दिल्ली-NCR के हजारों फ्लैट खरीदार क्यों बेघर, RERA पर लोगों को क्यों नहीं भरोसा?

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दिल्ली-एनसीआर में हजारों फ्लैट खरीदार अपने सपनों के आशियाने के मिलने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन कई साल गुजरने के बाद भी उनका सपना अधूरा रह गया है. सालों पहले जब रेरा आया था, तब यही उम्मीद जगी थी कि लोगों के साथ बिल्डर की मनमानी अब नहीं चलेगी. लेकिन अभी भी दिल्ली- एनसीआर में हजारों घर खरीदारों को अपना घर नहीं मिला है. रेरा यानी यानी रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Real Estate Regulatory Authority) आखिर क्या है पहले आपको ये बताते हैं.

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क्या है रेरा?

रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) ये कानून लाने का मकसद बिल्डरों की मनमानी और उनकी धोखाधड़ी को रोकना था. 2016 से पहले रियल एस्टेट का सेक्टर काफी असंगठित हुआ करता था. आम आदमी को प्रॉपर्टी खरीदने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती थीं. खरीदारों के हितों को देखते हुए सरकार 2016 में ये कानून लेकर आई. ये एक नियामक संस्था है, जो रियल एस्टेट क्षेत्र की निगरानी और विनियमन करती है, पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देती है, साथ ही खरीदारों और डेवलपर्स दोनों के हितों की रक्षा करती है. किसी भी तरह के प्रॉपर्टी खरीदार को अगर धोखा मिला हो, तो उसके खिलाफ वो रेरा में शिकायत दर्ज करा सकता है.

हर राज्य सरकार की रेरा अथॉरिटी होती है, जो जितने भी रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट हैं, उनको रेगुलेट करने का काम करती है. बिल्डरों को शुरू की गई सभी परियोजनाओं के लिए मूल दस्तावेज जमा करने होते हैं, खरीदार की सहमति के बिना बिल्डर योजना में कोई बदलाव नहीं कर सकताहै. इस कानून के बनने के बाद सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि कोई भी प्रोजेक्ट बेचने से पहले बिल्डर को उसका अप्रूवल लेनाजरूरी होता है. जब प्रोजेक्ट बनाने से पहले अप्रूवल लिया जाएगा तो जाहिर है कि कौन उसको बना रहा है उसके बारे में सारी बातें रिकॉर्ड पर आ जाएंगी, जिससे प्रॉपर्टी खरीदने वाले को पता चल जाता है कि वो किस तरह की प्रॉपर्टी खरीद रहा है.

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रेरा के फायदे?

रेरा की वेबसाइट पर आप जिस प्रोजेक्ट में भी प्रॉपर्टी लेना चाहते हैं उसकी सारी डिटेल मिल जाएगी. रेरा से एक फायदा ये भी है कि बिल्डरों को अपनी प्रॉपर्टी का कारपेट एरिया मेंशन करना जरूरी होता है. पहले अगर आपने 3 हजार स्क्वॉयर फीट का फ्लैट लिया है, तो उसमें पजेशन के टाइम पर 30 फीसदी सुपर एरिया और बिल्ट-अप एरिया में चला जाता था, आपको पता ही नहीं चलता था कि 3 हजार स्क्वॉयर फीट में आपका डिडक्शन कितना होगा. नए कानून से ये फायदा हुआ कि अब लोगों को कारपेट एरिया ही मिलता है. रेरा ने लोगों को एक बड़ी सुरक्षा दी है कि अगर आप किसी वजह से अपनी बुकिंग कैंसिल करना चाहते हैं, तो इसका भी आपको अधिकार है.

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रेरा से आखिर लोगों को क्यों है शिकायत ?

नोएडा में फ्लैट खरीदारों के अधिकारों के लिए NEFOWA (Noida Extension Flat Owner Welfare Association) सालों से काम कर रहा है. NEFOWA के वाइस प्रेसिडेंट दिपांकर बताते हैं कि रेरा के आने से पारदर्शिता तो आई है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ है. रेरा आरसी तो जारी करती है,लेकिन उसकी रिकवरी करने का पावर उसके पास नहीं है. सालों तक रिकवरी नहीं हो पाती. रेरा लोगों के फायदे के लिए लाया गया था, लेकिन लोग रेरा में शिकायत लेकर जाते तो हैं, लेकिन उनको इंसाफ नहीं मिलता. बाद में यही होता है कि खरीदारों को कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटना पड़ता है. रेरा के पास ज्यूडजिशियल पावर होना बेहद जरूरी है.

