5 साल में 3-3 मुख्यमंत्री...कहानी 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की जिसमें जीत के बाद BJP का शुरू हो गया वनवास

नई दिल्ली : दिल्ली में वैसे तो पहली बार विधानसभा के लिए चुनाव 1952 में हुए थे लेकिन वह अंतरिम विधानसभा थी। तब दिल्ली पार्ट- सी स्टेट की लिस्ट में थी। 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद 1 नवंबर 1956 से दिल्ली पार्ट-सी स्टेट नहीं रही

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नई दिल्ली : दिल्ली में वैसे तो पहली बार विधानसभा के लिए चुनाव 1952 में हुए थे लेकिन वह अंतरिम विधानसभा थी। तब दिल्ली पार्ट- सी स्टेट की लिस्ट में थी। 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद 1 नवंबर 1956 से दिल्ली पार्ट-सी स्टेट नहीं रही। विधानसभा और मंत्रिपरिषद भंग कर दी गईं। दिल्ली एक केंद्रशासित राज्य बन गई। प्रशासन के लिए दिल्ली मेट्रो काउसिंल का जन्म हुआ। व्यवस्था एक बार फिर बदली। 1991 में 69वें संविधान संशोधन के जरिए 'नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली' बनी जिससे दिल्ली को विशेष दर्जा मिला। राज्य को पूर्ण विधानसभा मिली। 1993 में पहली बार पूर्ण विधानसभा के चुनाव हुए। अंतरिम विधानसभा में 48 सीटें थीं लेकिन पूर्ण विधानसभा में सीटें बढ़कर 70 हो गईं। 'दिल्ली की कहानी' स्पेशल सीरीज की इस तीसरी कड़ी में आज नजर डालते हैं 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव पर।
संविधान में संशोधन और दिल्ली में नई व्यवस्था का आगाज
जैसा कि हमने इस स्पेशल सीरीज के पहले अंक में बताया था कि अंतरिम विधानसभा चुनाव के बाद 1952 में कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री बने। 1955 में उनके इस्तीफे के बाद कांग्रेस के ही सरदार गुरुमुख निहाल सिंह सीएम बने। 1956 तक वह सीएम रहे। 1956 से लेकर 1993 तक दिल्ली मेट्रो काउंसिल के हाथ में प्रशासन था जिसके पास कोई विधायी शक्ति नहीं थी।

1991 के 69वें संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद 239 एए और 239 एबी जोड़ा गया। 239 एए में कहा गया कि नैशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली के लिए एक विधानसभा होगी, जबकि 239 एबी के जरिए मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई। 1993 में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हए।

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चुनाव में बीजेपी ने हासिल की जबरदस्त जीत
1993 के चुनाव को दिल्ली की पहली विधानसभा का चुनाव कहते हैं क्योंकि 1952 में अंतरिम विधानसभा थी। 1993 के चुनाव में कुल 6 राष्ट्रीय दलों, 3 राज्य स्तर की पार्टियां और 41 गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत पार्टियों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे। सभी 70 सीटों पर कुल मिलाकर 1316 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें 59 महिलाएं भी शामिल थीं। चुनाव में 3 महिलाओं ने भी विजय पताका लहराने में कामयाबी हासिल की।

पहले पूर्ण विधानसभा के लिए हुए चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की। उसने 70 में से 49 सीटों पर कब्जा किया। 14 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर जरूर रही, लेकिन बीजेपी से बहुत पीछे। 4 सीटों पर जनता दल ने बाजी मारी और 3 सीटें निर्दलीय के खाते में गईं।

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बीजेपी के मदन लाल खुराना बने मुख्यमंत्री, 5 साल में 3-3 सीएम
चुनाव बाद बीजेपी के मदन लाल खुराना ने दिल्ली के तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उन्होंने मोतीनगर सीट से जीत हासिल की थी। हालांकि, वह मुख्यमंत्री के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। पहली विधानसभा के दौरान ही दिल्ली को 3-3 मुख्यमंत्री मिले।

खुराना 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996 तक अपने पद पर रहे। उनके बाद बीजेपी ने साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। 1998 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने दिल्ली में एक बार फिर मुख्यमंत्री बदला। साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया जो सिर्फ 52 दिनों तक पद पर रहीं।

संयोग से उसके बाद दिल्ली में अबतक बीजपी की सरकार नहीं बन पाई है। उसके बाद दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। बाद में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में 'शीला युग' का अंत किया।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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