Kuwait airlift Gulf war: भारत के प्रधानमंत्री मोदी कुवैत (PM Modi in Kuwait) में हैं. 43 साल बाद कोई भारतीय पीएम कुवैत पहुंचा है. कुवैत की सत्ता संभाल रही रॉयल फैमिली की वर्तमान पीढ़ी से पीएम मोदी से अच्छे रिश्ते हैं. यूं तो कुवैत के साथ भारत के पुराने ऐतिहासिक और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं. दोनों सरकारों के मौजूदा कार्यकाल में भारत-कुवैत संबंधों को नई मजबूती मिली है. इस बीच कुवैत पर ईराक के हमले और भारत के सबसे बड़े एयर इवैकुएशन यानी कुवैत एयर लिफ्ट की कहानी वायरल हो रही है. क्या है वो किस्सा आइए जानते हैं.
कुवैत एयरलिफ्ट की वो कहानी
करीब 34 साल पहले दो अगस्त, 1990 की अलसुबह तड़के करीब ढ़ाई बजे एक लाख इराक़ी सैनिकों ने अपने टैंकों, हेलिकॉप्टरों और मिलिट्री ट्रकों के साथ कुवैत की सीमा में घुसकर धावा बोल दिया था. वो दौर था इराक के तानाशाह शाषक सद्दाम हुसैन का और उसकी इराकी सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना थी. कुवैत पर इराक के कब्जे और खाड़ी युद्ध (Gulf War) से जुड़ा ये किस्सा आपके रोंगटे खड़े कर देगा.
ईराक के हमले में हजारों लोग बेघर हो गए थे. उस समय कुवैत में करीब 1,70,000 भारतीय रहते थे, जिनकी जान अचानक खतरे में पड़ गई. तब भारत ने अपना सबसे बड़ा एयर लिफ्ट शुरू किया था.
इराक ने आखिर कुवैत के खिलाफ क्यों छेड़ी थी जंग?
इसके पीछे दो वजहें थीं. एक थी सद्दाम हुसैन की गलतफहमी, दूसरी थी सद्दाम हुसैन की वो सनक जिसमें वो खाड़ी देशों की तेल की कमाई का ठेकेदार बनकर खुद को सबसे ऊपर रखना चाहता था. सद्दाम हुसैन ने बाथ क्रांति की 22वीं एनिवर्सरी के मौके पर कुवैत के सामने इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमतों को स्थिर करने के लिए सहयोग करने समेत कई मांगे रखीं थी. उस समय सद्दाम में टेलीविजन पर जारी किए संदेश में कुवैत को धमकी दी कि अगर कुवैत ने इराक की मांगें मानने से इनकार किया तो उसे भीषण मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा.
अमेरिका को सद्दाम की सनक भी भनक लग गई थी. इसलिए उसके राजदूत एक्टिव होते हैं उसे समझाते हैं, लेकिन 25 जुलाई 1990 आते-आते सद्दाम ने अमेरिका को भी कह दिया था कि अगर कुवैत ने बात न मानी तो हमला जरूर होगा.
2 अगस्त 1990 को रात ढाई बजे करीब इराकी फौज मय टैंकों और हेलीकॉप्टर्स के कुवैत में घुस गई. उस समय कुवैत की सेना में मात्र 16000 सैनिक थे. घंटे दो घंटे में कुवैती सेना ने घुटने टेक दिए. इराकी फौज ने कुवैत के राजमहल दसमान पैलेस को घेर लिया. तब तक कुवैत के अमीर और उनका परिवार और सरकार शरण लेने के लिए पड़ोसी मुल्क सऊदी अरब पहुंच चुका था.
उस समय फ्यूल खत्म होने पर एक ब्रिटिश विमान कुवैत उतरा तो सद्दाम ने उसे कब्जा करके अगवा करा लिया. इराक ने जब कुवैत पर हमला बोला तो उसके दूसरे ही दिन अमेरिकन प्रेसिडेंट बुश ने इसकी निंदा करते हुए इराक को चेतावनी दे दी. अमेरिका ने 16 जनवरी, 1991 को इराक के खिलाफ ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ का ऐलान किया, जिसमें उसके साथ 38 देश थे. कुवैत पर इराक के हमले के कुछ घंटे बाद ही अमेरिका ने इराक पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. ईराक को गलतफहमी थी कि अमेरिका से निपट लेंगे. वो लंबी लड़ाई के लिए तैयार था लेकिन उसकी कैलकुलेशन गड़बड़ा गई और मात्र 45 दिनों में इराकी फौज खात्मे के कगार पर आ गई. सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस जंग में एक लाख से ज्यादा इराकी सैनिक मारे गए थे. वहीं, अमेरिका के 383 सैनिकों की मौत हुई थी.
