फिल्म:बेबी जॉन
- कलाकार : वरुण धवन, राजपाल यादव, वामिका गब्बी, कीर्ति सुरेश, जैकी श्रॉफ
- निर्देशक :कालीस
'बेबी जॉन' वो फिल्म है जिसमें आपको राजपाल यादव एक्शन करते दिख रहे हैं. और यकीन मानिए क्लाइमैक्स से ठीक पहले उनका एक डायलॉग और ये एक्शन फिल्म का यादगार मोमेंट है. ऐसा नहीं है कि 'बेबी जॉन' के हीरो वरुण धवन ने दमदार काम नहीं किया है. लेकिन मास फिल्मों की खासियत ही आपको सरप्राइज करना होता है. कुछ ऐसा करना जो सोच से इतना परे हो कि आप डायरेक्टर-राइटर की सोच स्क्रीन पर देखकर 'वाओ' वाली फीलिंग में आ जाएं.
मास फिल्मों की आइकॉन 'गदर' में सनी देओल का हैंडपम्प उखाड़ना इसीलिए आज भी अद्भुत लगता है. लेकिन फिर भी स्क्रीन पर ये सीन विश्वास करने लायक लगता है क्योंकि सनी हैं भी इतने दमदार आदमी. वरुण धवन नेचुरली एक चार्मिंग और मजेदार आदमी लगते हैं. इसलिए अगर वो विस्फोटक एक्शन और इंटेंसिटी के साथ दिखें तो सरप्राइज वाली बात होती है, जैसे 'बदलापुर'. तो हुआ ये है कि 'बेबी जॉन' में ये सरप्राइज वाला मामला पर्याप्त नहीं लगता और ये कमी कमजोर स्क्रिप्ट की है.
क्या है 'बेबी जॉन' का प्लॉट?
फिल्म की शुरुआत होती है एक पुलिस ऑपरेशन से जिसमें सेक्स ट्रेड के लिए लड़कियों को किडनैप कर विदेश भेजने वाले रैकेट का खुलासा होता है. मगर ये ऑपरेशन बड़े फनी तरीके से फेला होता है क्योंकि पुलिस ऑफिसर कीअपनी बेटी भी किडनैप हो चुकी है. यहां सीक्रेट पुलिस ऑफिसर टाइप एक आदमी का जिक्र आता है. कहां से? कैसे? ये सवाल ना पूछें क्योंकि फिल्म के पास ये सब बताने का टाइम नहीं है.
जॉन (वरुण धवन) और उसकी बेटी खुशी (जारा जैना) केरल में हंसते-गाते जी रहे हैं. नदी किनारे जॉन का बेकरी कम कैफे टाइप कुछ है, जिसे एक्सप्लेन करने का फिल्म के पास टाइम नहीं था. बाप-बेटी हंसी-खुशी गाने गाते एक दूसरे के साथ जिंदगी का स्वाद ले रहे हैं और उनके साथ गाना गाने खुशी की टीचर तारा (वामिका गब्बी) भी आ जाती हैं, क्योंकि उसे जॉन में बड़ी दिलचस्पी है. इसकी वजह आप अपने आप समझ लें क्योंकि फिल्म के पास एक्सप्लेन करने का टाइम नहीं है.
इन सबकी हंसी खुशी चलती जिंदगी में एक ट्विस्ट आता है और जॉन का पास्ट खुलने लगता है. वो सत्या वर्मा नाम का एक पुलिस ऑफिसर था, जिसका बड़ा ट्रैजिक पास्ट है. और उस पास्ट में से जॉन के पास प्रेजेंट में सिर्फ दो ही चीजें बची हैं- उसकी बेटी खुशी और उसका पुराना साथी राम सेवक (राजपाल यादव). खुशी के पीछे अब वो विलेन पड़ा है, जो जॉन उर्फ सत्या के पास्ट से निकला है.
विलेन का नाम है बब्बर शेर (जैकी श्रॉफ), जो आजकल ट्रेंड में चल रहे बिना नहाए धोए, शरीर पर दो चार खून के छींटे लेकर घूमने वाले अनहाइजीनिक विलेन का स्टीरियोटाइप है. हालांकि, इस रोल में जैकी जमे बहुत हैं. तो अब जॉन को बब्बर शेर से निपटना है, खुशी को सुरक्षित रखना है और चूंकि वो मास हीरो है वो थोड़ी बहुत मसीहाई भी करनी है. तारा के अपने कुछ एजेंडे हैं, जो फिल्म में देखना ही आपके लिए ठीक रहेगा. बस सवाल ये है कि कहानी की शुरुआत में जिस अंडर कवर ऑफिसर टाइप आदमी का जिक्र आया था, वो कौन है?