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Flat buyers

NEFOWA के एक्स वाइस प्रेसिडेंट मनीष कुमार कहते हैं- रेरा टूथलेस टाइगर है, रेरा के पास शक्तियां तो हैं, लेकिन उनको लागू कराने का अधिकार नहीं है. वो किसी भी बिल्डर से वसूली नहीं करा सकता है. बिल्डर्स को पता है कि रेरा तो कुछ कर नहीं सकता, इसलिए वो मनमानी करते हैं. रेरा में एक बार शिकायत कर भी दी, तो लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है. मनीष ने सुपरटेक में फ्लैट खरीदा था वो बताते हैं - फ्लैट नहीं मिलने पर 2018 में रेरा में शिकायत की 2019 में ऑर्डर भी आ गया. लेकिन बिल्डर ने उनके ऑर्डर को फॉलो नहीं किया. उसके बाद कोविड आ गया, हालांकि उस दौरान ऑनलाइन सुनवाई भी हुई. सुपरटेक पर पेनाल्टी भी लगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. दिक्कत ये है कि रेरा ऑर्डर पास तो कर देता है, लेकिन उसे लागू नहीं करा पाता है. रेरा को देखना होगा कि ऑर्डर पास करने के बाद उसे एक टाइम पीरियड में लागू किया जाए.

रेरा में शिकायत करने पर बिल्डर देते हैं धमकी

कुछ फ्लैट बायर्स की ये भी शिकायत है कि अगर वो रेरा में शिकायत लेकर जाते हैं, तो बिल्डर की तरफ से उन्हें बुकिंग कैंसिल करने की धमकी दी जाती है. महागुन मोटांज के एक फ्लैट खरीदार राहुल टंडन कहते हैं कि उनको जब वक्त पर फ्लैट नहीं मिला, तो उन्होंने रेरा में शिकायत की, लेकिन उसके बाद हालात और खराब हो गए. बिल्डर की तरफ से यूनिट कैंसिल करने की धमकियां मिलने लगीं.

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एक और फ्लैट खरीदार सौरभ का आरोप है कि जब उनके प्रोजेक्ट में देरी हुई तो वो रेरा की शरण में गए. उनके केस की फाइनल सुनवाई भी हो गई है और रेरा की तरफ से यही कहा गया कि बिल्डर की तरफ से पेनाल्टी भी दी जाएगी, लेकिन बिल्डर ने ये कहा कि उनका पेमेंट नहीं हुआ है. वो बताते हैं कि 27 लाख का पेमेंट करने के बाद अचानक 22 लाख की डिमांड आ गई, क्योंकि उन्होंने रेरा में केस किया है.

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क्या कहते हैं वकील?

सुप्रीम कोर्ट के वकील कुमार मिहिर कहते हैं कि रेरा 2016 में आया था और नियम 2017 में बने थे. जो प्रोजेक्ट 2016 के पहले बने थे वो रेरा के अंदर आते ही नहीं है. हालांकि जो अधूरे प्रोजेक्ट थे उनको रेरा के अंदर रजिस्टर करना था. लेकिन उसमें कई ऐसे प्रोजेक्ट थे, जिसमें कंपनी दिवालिया हो गई, जब कंपनी दिवालिया हो जाती है तब IBC के अंदर एक प्रोविजन होता है सेक्शन 14, जिसमें ये प्रावधान होता है कि जब किसी कंपनी के इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया चलती है, तो उस कंपनी के खिलाफ किसी और कोर्ट में कार्यवाहीनहीं चल सकती है. ऐसे केस में रेरा कुछ नहीं कर सकताहै. वहीं ऐसे मामले जो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं उसमें भी रेरा हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.

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मिहिर आगे बताते हैं कि कई मामलों में प्रोजेक्ट के डिले होने पर रेरा मुआवजा देने का ऐलान भी करता है. रेरा ने कई ऑर्डर पास भी किए हैं. रेरा रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करता है, जिसके आधार पर डीएम को रिकवरी करने का अधिकार होता है. हालांकिकई बिल्डर जिनके खिलाफ रिकवरी सर्टिफकेट जारी किया गया वो कोर्ट चले गए और उन्होंने स्टे ले लिया, जिस वजह से रिकवरी ही नहीं हो पाई. हां नए प्रोजेक्ट में रेरा काफी मददगार रहा है.

रेरा को लागू हुए करीब 9 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों की यही शिकायत है कि रेरा महज कागजी शेर है. दिल्ली-एनसीआर में आज भी सैकड़ों ऐसी इमारतें हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, तो कुछ इमारतों में इतना स्लो काम हो रहा है कि उसकी डेड लाइन ही पूरी नहीं हो रही है, जिससे लोगों का भरोसा रेरा से उठता जा रहा है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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