18 नवंबर 2024 यानी सोमवार की सुबह PM 2.5 का लेवल 907 था. यह दावा है IQAir पॉल्यूशन मॉनिटर्स का. यह स्तर WHO की तय डेली लिमिट से 60 गुना ज्यादा है. यानी जानलेवा. पिछले हफ्ते लाहौर में AQI ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. वहां प्रदूषण का स्तर 1900 के पार था. दिल्ली में प्रदूषण की मुख्य वजह क्या है...
दिल्ली का लोकेशन ही ऐसा है कि इसे हर साल ये दर्द झेलना पड़ता है. दिल्ली में स्थानीय स्तर पर प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है तेजी से बढ़ती हुई गाड़ियां. औद्योगिक यूनिट्स. लगातार हो रहा निर्माण. 24 घंटे जलने वाले कचरे के पहाड़. डीजल इंजन. एयर कंडिशनर और थर्मल प्लांट्स.
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साल 2000 में दिल्ली में मात्र 34 लाख गाड़ियां थी. जो 2021-22 में बढ़कर 1.22 करोड़ से ज्यादा हो चुकी हैं. जबकि 15 साल की गाड़ियों पर बैन लगा है. इसके बावजूद हर दिन दिल्ली की सड़कों पर करीब 80 लाख गाड़ियां दौड़ती हैं. जिनसे कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं.
लैंड-लॉक्ड दिल्ली के चारों तरफ प्रदूषण रोकने की प्राकृतिक व्यवस्था
अब अगर लोकेशन की बात करें तो दिल्ली के पश्चिम में राजस्थान, उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान-अफगानिस्तान, उत्तर में पंजाब-हरियाणा, पूर्व में उत्तराखंड. यानी चारों तरफ से लैंड लॉक्ड है राष्ट्रीय राजधानी. पाकिस्तान-अफगानिस्तान और राजस्थान से बहने वाली हवाओं के साथ धूल आती है. जिसका साथ देता है पराली का धुआं.
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ये धुआं पैदा होता है पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों से. इसके बाद ठंड का मौसम. यानी हवाओं में गति कम. नमी ज्यादा. धूल और पराली के धुएं को हिमालय रोकता है. जिसकी वजह से पूरी दिल्ली से लेकर उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों तक Smog और कोहरे की लेयर दिखती रहती है. टिकी रहती है. इसलिए प्रदूषण रहता है. साथ ही कोहरे की वजह से सड़कों पर हादसे होते हैं.
हर दिन 11 हजार टन कचरा निकलता है दिल्ली में... पहाड़ पर जलता भी है
दिल्ली नगर निगम के मुताबिक राजधानी के अलग-अलग इलाकों में 11 हजार टन कचरा निकलता है. ये गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइट पर जाता है. दोनों जगहों पर तीन टन और दो टन की बायो-माइनिंग प्रोजेक्ट्स लगने हैं. सिर्फ इतना ही नहीं दिल्ली-एनसीआर इलाके में कई ऐसे उद्योग हैं, जहां पर सालाना 17 लाख टन कोयले का इस्तेमाल होता है. जिसके जलने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत ज्यादा होता है.
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दिल्ली हो या लाहौर... प्रदूषण की यही पांच वजहें हैं
1. पराली जलाना...
हर साल पंजाब और हरियाणा में जैसे ही ठंड का मौसम आने लगता है, पिछली फसलों के बचे हुए हिस्सों को जलाया जाता है. इन्हें पराली जलाना (Stubble Burning) कहते हैं. इस बार मॉनसून देरी से गया है तो पिछली फसल की सफाई और अगली फसल की तैयारी भी देर से शुरू हुई है. इसलिए इन राज्यों में खेतों में पराली जलाने का मामला भी लेट से शुरू हुआ. यानी ये लंबे समय तक चलेगा.
2. हवा की दिशा...
दिल्ली की हवा में जहर घोलने में बड़ा योगदान हवा का भी है. यानी हवा की दिशा (Wind Direction). हवा की दिशा, गति और नमी ये तीनों फैक्टर दिल्ली-NCR के फेफड़ों में जहर भरते हैं. मॉनसून के बाद और सर्दियों से पहले हरियाणा-पंजाब की तरफ से हवा दिल्ली की तरफ चलती है. ये हवा पाकिस्तान की तरफ से आती है. जिसमें बारी धूलकणों की मात्रा ज्यादा होती है.इस हवा के साथ पराली जलाने से निकलने वाला जहरीला धुआं भी आता है. चुंकि मॉनसून के जाने के ठीक बाद हवा में नमी होती है. ये भारी होती है, चारों तरफ स्मोग (SMOG) नीचे दिखता है. हवा की दिशा बदले तो स्थिति सुधर सकती है.
3. तापमान बदलना...
दिल्ली की सर्दियों में लगातार होने वाले तापमान के बदलाव से भी प्रदूषण बढ़ता है. इसे टेंपरेचर इन्वर्शन (Temperature Inversion) कहते हैं. इससे ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की परत बनती है. जिससे सारे प्रदूषणकारी तत्व सतह पर ही रुक जाते हैं. तापमान में बदलाव की वजह गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण, उद्योग, पराली जलाना ... कुछ भी हो सकता है.
4. गाड़ियों का प्रदूषण...
दिल्ली की आबादी शहर के क्षेत्रफल के हिसाब से ज्यादा है. साथ ही गाड़ियों की संख्या भी बहुत ज्यादा है. दिल्ली में 25 फीसदी PM2.5 उत्सर्जन गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की वजह से होता है. दिल्ली के अंदर और आसपास बनी इंडस्ट्री से निकलने वाले गैस और केमिकल्स की वजह से भी वायुमंडल में बदलाव आता है. प्रदूषण बढ़ता है.
5. अन्य सोर्स...
सूखे इलाकों से आने वाली सूखी हवा के साथ रेत के कण. दिवाली के दौरान पटाखों से निकलने वाले केमिकल और उत्सर्जन, घरेलू बायोमास का जलाना भी सर्दियों में प्रदूषण को बढ़ा देता है. IIT कानपुर की स्टडी के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में 17-26 फीसदी PM उत्सर्जन बायोमास के जलाने से होता है.
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