गरीबी से जंग हार रहे होनहार छात्र! कम उम्र में NEET और JEE क्रैक कर मिली सीट, लेकिन...

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'जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन.... पांव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को' बिस्मिल अज़ीमाबादी की ये लाइन उत्तर प्रदेश के अतुल कुमार और ओडिशा के शंकरसन मंडल की तंगहाली बयां करती हैं. जिनके शहर भले ही अलग हैं लेकिन कहानी एक जैसी है. दोनों छात्र होनहार हैं, मां-बाप ने जैसे-तैसे 12वीं तक की पढ़ाई करा दी. बच्चों ने भी ऊंची उड़ाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. शंकरसन ने जहां NEET UG (मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम) में अच्छा स्कोर किया है, वहीं अतुल ने IIT JEE (इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम) क्रैक किया है. इसके बावजूद डॉक्टर और इंजीनियर बनने में असमर्थ हैं. दोनों की कहानी का एक विलेन है, गरीबी.

गांव वालों से उधार लेकर जुटाई थी इंजीनयिरिंग कॉलेज की फीस

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के टिटोडा गांव के रहने वाले गरीब होनहार छात्र अतुल कुमार का मामला सामने आया था. 18 वर्षीय अतुल को जेईई में अच्छे स्कोर की वजह से आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की सीट पहले राउंट में अलॉट हो गई थी. लेकिन खराब आर्थिक स्थिति के चलते लास्ट डेट 24 जून तक फीस के पैसाने जुटाने में समय लग गया.

सुप्रीम कोर्ट से लगाई मदद की गुहार

अतुल तय समय पर अपनी फीस जमा नहीं कर पाया. छात्र की मानें तो उसके गरीब परिवार ने किसी तरह गांव वालों से उधार पैसे लेकर इकट्ठा तो कर लिए थे लेकिन उस दिन छात्र अतुल ऑनलाइन वेबसाइट पर सिर्फ अपने डॉक्यूमेंट सबमिट कर पाया था लेकिन वह आखिरी समय में अपनी फीस जमा नहीं कर पाया. वह एडमिशन का एक और मौका पाने के लिए पहले झारखंड हाईकोर्ट, फिर मद्रास हाईकोर्ट और आखिरी उम्मीद लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जहां सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने उम्मीद बंधाई कि आपकी पूरी मदद की जाएगी और कॉलेज को नोटिस जारी किया जाएगा. इस मामले में 30 सितंबर को सुनवाई है. अतुल के पिता एक फैक्ट्री में मजदूर हैं और मां गृहणी हैं.

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मेडिकल कॉलेज की फीस देने में असमर्थ दिहाड़ी मजदूर माता-पिता

वहीं ताजा मामला ओडिशा के 19 वर्षीय छात्र शंकरसन मंडल का है. कंधमाल जिले के एक दूरदराज के गांव मुनीगुडा के रहने वाले शंकरसन ने इसी साल NEET-UG परीक्षा में अच्छा स्कोर किया है. जिसकी बदौलत उन्हें तमिलनाडु के सरकारी कुड्डालोर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में MBBS की सीट तो मिल गई लेकिन पैसों की कमी के चलते फीस नहीं भर पा रहे. मेडिकल कॉलेज की एडमिशन फीस 93000 रुपये है.

टाइम्स ऑफ इंडिया न्यूज वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, शंकरसन ने चाकापाड़ा में स्थित सरकारी ओडिशा आदर्श विद्यालय में प्लस टू (12वीं) की पढ़ाई पूरी करते हुए बिना कोचिंग इंटरनेट के जरिये नीट यूजी की तैयारी है. शंकरसन के पिता माणिक मंडल और मां देवकी दोनों दहाड़ी मजदूर हैं जिसकी वजह से एक साथ इतनी बड़ी रकम (93000 रुपये फीस) जुटाने में असमर्थ हैं.

ओडिशा की सीएम से मांगी मदद

छात्र की मां देवकी का कहना है, "उसकी (छात्र शंकरसन) कड़ी मेहनत और भगवान के आशीर्वाद के कारण, उसका चयन एमबीबीएस सीट के लिए हुआ है. क्योंकि हम अपनी मामूली आय से उसकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे, इसलिए हमने उसकी पढ़ाई जारी रखने के लिए सरकार से वित्तीय मदद की अपील की है." छात्र ने ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी को पत्र लिखकर मदद मांगी है. हालांकि कुछ बैंक अधिकारी छात्र की कॉलेज फीस के लिए एजुकेशन लोन देने पर सहमत हो गए हैं, लेकिन हॉस्टल फीस के लिए नहीं. अब इन दोनों छात्रों का भविष्य सुप्रीम कोर्ट और ओडिशा के सीएम की मदद पर निर्भर है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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