राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले कैंडिडेट लिस्ट फाइनल करने की तैयारी में है. दिल्ली में चुनावी फाइट केंद्र शासित प्रदेश की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी और केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी के बीच ही मानी जा रही है लेकिन इसमें तीसरा कोण भी है. 1998 से 2013 तक लगातार 15 साल दिल्ली की गद्दी पर काबिज रही कांग्रेस भी चुनाव मैदान में अकेले ताल ठोक रही है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन कर मैदान में उतरे थे लेकिन बीजेपी ने सभी सातों सीटें जीतकर क्लीन स्वीप कर दिया था. विधानसभा चुनाव में दोनों दलों की राहें अलग हैं तो बात इसे लेकर भी हो रही है कि दिल्ली में कांग्रेस पार्टी आखिर किसका गेम बनाएगी और किसका बिगाड़ेगी? आम आदमी पार्टी के दो पूर्व विधायकों आसिम अहमद खान और देवेंद्र सेहरावत की कांग्रेस में एंट्री के बाद इसे लेकर बात और तेज हो गई है. इसे पांच पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- एंटी इनकम्बेंसी के वोट बंटे तो AAP को फायदा
दिल्ली में 2015 से आम आदमी पार्टी की सरकार है. 2013 चुनाव के बाद भी आम आदमी पार्टी की ही सरकार बनी थी जो 49 दिन चल सकी थी. लगातार 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी के बाद सत्ता बचाए रखना किसी भी राज्य में किसी भी दल के लिए आसान नहीं होता और यही वजह है कि सत्ताधारी दल चाहते हैं कि चुनाव में ज्यादा से ज्यादा दल हों, उम्मीदवार हों, विकल्प हों. इसके पीछे रणनीति एंटी इनकम्बेंसी के वोट बंटने की रणनीति होती है. हाल ही में हरियाणा में भी यही हुआ और बहुकोणीय मुकाबले में बीजेपी बड़ी जीत के साथ लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही थी. एंटी इनकम्बेंसी के वोट बीजेपी के साथ ही कांग्रेस और अन्य पार्टियों में बंटे तो इसका लाभ सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को ही मिलेगा.
2- पुराने वोट बेस से थोड़ा भी जोड़ पाई तो आप को नुकसान
आम आदमी पार्टी ने साल 2013 के दिल्ली चुनाव से डेब्यू किया था और पहले ही चुनाव में करीब 30 फीसदी वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. करीब 25 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतकर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही. 2015 के दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी 54.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 67 सीटें जीत प्रचंड जीत के साथ सत्ता में आई. कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले और पार्टी शून्य पर सिमट गई.
2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 53 फीसदी से अधिक रहा और कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर पांच फीसदी से भी नीचे चला गया. बीजेपी का वोट शेयर 2013 के 33.1 के मुकाबले 2015 में 32.8 और 2020 में 38.5 फीसदी रहा. ये आंकड़े इशारा करते हैं कि कांग्रेस का वोट आम आदमी पार्टी के साथ शिफ्ट हो गया. अब कांग्रेस अगर अपने पुराने वोट बेस का छोटा हिस्सा भी जोड़ पाई तो इसका नुकसान आम आदमी पार्टी को उठाना पड़ सकता है.
3- मुकाबला त्रिकोणीय हुआ तो बीजेपी को लाभ
दिल्ली के नतीजों की चर्चा करें तो बीजेपी ने 2015 में उस वक्त भी 32.8 फीसदी वोट शेयर बचाए रखने में सफल रही थी जब आम आदमी पार्टी को एकतरफा जीत मिली थी. 2020 में पार्टी ने न सिर्फ पिछले चुनाव में मिला वोट इंटैक्ट रखा, वोट शेयर और सीटें बढ़ाने में भी सफल रही. ऐसे में अगर मुकाबला बहुकोणीय हुआ तो बीजेपी को भी इसका लाभ मिल सकता है.
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4- क्लोज कॉन्टेस्ट वाली सीटों पर साबित होगी निर्णायक
हरियाणा के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में था. सूबे में कांग्रेस 37 सीटें जीतकर सत्ता से दूर रह गई तो उसके पीछे आम आदमी पार्टी को भी प्रमुख वजह माना गया. आधा दर्जन से अधिक सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस की हार के अंतर से अधिक वोट आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को मिले. दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में लक्ष्मीनगर सीट पर जीत-हार का फैसला 1200 वोट से भी कम के अंतर से हुआ था. क्लोज कॉन्टेस्ट वाली सीटों पर कांग्रेस को मिले वोट आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच अंतर पैदा कर सकते हैं.
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5- अपने बढ़ा सकते हैं आप-बीजेपी की मुसीबत
कांग्रेस भी उसी ट्रैक पर बढ़ती दिख रही है, जिस ट्रैक पर हरियाणा में आम आदमी पार्टी थी. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस-बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के कारण असंतुष्ट नेताओं पर दांव लगाने से परहेज नहीं किया और इसका नतीजा ये हुआ कि करीब दर्जनभर सीटों पर पार्टी पांच हजार से अधिक वोट प्राप्त करने में सफल रही. दिल्ली में कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी और बीजेपी से आए नेताओं पर खुलकर दांव लगा रही है.
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कांग्रेस ने सत्ताधारी पार्टी से आए विधायक अब्दुल रहमान को सीलमपुर विधानसभा सीट, पूर्व विधायक आदर्श शास्त्री को द्वारका से टिकट देकर यह संदेश दे दिया है कि उसे दूसरे दल से आए नेताओं को टिकट देने से परहेज नहीं. कांग्रेस की रणनीति आम आदमी पार्टी और बीजेपी में टिकट बंटवारे के बाद असंतोष का फायदा उठाने की है. ऐसे में दोनों ही दलों के लिए कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरने वाले 'अपने' मुश्किलें बढ़ाने वालेसाबित हो सकते हैं.
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