उत्तर प्रदेश के संभल (Sambhal) में कुओं और तीर्थ स्थलों को रीस्टोर करने और लोगों को उनकी धार्मिक परंपराओं से फिर से जोड़ने की कोशिशों के तहत, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और स्थानीय प्रशासन की एक टीम ने बुधवार को कई ऐतिहासिक स्थानों का दौरा किया. इनमें फिरोजपुर किला, बावड़ियां (सीढ़ीदार कुएं) और चोर कुआं जैसी प्राचीन संरचनाएं शामिल थीं.
खंडहर हो चुके फिरोजपुर के किले, तोता मैना की कब्र, पृथ्वीराज चौहान की खंडहर हो चुकी बावड़ी को संरक्षित करने की दिशा में काम शुरू भी हो चुका है.
संभल के DM ने क्या बताया?
एजेंसी के मुताबिक, संभल के डीएम डॉ राजेंद्र पेंसिया ने कहा, "हमने फिरोजपुर किले का दौरा किया, जो ASI द्वारा संरक्षित है. हमारे साथ एएसआई की टीम भी थी. उसके बाद, हमने नीमसार तीर्थ स्थल के नीचे एक कूप (कुआं) का दौरा किया, जो एकमात्र कूप है, जिसमें अभी भी पानी है. हमने राजपूत बावड़ियों (खुले कुओं) का भी दौरा किया."
उन्होंने कहा, "इस शहर का इतिहास बहुत समृद्ध है, पुराणों से लेकर पृथ्वीराज चौहान की दूसरी राजधानी और सिकंदर लोदी की राजधानी होने तक. हमें इस इतिहास को संरक्षित और फिर से स्थापित करना चाहिए."
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क्या है फिरोजपुर किले का इतिहास?
संभल की कहानी बेहद पुरानी है. यह अपने अंदर कई सौ साल पुराना इतिहास समेटे हुए है. मुगल सल्तनत के दौर में दिल्ली और आगरा के बीचो-बीच संभल रियासत बसी थी. इस इलाके में फिरोजपुर किले के साथ कई ऐसी जगहें हैं, जो संभल का सदियों पुराना इतिहास बयां करती हैं.
फिरोजपुर में बना सय्यद फिरोज शाह का किला संभल शहर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. देख-रेख नहीं होने की वजह से इसकी हालत बिल्कुल जर्जर हो चुकी है. यह सोत नदी के किनारे बनवाया गया था. मुरादाबाद मार्ग पर मुगल बादशाह शाहजहां के दौर में साल 1650-1655 के बीच सय्यद फिरोज ने ये किला बनवाया था.
फिरोजशाह, शाहजहां के शासनकाल में संभल क्षेत्र के गवर्नर रहे रुस्तमखां दक्खिनी के फौजी थे. उन्हें बादशाह शाहजहां ने सोत नदी के किनारे की जमीनें तोहफे मे दी थी. तोहफे में मिली इसी जमीन पर यह किला बनवाया गया था. जानकारी के मुताबिक, मौजूदा वक्त में किले की जमीन पर अवैध कब्जे भी हो चुके हैं. करीब 358 साल पहले बनवाए गए इस किले की जिम्मेदारी मौजूदा वक्त में पुरातत्व विभाग के पास है.
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