$1=4,210,500,000,000... कूड़ा हो गई थी करेंसी, प्लेकार्ड की तरह खेलते थे बच्चे, आज भारत से बड़ी इकॉनमी

नई दिल्ली: जर्मनी दुनिया की तीसरी और यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी है। लेकिन एक समय ऐसा भी था कि जब भारी महंगाई के कारण जर्मनी की करेंसी की कीमत कूड़ा रह गई थी। यह 1930 के दशक के शुरुआती वर्षों की बात है। तब जर्मन करेंसी को मार्क कहा जाता था। महंगाई

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नई दिल्ली: जर्मनी दुनिया की तीसरी और यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी है। लेकिन एक समय ऐसा भी था कि जब भारी महंगाई के कारण जर्मनी की करेंसी की कीमत कूड़ा रह गई थी। यह 1930 के दशक के शुरुआती वर्षों की बात है। तब जर्मन करेंसी को मार्क कहा जाता था। महंगाई के कारण एक डॉलर की कीमत 4,210,500,000,000 मार्क पहुंच गई थी। हालत यह हो गई थी कि बच्चे इसे प्लेकार्ड की तरह यूज करने लगे थे। इस कारण जर्मनी में लाखों लोग दिवालिया हो गए थे। इस संकट ने देश में हिटलर की नाजी पार्टी के उभार में अहम भूमिका निभाई।
पहले विश्व युद्ध के समय जर्मनी में कीमतों दोगुना हो गई थे लेकिन यह देश की आर्थिक बदहाली की शुरुआत थी। साल 1914 में जर्मन सरकार ने नई करेंसी लॉन्च की। उसे लग रहा था कि यह ज्यादा लंबा नहीं चलेगा। लेकिन यह युद्ध चार साल चला और इसमें जर्मनी की हार हुई। वर्साय की संधि के कारण जर्मनी को भारी कीमत चुकानी पड़ी। कीमतें बढ़ने और मार्क की सप्लाई बढ़ने से देश में महंगाई बढ़ने लगी। प्रथम विश्व युद्ध से पहले एक यूएस डॉलर की कीमत चार मार्क के बराबर थी। लेकिन 1920 में मार्क की कीमत 16 गुना गिर गई।

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अखबार खरीदने के लिए बोरा भर नोट

एक डॉलर की कीमत 69 मार्क पर यह कुछ दिन तक स्थिर रही लेकिन सरकार ने और ज्यादा पैसे छापना शुरू कर दिया। जुलाई 1922 तक कीमतों में 700 फीसदी उछाल आ चुकी थी। हालत यह हो गई कि सरकार को मिलियन और बिलिनयन मार्क के नोट छापने पड़े। नवंबर 1923 में एक डॉलर की कीमत एक ट्रिलियन मार्क पहुंच गई थी। हालत यह हो गई थी कि एक अखबार खरीदने के लिए लोगों को एक बोरा नोट देने पड़ रहे थे। एक छात्र ने तो उस दौर को याद करते हुए कहा था कि उसने 5,000 मार्क में एक कप कॉफी ऑर्डर की थी और अगले ही क्षण इसकी कीमत 7,000 मार्क पहुंच गई थी।

महंगाई ने हिटलर के जर्मनी की सत्ता में आने का रास्ता साफ किया। अगस्त 1924 में एक नई करेंसी Rentenmark लॉन्च की गई। उसके बाद चीजें काबू में आई। आज अमेरिका और चीन के बाद जर्मनी दुनिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी है। आज जर्मनी यूरोपीय संघ का हिस्सा है और उसकी करेंसी यूरो है। फोर्ब्स के मुताबिक जर्मनी की जीडीपी $4.71 ट्रिलियन डॉलर और प्रति व्यक्ति जीडीपी 55.52 हजार डॉलर है। भारत 3.89 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की पांचवीं बड़ी इकॉनमी है लेकिन उसकी जीडीपी पर कैपिटा 2.7 हजार डॉलर है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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