AMU को क्यों चाहिए अल्पसंख्यक का दर्जा? जानिए आखिर इससे क्या होगा फायदा

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों के बेंच पर छोड़ दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने ही 57 साल पुराने फैसले को पलटते हुए एएमयू के लिए फिर से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पाने का दरवाजा खोल दिया है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिया है. इस बेंच में 7 जज शामिल थे जिसमें से 4 ने पक्ष में और 3 ने विपक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले को देते हुए मामले को 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. अब नई बेंच जांच करेगी की एएमयू की स्थापना के पीछे किसका 'दिमाग' था, क्या अल्पसंख्यकों ने इसकी स्थापना की थी और उनका उद्देश्य क्या था? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर यह निर्धारित हो जाता है कि विश्वविद्यालय की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय ने की थी तो संस्थान अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है.

दरअसल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा 'अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज' के रूप में की गई थी. बाद में, साल 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' रखा गया. एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिली कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने बदला 57 साल पुराना फैसला
साल 1967 में अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि क्योंकि विश्वविद्यालय की स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी, इसलिए इसे अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित नहीं कहा जा सकता था, इसलिए इस आधार पर इसे अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया गया.

1981 में मिला अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा
इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के अधिकारियों द्वारा विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में 50% सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित करने के विवादास्पद कदम के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका और बाद में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई. देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 संसद में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ.

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2005 में अल्पसंख्यक का दर्जा हटा
साल 2005 में एएमयू के कुछ स्टूडेंट इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे, जिन्होंने मुस्लिमों को 75 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने पर सवाल खड़े किए थे. साल 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. 2006 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी. फिर 2016 में केंद्र ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है. साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजा था, जिस पर आज फैसला आया है.आइये जानते हैं अगर एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता है तो क्या फायदा होगा?

अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त संस्थानों में दाखिला प्रक्रिया, मुस्लिम छात्रों के लिए अलग कोटा, कर्मचारियों कीभर्ती से लेकर वित्तीय सहायता तक कई विशेष अधिकारप्राप्त होते हैं. अगर एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया जाता है तो उसे भी विशेषाधिकार मिलेंगे.

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में क्या दिशा-निर्देश लागू होते हैं?
i. प्रवेश सक्षम प्राधिकारी द्वारा आयोजित कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर मेरिट के आधार पर किए जाएंगे.
ii. किसी पाठ्यक्रम में कुल स्वीकृत सीटों में से 50 प्रतिशत सीटें अन्य समुदायों के उम्मीदवारों से भरी जाएंगी.
iii. शेष 50% सीटें कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर योग्यता के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों से भरी जाएंगी.
iv. अल्पसंख्यक समुदाय और अन्य समुदायों के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत सीटें फ्री सीटों और भुगतान सीटों में समान रूप से वितरित की जाएंगी और मेरिट के आधार पर भरी जाएंगी.
v. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित सीटों के सभी आरक्षण अल्पसंख्यक समुदायों के लिए उपलब्ध मुफ्त सीटों पर भी लागू होंगे.
vi. अल्पसंख्यक कोटे में खाली बची कोई भी सीट अन्य समुदायों के उम्मीदवारों से भरी जाएगी.
vii. सभी प्रवेश सक्षम प्राधिकारी द्वारा आयोजित कॉमन एंट्रेंस टेस्ट के अनुसार मेरिट के आधार पर किए जाएंगे. मेरिट सूची के बाहर कोई भी प्रवेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि सक्षम प्राधिकारी ऐसा करने की अनुमति न दे.

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अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मिलने वाले विशेषाधिकार
भारत में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं. ये विशेषाधिकार संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत दिए गए हैं, जो अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है.

सरकारी मान्यता की आवश्यकता नहीं: अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को सरकार से विशेष मान्यता लेने की आवश्यकता नहीं है. ये संस्थान अपने स्वयं के नियम और विनियम बना सकते हैं.(एन.अम्माद बनाम मैनेजर, एमजे हाई स्कूल और अन्य)

आरक्षण नीति से मुक्ति: इन संस्थानों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि अन्य शिक्षण संस्थानों को करना पड़ता है.

समुदाय के लिए आरक्षण: ये संस्थान अपने समुदाय के छात्रों के लिए अधिकतम 50% सीटें आरक्षित कर सकते हैं.

कर्मचारियों के नियुक्ति में स्वायत्तता: अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों और प्रधानाचार्यों की नियुक्ति में अधिक स्वायत्तता होती है. वे अपने समुदाय के सदस्यों को प्राथमिकता दे सकते हैं. उदाहरण के लिए, शिक्षकों और प्रिंसिपलों के चयन में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान में एक चयन समिति हो सकती है, जिसमें विश्वविद्यालय प्रतिनिधि शामिल नहीं होते हैं. इसी तरह, जबकि सामान्य स्कूलों में प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति सामान्यतः वरिष्ठता के आधार पर की जाती है, अल्पसंख्यक प्रबंधन अपनी पसंद का प्रधानाध्यापक चुन सकता है.

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संस्थान स्थापना में आसानी: अल्पसंख्यक संस्थानों को स्थापित करने की प्रक्रिया सरल है. एनसीएमईआई संशोधन विधेयक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के लिए "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट" प्राप्त करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता है.

संबद्धता की अधिक स्वायत्तता: अल्पसंख्यक संस्थानों को छह निर्धारित विश्वविद्यालयों में से किसी एक से संबद्ध होने का अधिकार है.

वित्तीय सहायता

अल्पसंख्यक संस्थान स्व-वित्त पोषित या सरकारी सहायता प्राप्त हो सकते हैं. इसके अलावा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम (NMDFC) अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम (एनएमडीएफसी) की स्थापना भारत सरकार द्वारा "अल्पसंख्यकों के आर्थिक विकास पर विशेष ध्यान" प्रदान करने के लिए की गई थी. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत पांच समुदायों यानी मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी के लोगों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया है.

NMDFCका उद्देश्य गरीबी रेखा से दोगुने नीचे रहने वाले अल्पसंख्यकों को स्वरोजगार के लिए रियायती वित्त प्रदान करना है. एनएमडीएफसी भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है. एनएमडीएफसी की अधिकृत शेयर पूंजी 500 करोड़ रुपये है. चुकता शेयर पूंजी (31/03/2003 तक) 318.21 करोड़ रुपये थी, जिसमें से 258.42 करोड़ रुपये भारत सरकार द्वारा और 59.79 करोड़ रुपये विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन द्वारा दिए गए हैं.

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इन विशेषाधिकारों के बावजूद, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को भी कुछ नियमों और विनियमों का पालन करना होता है, जैसे कि मानक शिक्षा प्रदान करना और छात्रों के कल्याण का ध्यान रखना.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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