्लॉक में नेता विपक्ष राहुल गांधी के आसपास बैठते थे. लेकिन अब सपा सांसदों को छठे ब्लॉक में जगह दी गई है. अखिलेश को इस बात पर आपत्ति थी कि कांग्रेस ने अवधेश प्रसाद को आठवें ब्लॉक से दूर और छठे ब्लॉक में पीछे क्यों बैठने पर सहमति दी. इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई. कांग्रेस ने इस बात की जानकारी सपा को क्यों नहीं दी. हालांकि, बाद में सपा ने स्पीकर के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई और छठे ब्लॉक में अवधेश को आगे की सीट अलॉट कर दी गई है. अब अवधेश, अखिलेश के बगल में बैठेंगे.

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5. संसद में अलग-थलग दिखा विपक्ष

शीतकालीन सत्र में इंडिया ब्लॉक में साफ तौर पर दरार देखी गई. जब विपक्ष मुख्य तौर पर कांग्रेस अडानी के मसले पर सरकार को घेर रही थी, तब अखिलेश यादव की पार्टी ने नारेबाजी और प्रदर्शन से पूरी तरह दूरी बना ली थी और राहुल के साथ खड़े नहीं दिखे थे. सपा, आम आदमी पार्टी का कहना था कि वो चाहते हैं कि सदन चले. सदन की कार्यवाही में बाधा ना हो. इस बीच, यूपी के संभल मसले पर कांग्रेस ने स्टैंड लिया और राहुल गांधी-प्रियंका गांधी खुद वहां जाने पर अड़ गए तो सपा ने चुप्पी साध रखी. उसके बाद जब राहुल गांधी 12 दिसंबर को हाथरस दौरे पर पहुंचे और उस दलित लड़की के परिजन से मुलाकात की, जिसके साथ 2020 में गैंगरेप किया गया था. पीड़िता ने दो हफ्ते बाद 28 सितंबर 2020 को दिल्ली में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था.

जबकि सपा भी संभल और हाथरस मुद्दे को उठाती आ रही है. लेकिन यह संदेश गया कि सपा और कांग्रेस दोनों इस मुद्दे पर साथ नहीं हैं. बल्कि अलग-अलग इस मुद्दे पर मुखर हैं. यूपी में सपा पीडीए कार्ड (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) खेल रही है और कांग्रेस भी इसी ट्रैक पर आगे बढ़ते देखी जा रही है. फिलहाल, सपा और कांग्रेस के बीच तनातनी बनी हुई है. दिल्ली में केजरीवाल को समर्थन देकर अखिलेश यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ उनके मतभेद हल नहीं हुए हैं.

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अखिलेश यादव का यह कदम सिर्फ दिल्ली चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की रणनीति पर भी पड़ सकता है. उन्होंने संकेत दिया है कि वे कांग्रेस पर पूरी तरह निर्भर ना रहते हुए क्षेत्रीय दलों के साथ भी नई संभावनाएं तलाश रहे हैं.

दिल्ली की महिला अदालत में अखिलेश ने क्या कहा...

अखिलेश यादव ने कहा, हमने दिल्ली के लोगों के साथ भेदभाव होते देखा है. मैं अरविंद केजरीवाल जी को बधाई देता हूं कि इतना कुछ होने के बाद भी उनका हौसला कम नहीं हुआ है. मुझे पूरा भरोसा है की माताएं और बहनें दिल्ली के लाल को दोबारा सत्ता में आने का मौका देंगी. मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि समाजवादी पार्टी पूरी जिम्मेदारी से आपके साथ खड़ी है. कभी भी आपको सहयोग और मदद की जरूरत होगी, हम आपके साथ खड़े दिखेंगे.क्योंकि दिल्ली जितनी आपकी है और जितना AAP सरकार ने काम किया है, उतना ही हम महसूस करते हैं. AAP को एक बार फिर यहां काम करने का मौका मिलना चाहिए. दिल्ली की सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत बदलाव किया है. अगर इसी तरह से उसे आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी मिल जाती है तो फिर आप सुरक्षित हो जाएंगे.

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बीजेपी ने क्या कहा है...

बीजेपी ने 'महिला अदालत' कार्यक्रम में अखिलेश यादव को आमंत्रित किए जाने पर AAP की आलोचना की है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि अखिलेश के पिता दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने एक बार महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों का बचाव किया था. बीजेपी ने कहा, महिला अदालत लगाने वाले अरविंद केजरीवाल को बिभव कुमार को निष्कासित करके स्वाति मालीवाल को न्याय दिलाना चाहिए. केजरीवाल शायद भूल गए हैं कि अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने एक बार महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले लड़कों का बचाव किया था और कहा था कि 'लड़कों से गलतियां हो जाती हैं'. बीजेपी ने पूछा, क्या केजरीवाल में इतनी हिम्मत है कि वो अखिलेश यादव से अपने पिता की टिप्पणी के लिए देश की महिलाओं से माफी मांगने को कहेंगे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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