सैलरी और पेंशन की तारीख आगे बढ़ाने के पीछे गणित क्या है? जानें- कैसे पैसे बचाएगी हिमाचल सरकार

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कर्ज के पहाड़ में दबी हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक नया फैसला लिया है. अब हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह और रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन 1 तारीख को नहीं आया करेगी. अब से सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह 5 और रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन 10 तारीख को आएगी.

हिमाचल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब 1 तारीख को न सैलरी आई और न ही पेंशन. इसे लेकर विपक्ष हमलावर भी था. बुधवार को विपक्ष ने विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाया. इस पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने बताया कि फिलहाल सैलरी 5 और पेंशन 10 तारीख को आएगी.

मुख्यमंत्री सुक्खू ने ये दावा भी किया है कि 1 तारीख को सैलरी और पेंशन न देने से हर साल 36 करोड़ रुपये की बचत होगी.

इसके पीछे क्या है गणित?

हिमाचल में लगभग 2 लाख सरकारी कर्मचारी और 1.5 लाख पेंशनर्स हैं. कर्मचारियों की तनख्वाह पर हर महीने 1200 करोड़ और रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन पर 800 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. यानी, कुल मिलाकर हर महीने 2 हजार करोड़ सिर्फ सैलरी और पेंशन पर खर्च हो जाते हैं.

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मुख्यमंत्री सुक्खू ने बताया कि सैलरी और पेंशन के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है. इस कर्ज पर हर महीने 3 करोड़ रुपये का ब्याज चुकाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सैलरी और पेंशन थोड़ी देर से देने पर सालाना 36 करोड़ रुपये की बचत हो सकेगी.

सीएम सुक्खू ने ये भी कहा कि ये सिर्फ कुछ समय के लिए है और फिर सैलरी और पेंशन महीने की पहली तारीख को ही आया करेगी.

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कर्ज नहीं लेगी तो कैसे देगी सैलरी?

अब सवाल उठता है कि हिमाचल में सैलरी और पेंशन देने के लिए कर्ज नहीं लेगी, तो फिर ये देगी कैसे? दरअसल इसके लिए केंद्र सरकार से पैसा आएगा.

सीएम सुक्खू ने बताया कि हर महीने की छह तारीख को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (RDG) और 10 तारीख को केंद्र के टैक्स का शेयर आएगा. हिमाचल सरकार को हर महीने 520 करोड़ रुपये रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट और 740 करोड़ रुपये केंद्र के टैक्स की हिस्सेदारी मिलती है.

पर केंद्र से पैसा क्यों?

राज्य सरकारों के राजस्व घाटे को कम करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (RDG) दी जाती है. संविधान के अनुच्छेद 275 में इसका प्रावधान किया गया है.

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राज्यों को केंद्र सरकार से कितनी ग्रांट मिलेगी? ये वित्त आयोग तय करता है. अभी राज्यों को जो ग्रांट मिलती है, वो 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर दी जाती है. 15वें वित्त आयोग ने 2021-22 से 2025-26 तक की ग्रांट की सिफारिश की है. वित्त आयोग राज्यों के राजस्व और खर्च का आंकलन करता है और उसके हिसाब से ग्रांट का ऐलान करता है.

इसी तरह से केंद्र सरकार को जो टैक्स मिलता है, उसी में राज्यों को भी हिस्सा दिया जाता है. पहले केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में राज्यों को 32% हिस्सा मिलता था. 15वें वित्त आयोग ने ये हिस्सेदारी बढ़ाकर 41% कर दिया था. हर राज्य की हिस्सेदारी वित्त आयोग ने तय की थी. जैसे- केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में हिमाचल सरकार की हिस्सेदारी 0.83% है. सबसे ज्यादा 17.93% उत्तर प्रदेश और फिर 10.05% बिहार सरकार की हिस्सेदारी है.

कितना पैसा मिलता है सरकारों को?

2024-25 के बजट में केंद्र सरकार ने राज्यों को टैक्स रेवेन्यू का हिस्सा देने के लिए 12.47 लाख करोड़ रुपये रखे हैं. 2023-24 के बजट में 11.04 लाख करोड़ रुपये रखे थे. 2024-25 में हिमाचल सरकार को केंद्र से 10,352 करोड़ रुपये टैक्स के शेयर के रूप में मिलेंगे.

वहीं, 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर 2021 से 2026 के बीच राज्यों को लगभग तीन लाख करोड़ रुपये रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के तौर पर मिलेंगे. हालांकि, सभी राज्य सरकारों को ये ग्रांट नहीं मिलती है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और झारखंड समेत 11 राज्य सरकारों को ये ग्रांट नहीं मिलती.

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15वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर 2021 से 2026 के बीच हिमाचल सरकार को 37,199 करोड़ रुपये की ग्रांट मिलेगी. हिमाचल सरकार को 2021-22 में 10,249 करोड़, 2022-23 में 9,377 करोड़ और 2023-24 में 8,058 करोड़ रुपये की ग्रांट मिल चुकी है. हालांकि, वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर हिमाचल पर सरकार को 2023-24 में कुल 9,115 करोड़ रुपये की ग्रांट मिली थी.

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पर क्या इन सबसे कुछ होगा?

हिमाचल सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल पर मार्च 2022 तक 69 हजार करोड़ रुपये कर्ज था. मार्च 2024 तक ये कर्ज बढ़कर 86,600 करोड़ रुपये हो गया. मार्च 2025 तक हिमाचल सरकार पर कर्ज और बढ़कर लगभग 95 हजार करोड़ रुपये का हो जाएगा.

हिमाचल सरकार के बजट का 40 फीसदी तो सैलरी और पेंशन देने में ही चला जाता है. लगभग 20 फीसदी कर्ज और ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है.

कर्ज बढ़ने की एक वजह कांग्रेस सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्रीबीज भी मानी जा रही है. इसके अलावा, कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद ओल्ड पेंशन स्कीम भी लागू कर दी, जिससे खर्च और बढ़ गया. इसे ऐसे समझिए कि 2021-22 में हिमाचल सरकार ने पेंशन पर 6,399 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि, 2022-23 में 9 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च पेंशन पर हुआ है. वहीं, हिमाचल सरकार ने 2021-22 ने सैलरी पर लगभग 12,800 करोड़ रुपये खर्च किए थे. ये खर्च 2022-23 में बढ़कर 16 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया.

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हिमाचल सरकार को और झटका तब लगा जब केंद्र सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को और कम कर दिया. पहले हिमाचल सरकार अपनी जीडीपी का 5 फीसदी तक कर्ज ले सकती थी. लेकिन अब 3.5 फीसदी तक ही कर्ज ले सकती है. यानी, पहले राज्य सरकार 14,500 करोड़ रुपये तक उधार ले सकती थी, लेकिन अब 9 हजार करोड़ रुपये ही ले सकती है.

कर्ज के इस बोझ को कम करने के लिए पिछले हफ्ते ही सीएम सुक्खू ने बताया था कि अगले दो महीने तक मुख्यमंत्री, मंत्री और संसदीय सचिव सैलरी नहीं लेंगे. दो महीने की सैलरी नहीं लेने से लगभग 85 लाख रुपये की बचत होगी.

कुल मिलाकर हिमाचल सरकार कर्ज का बोझ कम करने के लिए पाई-पाई बचाने की कोशिश कर रही है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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