कैसी है फिल्म?
'बेबी जॉन', 2016 में आई एटली की फिल्म 'थेरी' की एडॉप्टेशन है, जिन्होंने इस बार वरुण की फिल्म प्रोड्यूस की है. फिल्म को डायरेक्ट किया है कालीस ने. लेकिन दिक्कत ये है कि 'थेरी' खुद एक ऐसी फिल्म थी, जिसकी राइटिंग कोई बहुत कमाल नहीं थी. लोगों को वो फिल्म पसंद आई थी अपने मास मोमेंट्स और हीरो थलपति विजय की वजह से. विजय उस समय हर फिल्म में ताबड़तोड़ एक्शन हीरो बने हुए थे. लेकिन 'थेरी' में वो एक ऐसे आदमी के रोल में थे जो हिंसा से बचता है और बहुत प्यारा लगता है. इसलिए जब फिल्म फाइनली उन्हें एक्शन हीरो अंदाज में रिवील करती है, तो एक ट्विस्ट आया था.
'बेबी जॉन' की दिक्कत ये है कि इसने 'थेरी' की राइटिंग से सबक नहीं लिया. उसी लचर राइटिंग के साथ फिल्म ने विलेन के आर्क और कहानी में लड़कियों को सेक्स ट्रेड के लिए बेचे जाने का एंगल जोड़कर मामले को और उलझा दिया. जैकी श्रॉफ ऑरिजिनल फिल्म से ज्यादा भयानक फील होने वाले विलेन हैं. लेकिन उनकी अतरंगी हरकतों के पीछे की कोई वजह एक्सप्लोर नहीं की गई है, जो उनके किरदार को बस एक शोपीस विलेन बनाती है.
वामिका गब्बी के किरदार को मेकर्स ने एक ऐसा ट्विस्ट दिया है, जो फिल्म के काम ही नहीं आता. लेकिन अब बासी चावल को नाश्ते में खाना है तो फ्राई करने के लिए कुछ ना कुछ आउट ऑफ सिलेबस चीज से तड़का तो मारना पड़ेगा ना! फ़्लैशबैक की स्टोरी में कीर्ति सुरेश से आप नजरें नहीं हटा पाएंगे, मगर ट्रीटमेंट का कमाल ऐसा है कि उनके किरदार में भी थिएटर से बाहर निकलकर याद रखने लायक कुछ खास नहीं नजर आता.
वरुण धवन एक्शन में एफर्टलेस लगते हैं और उनका चार्म भी स्क्रीन पर काम करता है. लेकिन उनके किरदार में वजन कम लगता है. इससे धांसू इंटेंसिटी और एक्शन के साथ वो हाल ही में 'हनी बनी' में नजर आ चुके हैं. फिल्म रुककर जॉन या सत्या के इमोशन एक्सप्लोर नहीं करती और एक चीज से दूसरी चीज पर भागती रहती है.
फर्स्ट हाफ के पहले 40 मिनट तो इतनी तेजी से भागे कि लगा डायरेक्टर का मूड यहीं पर फिल्म निपटा देने का है. मगर फिर उन्हें याद आया कि बहुत सारे एक्शन सीक्वेंस के साथ उन्होंने वरुण को लेकर 'जनता का मसीहा, गरीबों का देवता, बेसहारों का रक्षक' टाइप जो पोर्शन शूट किए थे वो भी फिल्म में फिट करने हैं. फिर उन्होंने करीने से इन्हें इस हिसाब से फिल्म में सेट किया कि 15 मिनट से ज्यादा कहानी की लय बरकरार ना रहे. सबसे अजीब चीज ये है कि टीवी पर 'थेरी' का जो डब हिंदी वर्जन चलता था, 'बेबी जॉन' के डायलॉग उसके मुकाबले भी कहीं ज्यादा ठन्डे हैं. ऊपर से फिल्म का साउंड इतना शोर भरा है कि आप थिएटर में जाते अकेले हैं, मगर बाहर निकलते हैं सिर-दर्द को कंधे पर बिठाए हुए.
कुल मिलाकर 'बेबी जॉन' एक ऐसी फिल्म है जिसे देखने के बाद सिर्फ एक ही लाइन सूझती है- वरुण धवन मास हीरो वाले रोल भी अच्छे कर सकते हैं, अगर कोई उन्हें अच्छी स्क्रिप्ट के साथ कास्ट कर ले तो!
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