महिला ने बेटी के लिए दायर की याचिका, हाईकोर्ट ने लगा दिया 10 हजार का जुर्माना, जानें पूरा मामला

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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला पर जुर्माना लगाया है, क्योंकि उसने अपनी बेटी को देखने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जबकि उसे उसकी बेटी का पता था और उसने अदालत के समक्ष पूरी जानकारी नहीं दी थी. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और अमित शर्मा की पीठ ने 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ उसकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस तरह का उपाय लापता बच्चों के वास्तविक मामलों या ऐसे मामलों में नागरिकों की सहायता के लिए है, जहां किसी व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षा खतरे में हो.

पीटीआई के मुताबिक न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने 17 दिसंबर को कहा, "मौजूदा मामले के तथ्य ऐसी किसी स्थिति का खुलासा नहीं करते. याचिकाकर्ता जैसे वादियों द्वारा इस तरह की याचिका का दुरुपयोग किया जा रहा है, जो केवल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से अपने वैवाहिक विवादों को अदालत में लाने की कोशिश कर रहे हैं, वह भी बिना सही तथ्यों का खुलासा किए."

दरअसल, महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और दावा किया था कि उसके पति के परिवार ने उसे प्रताड़ित किया है और उसने वैवाहिक घर छोड़ दिया, जब वह अक्टूबर में अपनी बेटी से मिलने लौटी, तो उसे उससे मिलने नहीं दिया गया. हालांकि, पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट में एक अलग तस्वीर सामने आई, जिसमें दावा किया गया कि महिला 10 जनवरी को अपने ससुराल से चली गई और उसके पति ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई.

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शिकायत के बाद, पुलिस अधिकारी उसके परिवार के सदस्यों और ससुराल वालों के साथ उसकी तलाश में मुंबई गए और उसे एक अन्य व्यक्ति के साथ एक होटल में पाया. अदालत में सामना किए जाने पर महिला ने इन तथ्यों पर विवाद नहीं किया और उसके वकील ने कहा कि उन्हें स्थिति की पूरी जानकारी नहीं है. पति के वकील ने कहा कि बच्ची उनके पास सुरक्षित है और उसकी देखभाल उसके नाना-नानी कर रहे हैं.

वहीं महिला के वकील ने कहा कि वह अपनी बेटी से अगस्त में उसके जन्मदिन पर मिली थी, लेकिन इस तथ्य का उल्लेख उसकी याचिका में नहीं किया गया. पीठ ने कहा, "इस तथ्य का भी याचिका में उल्लेख नहीं किया गया है और यह धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि बेटी का पता नहीं है. मौजूदा याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है, जिसे याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास जमा कराना होगा."

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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