लगता है इस बार प्रदूषण से निजात पाने के लिए दिल्ली की सरकार नकली बादलों के जरिए असली बारिश कराएगी. इसकी तैयारी भी हो चुकी है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को चिट्ठी लिखी है. राय ने चिट्ठी में कहा है कि दिल्ली में प्रदूषण बेहद गंभीर श्रेणी में है और इससे निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की जरूरत है.
राय ने दिल्ली की स्मोग को मेडिकल इमरजेंसी नाम दिया है. सवाल ये है कि क्या आर्टिफिशियल बारिश कराना इतना आसान है? बारिश होने की गारंटी है या नहीं? इससे कितने दिन प्रदूषण कम होगा? कितना खर्च आएगा?
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पिछले साल भी दिल्ली सरकारक 20 और 21 नवंबर को दिल्ली पर नकली बादलों से असली बारिश की योजना लेकर आई थी. काम की जिम्मेदारी IIT कानपुर को दी गई थी. पर किसी वजह से ऐसा हुआ नहीं. पर क्या इस बार हो पाएगी ये बारिश. इससे कितना खतरा है, ये भी जान लीजिए.
कृत्रिम बारिश के लिए जरूरी है.. आसमान में 40% बादल
पहली हवा की गति और दिशा. दूसरी आसमान में 40% बादल होने चाहिए. उन बादलों में थोड़ा पानी होना चाहिए. अब इन दोनों स्थितियों में थोड़ी कमी-बेसी चल जाती है. लेकिन ज्यादा अंतर हुआ तो दिल्ली पर कृत्रिम बारिश कराने का ट्रायल बेकार हो जाएगा. गलत असर भी हो सकता है. ज्यादा बारिश हो गई तो भी दिक्कत होगी.
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क्या है आर्टिफिशियल बारिश का प्रोसेस?
कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिक आसमान में एक तय ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं. इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहते हैं. जरूरी नहीं कि इसके लिए विमान से बादलों के बीच उड़ान भरी जाए. यह काम बैलून, रॉकेट या ड्रोन से भी कर सकते हैं. इन कामों के लिए बादलों का सही सेलेक्शन जरूरी है. सर्दियों में बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता. इतनी नमी नहीं होती कि बादल बनें. मौसम ड्राई होगा तो पानी की बूंदे जमीन पर पहुंचने से पहले ही भांप बन जाएंगी.
इस बारिश से प्रदूषण कम होगा या नहीं
अभी तक इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं कि ऐसी बारिश से प्रदूषण कम होगा या नहीं. या कितना कम होगा. क्लाउड सीडिंग के लिए छोटे सेसना या उसके जैसे विमान से सिल्वर आयोडाइड को हाई प्रेशर वाले घोल का बादलों में छिड़काव होता है. इसके लिए विमान को हवा की दिशा से उल्टी दिशा में उड़ाया जाता है.
सही बादल से सामना होते ही केमिकल छोड़ देते हैं. इससे बादलों का पानी जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है. जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जमते हैं. कण इस तरह से बनते हैं जैसे वो कुदरती बर्फ हों. इसके बाद बारिश होती है. वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम बारिश स्मोग या गंभीर वायु प्रदूषण का स्थाई इलाज नहीं है.
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इससे कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है. 4-5 या 10 दिन. दूसरा खतरा ये है कि अगर अचानक तेज हवा चली तो केमिकल किसी और जिले के ऊपर जा सकता है. आर्टिफिशियल बारिश दिल्ली में होने के बजाय मेरठ में हो गई तो सारी मेहनत बेकार. इसलिए बादलों और हवा के सही मूवमेंट की गणना भी जरूरी है.
एक बार बारिश की लागत 10-15 लाख रुपए
दिल्ली में अगर कृत्रिम बारिश होती है, तो उस पर करीब 10 से 15 लाख रुपए का खर्च आएगा. अब तक दुनिया में 53 देश इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं. कानपुर में छोटे विमान से इस आर्टिफिशियल रेन के छोटे ट्रायल किए गए हैं. कुछ में बारिश हुई तो कुछ में सिर्फ बूंदाबांदी. दिल्ली में 2019 में भी आर्टिफिशिल बारिश की तैयारी की गई थी. लेकिन बादलों की कमी और ISRO के परमिशन की वजह से मामला टल गया था.
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