भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर हो रहे हैं. रिटायरमेंट से पहले मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक औपचारिक पत्र लिखा है, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना को देश का अगला चीफ जस्टिस नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है. यह पत्र देश की न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो भविष्य में न्यायिक प्रणाली के नेतृत्व में परिवर्तन का संकेत देता है. ऐसे में देश के नए चीफ जस्टिस के बारे में खास बातें जानते हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी से की है लॉ की पढ़ाई
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ थी. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने काननू की दुनिया में करियर बनाने का सोचा. कानून की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. उन्होंने डीयू के कैंपस लॉ सेंटर से पढ़ाई की और 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में बतौर वकील पंजीकरण कराया. अपने करियर की शुरुआत में, उन्होंने तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस की. इसके बाद में दिल्ली हाई कोर्ट में कई सालों तक वकालत की. अपने अद्वितीय कानूनी ज्ञान और अनुभव के चलते, उन्हें 18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया.
इससे पहले जस्टिस खन्ना इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सीनियर स्टैंडिंग कॉउन्सिल के रूप में भी काम कर चुके हैं. अपने करियर की शुरुआत में टैक्स से जुड़े भी कई केस संभाले थे. यही नहीं, उन्होंने अडिशनल पब्लिक प्रासीक्यूटर के रूप में भी सर्विस की है और दिल्ली हाई कोर्ट में आपराधिक मामलों में अक्सर एमीकस क्यूरी के रूप में नियुक्त हुए. एमिकस क्यूरी, कोर्ट की मदद करके कानून के आधार पर निर्णय लेने में मदद करते हैं. वकालत करने के बाद उनके ज्यूडिशियल करियर की बात करें तो 24 जून 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में उनकी नियुक्ति के साथ शुरू हुआ था. इसके बाद 20 फरवरी 2006 को उन्हें यहां का परमानेंट जज बनाया गया.
VVPAT को लेकर अहम फैसला सुनाने वाले जस्टिस संजीव खन्ना
2024 में, जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में एक डिवीजन बेंच ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें 100 प्रतिशत वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) स्लिप्स की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) वोटों से जांच की मांग की गई थी. जस्टिस खन्ना ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा लागू सुरक्षा उपायों को सही ठहराते हुए कहा कि वर्तमान प्रणाली वोटों की तेज, त्रुटिरहित और सुरक्षित गिनती सुनिश्चित करती है, जिससे भारत की चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुरक्षित रहती है.
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जस्टिस संजीव खन्ना का अहम फैसला
2024 में एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जस्टिस संजीव खन्ना ने पांच जजों वाली बेंच में हिस्सा लिया, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. यह योजना राजनीतिक दलों को धनराशि देने के लिए बनाई गई थी, जिसमें दानदाता अपनी पहचान को गोपनीय रख सकते थे. जस्टिस खन्ना ने इस फैसले में एक सहमति जताई, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किए गए दान के मामले में दानदाताओं की गोपनीयता का दावा सही नहीं हो सकता. उनका कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड का लेन-देन जिन बैंक अधिकारियों के माध्यम से होता है, वे पहले से ही दानदाताओं की पहचान से परिचित होते हैं, इसलिए दानदाता की पहचान गोपनीय नहीं रहती. इस तरह, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि दानदाताओं की गोपनीयता का तर्क इस संदर्भ में अस्वीकार्य है और इस योजना को संविधान के अनुरूप नहीं माना जा सकता.
अनुच्छेद 370 हटाना
जस्टिस संजीव खन्ना ने 2023 में एक ऐतिहासिक निर्णय में योगदान दिया, जिसमें पांच न्यायाधीशों की बेंच ने अनुच्छेद 370 के निरसन को सही ठहराया था. अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था, जो कि राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक स्थिति को प्रभावित करता था.
इस निर्णय के माध्यम से, बेंच ने यह स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार का अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का निर्णय संवैधानिक और वैध है. इस फैसले ने जम्मू और कश्मीर के विशेष अधिकारों को समाप्त किया और राज्य को भारतीय संघ के अन्य राज्यों के समान अधिकार प्रदान किए. जस्टिस खन्ना की इस महत्वपूर्ण भूमिका ने देश की राजनीति और संविधान में एक नया अध्याय जोड़ा.
तलाक को लेकर अहम फैसला
2023 के शिल्पा सैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामले में, जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकार की पुष्टि करते हुए कहा कि अदालत संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सीधे तलाक दे सकती है.उन्होंने कहा कि यदि शादी पूरी तरह से टूट चुकी है और दोनों के बीच सुलह संभव नहीं है, तो अदालत "पूर्ण न्याय" के लिए शादी को खत्म कर सकती है.इस फैसले को भारत में तलाक कानून को आगे बढ़ाने में एक अहम कदम माना गया.
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