ईरान के भीषण मिसाइल अटैक का इजरायल ने करारा पलटवार कर दिया है. इस बार हमला ना आसमान से हुआ है, ना ही जमीन से, ना मिसाइल का इस्तेमाल किया गया है, ना ही रॉकेट का, बल्कि इस बार इजरायल ने सबसे खतरनाक साइबर अटैक किया है. ऐसा हमला जो इजरायल के एक्सपर्ट ने नेतन्याहू के कहने पर अपने ही मुल्क में बैठकर अंजाम दिया और ईरान की कमर तोड़कर रख दी है. ईरान का पूरा सिस्टम इस साइबर अटैक की जद में आ गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी सरकार और उनके न्यूक्लियर ठिकानों पर साइबर हमला हुआ है. इसके जरिए इजरायल ने न्यूक्लियर से जुड़ी कई अहम जानकारियां चुरा ली हैं. ईरान के सुप्रीम कौंसिल ऑफ साइबर स्पेस के पूर्व सचिव फिरोजाबादी के हवाले से कहा गया कि इस साइबर अटैक की जद में ईरान सरकार की तीनो शाखाएं, न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका चपेट में आई हैं. जिन संस्थानों पर हमला हुआ, उसकी फेहरिस्त बताती है कि चोट कितनी गहरी है.
इस साइबर अटैक की चपेट में न्यूक्लियर पावर प्लांट, बंदरगाह परिवहन नेटवर्क, ईंधन वितरण सिस्टम और नगरपालिका नेटवर्क तक आ गया है. तुर्कमेनिस्तान में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान एक तरफ रूसी राष्ट्रपति पुतिन से दोस्ती बढा रहे थे, तो दूसरी तरफ इजरायल तेहरान में साइबर अटैक को अंजाम दे रहा था. इजरायल ने पहले ही ये धमकी दे दी थी कि ईरान ने बैलेस्टिक मिसाइलों से हमला बोलकर बड़ी गलती की है. उसको इसकी कीमत चुकानी होगी.
इजरायल ने अपनी धमकी सही साबित कर दिया. अमेरिका ईरान के परमाणु ठिकानों और तेल ठिकानों को निशाना नहीं बनाने की चेतावनी इजरायल को दे रहा था. इजरायल ने भी सीधा हमला नहीं बोला, लेकिन साइबर अटैक के जरिए ईरान को करारा जवाब दे दिया. ये ईरान पर इजरायल का पहला हमला है. देखना होगा कि दूसरा हमला कब होता है. वैसे ईरान और इजरायल की लंबी दुश्मनी में ये पहला मौका नहीं है जब इजरायल ने साइबर अटैक किया है.
14 साल से इस तरह के हमले इजरायल कर रहा है. इजरायल साइबर अटैक में माहिर माना जाता है. हाल में पेजर और वॉकी-टॉकी धमाकों के बाद से माना जा रहा है कि इजरायल के पास दुश्मन को नुकसान पहुंचाने के कई हथियार हैं. उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद ऐसे कई हमले पहले भी करा चुकी है. दुश्मन को माकूल जवाब दे चुकी है. जून 2010 में इजराइल के 'स्टक्सनेट वायरस' ने ईरान के बुशहर में मौजूद परमाणु संयंत्र के कंप्यूटरों पर हमला किया था.
इस साइबर हमले में 30 हजार कंप्यूटरों पर असर पड़ा था. अप्रैल 2011 में 'स्टार्स' नामक वायरस के जरिए फिर ईरानी परमाणु केंद्रों में घुसपैठ की गई. नवंबर 2011 में ईरान को पता चला कि 'ड्यूक' नामक नया वायरस नुकसान पहुंचा रहा है. इसका मकसद ईरान के परमाणु केंद्रों को निशाना बनाना था. अप्रैल 2012 में ईरान ने 'वाइपर' नामक मैलवेयर का पता लगाया. मई 2012 में ईरान ने दावा किया कि 'फ्लेम' नामक वायरस ने सरकारी कंप्यूटरों से सरकारी डेटा चुराने की कोशिश की.
आरोप फिर इजरायल पर लगा. इस तरह से साफ है कि इजरायल ने एक बार फिर ईरान के प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया है वो भी बिना ईरान में घुसे या घातक हथियारों का इस्तेमाल किए. इससे पहले इजरायल के रक्षा मंत्री ने चेतावनी दी थी कि ईरानी मिसाइल हमले का जवाब जरूर दिया जाएगा. उन्होंने कहा था उनके देश की जवाबी कार्रवाई "घातक" और "आश्चर्यजनक" होगी. इस तरह एक ईरान में एक बड़ा साइबर अटैक करके इजरायल में पूरी दुनिया को चौंका दिया है.
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