हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर अगले 5 साल के लिए कौन राज करेगा, इसका फैसला मंगलवार (8 अक्टूबर) को हो जाएगा. दोनों जगह वोटों की गिनती सुबह 8 बजे से शुरू होगी. इसे लेकर सुरक्षा व्यवस्था समेत सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी पंकज अग्रवाल ने कहा कि मतगणना स्थलों पर तीन लेयर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है. हरियाणा और जम्मू-कश्मीर यानी दोनों ही जगह 90-90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था. जम्मू कश्मीर में तीन फेज (18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर) को वोटिंग हुई थी, तो हरियाणा में सिर्फ एक फेज यानी 5 अक्टूबर को मतदान हुआ था. हरियाणा में जहां पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार थी, तो वहीं जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं.
एक आधिकारिक बयान में हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) पंकज अग्रवाल ने कहा कि राज्य के 22 जिलों के 90 विधानसभा क्षेत्रों में 93 मतगणना केंद्र बनाए गए हैं. बादशाहपुर, गुरुग्राम और पटौदी विधानसभा सीटों के लिए दो-दो मतगणना केंद्र बनाए गए हैं, जबकि शेष 87 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक-एक मतगणना केंद्र बनाया गया है. मतगणना प्रक्रिया की निगरानी के लिए इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की ओर से 90 मतगणना पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए गए हैं.
सबसे पहले डाक मतपत्रों की गिनती होगी
सबसे पहले डाक मतपत्रों की गिनती की जाएगी, उसके 30 मिनट बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की गिनती की जाएगी. सीईओ ने कहा कि मतगणना के प्रत्येक दौर की सटीक जानकारी समय पर अपलोड की जाएगी. मतगणना के दौरान उम्मीदवारों, उनके अधिकृत प्रतिनिधियों, रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ/सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (एआरओ) और ईसीआई पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में स्ट्रांगरूम खोले जाएंगे और वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी. उन्होंने कहा कि मतगणना केंद्रों के अंदर मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं होगी.
हरियाणा में कौन मारेगा बाजी?
अगर बात हरियाणा की करें तोयहां विधानसभा की 90 सीटें हैं. सूबे की इन सीटों पर 1031 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे, इसमें 930 पुरुष और 101 महिलाएं शामिल हैं. हरियाणा की सभी सीटों पर एक ही चरण में 5 अक्टूबर को वोट डाले गए थे. चुनाव आयोग की ओर से जारी अनंतिम आंकड़ों के मुताबिक 66.96 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया. मतदान के लिए हरियाणा में 20 हजार 632 मतदान केंद्र बनाए गए थे, जिनमें से 13500 बूथ ग्रामीण और 7132 बूथ शहरी इलाकों में थे.
बीजेपी-कांग्रेस ने 89-89 सीटों पर लगाया दम
हरियाणा चुनाव की बात करें तो आम आदमी पार्टी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरी, जबकि कांग्रेस ने माकपा और बीजेपी ने गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने नामांकन के अंतिम पलों में भिवानी सीट माकपा के लिए छोड़ दी थी. बीजेपी ने भी हलोपा के लिए एक ही सीट छोड़ी है, कांडा की सीट. दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का एडवोकेट चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के साथ गठबंधन है. जेजेपी ने 70, एएसपी ने 20 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. इस गठबंधन से आईएनएलडी ने 53, बसपा ने 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.
पिछला नतीजा क्या रहा था?
साल 2019 के पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों की बात करें तो बीजेपी 36.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 40 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. कांग्रेस 28.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 31 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही थी. तीसरे नंबर की पार्टी रही जेजेपी ने 14.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीती थीं. आईएनएलडी 2.1 फीसदी वोट शेयर के साथ एक और अन्य 18.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 8 सीटें जीतने में सफल रही थीं.
पिछले चुनाव से अलग क्या समीकरण था इस बार?
हरियाणा विधानसभा का ये चुनाव कई मायनों में 2019 के चुनाव से अलग था. इस बार समीकरण से लेकर गठबंधन तक, काफी कुछ अलग रहा. चुनाव प्रचार के दौरान किसान, जवान और पहलवान से जुड़े मुद्दे हावी नजर आए. गठबंधनों की बात करें तो जेजेपी इस बार एएसपी के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी तो वहीं आईएनएलडी भी बसपा के साथ चुनावी रणभूमि में उतरी. आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने सहयोगियों के लिए एक-एक सीटें छोड़ीं.
बड़े चेहरे और बड़ा दांव
सत्ताधारी बीजेपी की बात करें तो लाडवा सीट से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, अंबाला कैंट से अनिल विज, भिवानी जिले की लोहारू सीट से जेपी दलाल, तोशाम से श्रुति चौधरी, बादली से ओम प्रकाश धनखड़, पंचकुला से ज्ञानचंद गुप्ता, आदमपुर से भव्य बिश्नोई, अटेली से आरती सिंह राव, कालका से शक्ति रानी शर्मा, नारनौंद से कैप्टन अभिमन्यु मैदान में हैं. कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा गढ़ी सांपला-किलोई, विनेश फोगाट जुलाना, उदय भान होडल और चंद्रमोहन बिश्नोई पंचकुला सीट से चुनाव मैदान में हैं. डबवाली से अमित सिहाग, रेवाड़ी से चिरंजीव राव, तोशाम से अनिरुद्ध चौधरी, कैथल से आदित्य सुरजेवाला चुनाव लड़ रहे हैं.
