आसपास के लोगों में भी छुपे हो सकते हैं चाइल्ड abusers, एक्सपर्ट ने बताया बच्चों को कैसे करें ट्रेंड

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महाराष्ट्र में दो नाबालिग बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. चौथी कक्षा की दो बच्चियों के साथ कथित यौन उत्पीड़न के मामले में लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है. 17 अगस्त को पुलिस ने बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में एक स्कूल अटेंडेंट को पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत गिरफ्तार किया है. पीड़ित बच्चियों के माता-पिता ने एक दिन बाद इस मामले में केस दर्ज करवाया. क्योंकि आरोपी ने बच्चियों को डराया-धमकाया था, जिसकी वजह से पेरेंट्स को इसके बारे में देर से पता चला. इहबास दिल्ली के सीनियर मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश का कहना है कि यौन शोषण की पहचान करना अक्सर चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि बच्चे इस दर्दनाक अनुभव को साझा करने में असमर्थ या असहज हो सकते हैं. फिर भी, कुछ संकेत ऐसे हैं जो इस शोषण की ओर इशारा कर सकते हैं.

दरअसल, बच्चों के साथ यौन शोषण एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जो समाज के हर वर्ग में चिंता का विषय बना हुआ है. इस प्रकार के शोषण की पहचान और रोकथाम के लिए माता-पिता, शिक्षकों, और समाज के अन्य सदस्यों को जागरूक और सतर्क रहना बहुत जरूरी है. इसलिए हमने इहबास, दिल्ली के सीनियर मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश से बच्चों के साथ यौन शोषण की पहचान के संकेतों, माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका, रोकथाम के उपायों, और समाज एवं सरकार की भूमिका पर विस्तार से बातचीत की.

यौन शोषण की पहचान के संकेत

डॉ. ओमप्रकाश ने बताया कि सबसे पहले, बच्चे के व्यवहार में अचानक परिवर्तन जैसे अत्यधिक चुप्पी, डर, या उदासी देखी जा सकती है. इसके अतिरिक्त, शारीरिक लक्षण जैसे पेट दर्द, सिरदर्द, या अन्य शारीरिक समस्याएं भी शोषण का संकेत हो सकती हैं, विशेष रूप से जब ये लक्षण स्पष्ट कारण के बिना उत्पन्न होते हैं. असामान्य चोटें या शरीर पर निशान भी यौन शोषण का स्पष्ट संकेत हो सकते हैं, जिन्हें किसी सामान्य दुर्घटना से नहीं जोड़ा जा सकता. नींद में परेशानी, बार-बार बुरे सपने आना, या अचानक नींद से जाग जाना भी संकेत हो सकते हैं कि बच्चा किसी मानसिक तनाव या शोषण से गुजर रहा है.

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माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका

माता-पिता और शिक्षकों का बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है, और वे अक्सर पहले व्यक्ति होते हैं जो किसी प्रकार के असामान्य व्यवहार को नोटिस कर सकते हैं. यदि कोई बच्चा अचानक आत्मविश्वास में गिरावट महसूस करने लगे, किसी खास व्यक्ति के साथ समय बिताने से बचने लगे, या सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाने लगे, तो यह एक चेतावनी का संकेत हो सकता है.

इसके अलावा, अगर बच्चा अपने उम्र के हिसाब से अनुचित यौन ज्ञान या व्यवहार प्रदर्शित करता है, तो यह भी यौन शोषण का एक संकेत हो सकता है. माता-पिता और शिक्षकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा स्कूल में कैसा प्रदर्शन कर रहा है. यदि बच्चा अचानक ध्यान नहीं दे पा रहा है, उसके ग्रेड्स गिर रहे हैं, या वह स्कूल जाने से बचने के बहाने ढूंढ रहा है, तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए.

रोकथाम के उपाय

डॉ. ओमप्रकाश का मानना है कि यौन शोषण की रोकथाम के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम बच्चों को उनके शरीर के बारे में सही जानकारी देना और उन्हें यह सिखाना है कि कौन से स्पर्श सही हैं और कौन से गलत. बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि वे किसी भी असहज स्थिति में "ना" कह सकते हैं और अपने माता-पिता, शिक्षकों, या किसी अन्य विश्वासपात्र व्यक्ति से बात कर सकते हैं.

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माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के साथ नियमित रूप से खुली और भरोसेमंद बातचीत को प्रोत्साहित करना चाहिए. बच्चों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वे किसी भी परेशानी या संदेह के बारे में खुलकर बात कर सकते हैं. इसके साथ ही, बच्चों के आसपास के वयस्कों, जैसे कि शिक्षक, कोच, या देखभाल करने वालों का उचित पृष्ठभूमि जांच करना भी अनिवार्य है. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे बच्चे के लिए सुरक्षित हैं.

समाज और सरकार की भूमिका

समाज और सरकार की भूमिका इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने और सख्त कानून लागू करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है. समुदाय में यौन शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने चाहिए. इसमें स्कूल, समुदाय, और धार्मिक संगठनों को शामिल किया जा सकता है ताकि इस गंभीर समस्या के बारे में जानकारी फैल सके.

सरकार को यौन शोषण से जुड़े मामलों में सख्त कानून लागू करना चाहिए और इनकी प्रभावी निगरानी करनी चाहिए. इसके साथ ही, ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग को सरल और सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए. इसके अलावा, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के लिए मनोवैज्ञानिक, कानूनी, और सामाजिक समर्थन सेवाओं का विस्तार करना चाहिए. यह उन्हें इस कठिन समय में सहारा देने में मदद करेगा.

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यह समझना बहुत जरूरी हो गया है कि बच्चों के साथ यौन शोषण की पहचान और रोकथाम एक सामूहिक जिम्मेदारी है. माता-पिता, शिक्षकों, और समाज के अन्य सदस्यों को बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतर्क और जागरूक रहना चाहिए. इसके साथ ही, सरकार और समुदाय को मिलकर इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए कदम उठाने चाहिए. केवल तभी हम एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण बना सकते हैं, जिसमें हमारे बच्चे भयमुक्त होकर जी सकें और अपने सपनों को साकार कर सकें.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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