गल्फ वार की टाइम लाइन
2 अगस्त,1990- इराक ने कुवैत पर हमला बोला. तब इराक की सत्ता सद्दाम हुसैन के हाथ में थी. 2 अगस्त,1990- यूनाइटेड नेशन ने रेजोल्यूशन पास कर कुवैत पर इराक के हमले की निंदा की. 6 अगस्त,1990- यूएन ने इराक पर प्रतिबंध लगाए. 7 अगस्त,1990- अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड का आदेश दिया. 8 अगस्त,1990- इराक ने कुवैत पर कब्जा कर लिया और उसे अपना हिस्सा घोषित कर दिया. इराक के खिलाफ हमले की मिली मंजूरी. 29 नवंबर,1990- UN ने 15 जनवरी, 1991 के बाद इराक के खिलाफ सेना का इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी. 16 जनवरी,1991- अमेरिका और गठबंधन देशों ने मिलकर इराक के खिलाफ ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म की शुरुआत की. 27 फरवरी,1991- इराक ने घुटने टेकते हुए बगदाद रेडियो से एलान कराया कि इराक अब यूएन के समझौता प्रस्ताव को मानेगा. कुवैत को मिली आजादी
27 फरवरी, 1991 के दिन कुवैत को इराक के कब्जे से आजादी मिली. करीब दो हफ्ते बाद 14 मार्च,1991 को कुवैत के शासक की वतन वापसी हुई. दरअसल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने चेतावनी दी थी कि 24 फरवरी तक इराकी सेना कुवैत से कब्जा छोड़ दे, वरना अंजाम और बुरा होगा. इसके बाद सद्दान हुसैन को अपने सैनिकों को पीछे हटाना पड़ा. इस दौरान करीब 58 हजार इराकी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था और हजारों सैनिक मारे गए.
कुवैत एयरलिफ्ट की कहानी
1990 में इराकी आक्रमण के बाद कुवैत से भारतीयों को निकालने का अभियान 13 अगस्त 1990 से 20 अक्टूबर 1990 के बीच चलाया गया था. भारत के डेढ़ लाख से ज्यादा लोग कतर में नौकरी करते थे. हालांकि इराकी गार्डों ने भारतीयों को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाया लेकिन ईराकी फौजियों की दहशत हर तरफ थी. वो आने जाने वाले भारतीयों को भी टोकते थे. भारतीय लोग भी घरों और दफ्तरों में कैद होने को मजबूर थे. कुवैत के अमीर के देश छोड़ने के बाद इस बात की संभावना भी कम ही थी कि यहां हालात जल्दी सुधरेंगे क्योंकि सद्दाम हुसैन ने तो कुवैत को अपने देश का हिस्सा मानते हुए इराकी शासन का ऐलान कर दिया था.
इसी बीच कुवैत में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए तत्कालीन चंद्रशेखर सरकार ने कदम उठाया. इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई तत्कालीन विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को, जो तुरंत इस मुद्दे पर सक्रिय हुए और इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से जेद्दा में मुलाकात की.
घटनाक्रम पर बनी थी फिल्म
हालांकि इस एयरलिफ्ट ऑपरेशन में एक गुमनाम भारतीय अरबपति की भूमिका का भी जिक्र किया जाता है जो उस समय कुवैत में रह रहे थे. कहा जाता है कि उसी ने दोनों नेताओं की मुलाकात कराई और इसके बाद ही कुवैत से 1.70 लाख भारतीयों को निकालने का अभियान शुरु हुआ. इसी व्यक्ति के ऊपर ही कुछ दिन पहले अक्षय कुमार की फिल्म 'एयरलिफ्ट' आई थी जिसमें उन्होंने रंजीत कात्याल की भूमिका निभाई थी. उस फिल्म में दावा किया गया कि रंजीत कात्याल ने ही अकेले दम प्रयास कर 1.70 लाख भारतीयों को एयर इंडिया की मदद से एयर लिफ्ट किया था.
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