जेजेपी की बात बात करें तो उचाना सीट से दुष्यंत चौटाला, डबवाली सीट से दिग्विजय चौटाला और आईएनएलडी से ऐलनाबाद से अभय सिंह चौटाला, रनिया से अर्जुन चौटाला, डबवाली से आदित्य देवीलाल चौटाला किस्मत आजमा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के टिकट पर पूर्व रेसर कविता दलाल जुलाना सीट से किस्मत आजमा रही हैं. वहीं, रणजीत चौटाला सिरसा, चित्रा सरवारा अंबाला, हिसार सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं.
जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों पर फाइट
अब बात करते हैं जम्मू- कश्मीर की... यहां विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं. केंद्र शासित प्रदेश की 90 में से अनुसूचित जाति (एससी) के लिए सात और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए नौ सीटें यानी कुल 16 सीटें आरक्षित हैं. रीजन वाइज देखें तो जम्मू रीजन में 43 विधानसभा सीटें हैं और कश्मीर घाटी में 47. इन सीटों के लिए तीन चरणों में वोट डाले गए. पहले चरण में 18 सितंबर को 24 सीटों पर मतदान हुआ था. दूसरे चरण में 26 सीटों पर वोटिंग हुई थी. तीसरे और अंतिम चरण में 1 अक्टूबर को 40 सीटों के लिए वोट डाले गए थे. सूबे में कुल मिलाकर 63.88 फीसदी मतदान हुआ है. चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण की 24 सीटों पर 61.38, दूसरे चरण की 26 सीटों पर 57.31 फीसदी और तीसरे चरण की 40 सीटों पर 69.69 फीसदी वोटिंग हुई. वोटिंग को लेकर महिलाओं में जबरदस्त उत्साह नजर आया. 69.37 फीसदी पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक 70.02 फीसदी महिलाओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया.
किस पार्टी ने कितनी सीटों पर लगाया है दम, कहां कैसा गठबंधन?
बीजेपी ने जम्मू-रीजन पर फोकस किया है. पार्टी ने जम्मू रीजन की सभी 43 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. कश्मीर घाटी की बात करें तो बीजेपी ने 47 सीटों में से केवल 19 पर ही उम्मीदवार उतारे हैं. घाटी की 28 सीटों पर पार्टी ने निर्दलीयों या अन्य छोटी पार्टियों का समर्थन किया था. गठबंधनों की बात करें तो कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे हैं तो वहीं इंजीनियर राशिद की अगुवाई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी ने जमात-ए-इस्लामी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है. सज्जाद लोन की जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अपनी पार्टी और महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे दल अकेले चुनाव मैदान में उतरे. कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी ने भी उम्मीदवार उतारे.
पिछला नतीजा कैसा रहा था?
जम्मू कश्मीर में 10 साल पहले हुए अंतिम विधानसभा चुनाव में 65 फीसदी मतदान हुआ था और 22.7 फीसदी वोट शेयर के साथ पीडीपी 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. बीजेपी को 23 फीसदी वोट मिले थे लेकिन पार्टी 25 सीटें जीतकर पीडीपी के बाद दूसरे नंबर पर रही थी. डॉक्टर फारुक अब्दुल्ला की अगुवाई वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 20.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 15, कांग्रेस ने 18 फीसदी वोट शेयर के साथ 12, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने 1.9 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें जीती थीं. सीपीआईएम एक फीसदी से भी कम वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रही थी. तब पीडीएफ के एक और तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था.
पिछले चुनाव से अलग क्या समीकरण था इस बार?
जम्मू-कश्मीर में जब पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे, यह पूर्ण राज्य हुआ करता था. अब यह केंद्र शासित प्रदेश है. तब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 87 सीटें हुआ करती थीं. 37 सीटें जम्मू, 46 सीटें कश्मीर घाटी और 4 सीटें लद्दाख रीजन में हुआ करती थीं. अब राज्य के दर्जे से लेकर सीटें और मुद्दे तक, जम्मू कश्मीर में काफी कुछ बदल चुका है. लद्दाख रीजन भी अब जम्मू कश्मीर में नहीं रहा. जम्मू कश्मीर में अब 87 की जगह 90 सीटें हैं. जम्मू रीजन में सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43, कश्मीर में सीटों की संख्या 46 से बढ़कर 47 हो चुकी है. पहली बार एससी-एसटी के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं.
बड़े चेहरे और बड़ा दांव
चेहरों की बात करें तो इस चुनाव में मुफ्ती परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने चुनावी राजनीति में कदम रखा. बारामूला सीट से बतौर निर्दलीय मिली जीत से उत्साहित इंजीनियर राशिद की पार्टी ने भी घाटी की कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे. सज्जाद लोन की पार्टी के साथ ही अपनी पार्टी जैसे दल भी चुनाव मैदान में उतरे. प्रमुख चेहरों की बात करें तो संसद हमलों के दोषी अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु, सैयद सलीम गिलानी, डॉक्टर तलत मजीद, सर्जन बरकती, आगा सैय्यद मुंतजिर जैसे चेहरे चुनाव मैदान में हैं.
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