ग्राउंड रिपोर्टः हिज्बुल्लाह के एक-एक मेंबर को मारने में निशाना बन रहे 100-150 नागरिक... एक दिन में 60 की मौत, 100 से ज्यादा घायल

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इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच टकराव जारी है और हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह के मारे जाने के साथ ये जंग और खूनी हो चली है. लगातार हो रही हमलों और जवाबी कार्रवाई के बीच अगर पिस रहे हैं तो वो हैं लेबनान के नागरिक, जिनपर जंग के इस माहौल काफी बुरा असर डाला है. जहां एक तरफ लोगों में किसी तरह जिंदगी बचाने की जद्दोजहद है तो वहीं लेबनान की चिकित्सा व्यवस्था और मेडिकल ढांचा इस कदर ध्वस्त हो चला है कि वह खुद ही 'वेंटिलेटर सिचुएशन' में है.

बुरी तरह संकट से जूझ रहे डॉक्टर्स
डॉक्टर्स इस संकट से बुरी तरह जूझ रहे हैं. युद्धग्रस्त देश में स्वास्थ्य सुविधाओं पर लगातार दबाव बढ़ रहा है. लेबनान की इस हालत को सामने रख रहे हैं आजतक के अशरफ वानी, जो कि जंग के माहौल के बीच लेबनान के एक सरकारी अस्पताल पहुंचे थे.

रफीक हरीरी गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल का हाल
अशरफ बताते हैं कि, 'मैं बेरूत के सबसे बड़े अस्पताल, रफीक हरीरी गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल पहुंचा. यहां के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी रोज़ाना युद्ध के घायलों का इलाज कर रहे हैं. पिछले एक हफ्ते में इज़राइली हमलों में वृद्धि देखी गई है, और सोमवार के दिन ही 60 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा 100 से अधिक लोग घायल हो गए हैं. डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों पर दबाव बढ़ता जा रहा है क्योंकि घायल नागरिकों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

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100-150 की जा रही जान, कई हो रहे गंभीर घायल
अस्पताल के निदेशक, डॉ. जिहाद सादेह ने आजतक से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि इज़रायली हमले किस हद तक खतरनाक हो गए हैं. “हम यह देख रहे हैं कि इज़राइल द्वारा किए गए हमले कई बार केवल एक हिज़बुल्ला सदस्य को निशाना बनाने के लिए 100 से 150 नागरिकों की जान ले लेते हैं. इसके साथ ही करीब 300 लोग घायल हो जाते हैं, जिनमें से कई की हालत बेहद गंभीर होती है. ये चोटें हल्की से लेकर गंभीर या विकलांगता का कारण भी बन सकती हैं. यह अब एक ऐसा युद्ध हो चला है, जिसमें न सिर्फ हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है, बल्कि मानवीय त्रासदी का स्तर भी भयावह होता जा रहा है.”

बोले डॉक्टर, हम इज़राय़ल के हमलों का सामना 1976 से कर रहे
डॉ. सादेह ने अपनी बातचीत में बताया कि उनकी टीम बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित है, लेकिन मौजूदा संकट के सामने यह प्रशिक्षण भी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. "हम इज़राय़ल के हमलों का सामना 1976 से कर रहे हैं. इन वर्षों के दौरान हमने कई बड़े युद्धों का सामना किया है, लेकिन मौजूदा स्थिति बेहद भयावह है." उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपनी युवावस्था में बमबारी से जलते हुए शवों को देखा, जिसका भयावहता आज भी उनके जेहन में ताजी है.

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अस्पताल के हालात बदतर हो रहे हैं. इज़राइली हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इससे अस्पताल में आने वाले घायलों की संख्या में भी इज़ाफा हुआ है. कई घायलों का इलाज करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि अस्पताल में संसाधनों की भारी कमी हो रही है. इसके बावजूद, अस्पताल प्रशासन अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद से चलाए जा रहे अनेक ड्रिल और तैयारियों की बदौलत बड़े पैमाने पर घायलों का सामना करने के लिए पूरी तरह तत्पर है, लेकिन, हालातों की गंभीरता देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि आगे स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.

बड़े पैमाने पर तबाही मचा रहे इजरायली हमले
यहां के डॉक्टरों का कहना है कि इज़रायली हमले सिर्फ एक-दो लोगों को निशाना बनाने के लिए नहीं हो रहे हैं, बल्कि ये बड़े पैमाने पर तबाही मचा रहे हैं. इन हमलों में इस्तेमाल होने वाले बम और विस्फोटक बेहद शक्तिशाली हैं, जो सामान्य नागरिकों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को डर है कि अगर यह युद्ध जल्द ही नहीं रुका, तो लेबनान की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएंगी. रफीक हरीरी सरकारी अस्पताल के बाहर, घायलों और उनके परिवार वालों का तांता लगा हुआ है. अस्पताल के भीतर डॉक्टर और नर्सें लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और घायलों की बढ़ती संख्या ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है.

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डॉ. सादेह ने कहा, "हमारे पास सीमित उपकरण और दवाएं हैं, लेकिन घायलों की संख्या बढ़ने से हम कई बार बेबस हो जाते हैं. यहां तक कि कई बार हमें अन्य अस्पतालों से मदद मांगनी पड़ती है, लेकिन हालात हर जगह एक जैसे हैं." अस्पताल के बाहर खड़े एक व्यक्ति से बात करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे एक इज़रायली हमले में उनका पूरा परिवार खत्म हो गया. "मेरे भाई, बहन, और मां सभी मारे गए. मैं बस भाग्यशाली हूं कि मैं बच गया, लेकिन अब मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है." वह जब ये बातें बता रहे थे तो उनके आंसू झर-झर बह रहे थे और बोलते हुए कई बार आवाज भर्रा जाती थी.

यहां खड़े लोगों की आंखों में डर साफ दिखाई देता है, और डॉक्टरों की आंखों में थकान और निराशा. लेबनान के नागरिक और यहां के चिकित्सा सेवाएं इस संघर्ष में सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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