गोल्डन ट्राएंगल और साइबर गुलामी... फर्जी नौकरी के जाल में ऐसे फंस रहे भारतीय, बचकर लौटे लोगों की आपबीती

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जागरूकता अभियान और बार-बार चेतावनियों के बावजूद 'डिजिटल अरेस्ट' जैसे क्राइम के लोग शिकार बन रहे हैं. पिछले महीने ही दिल्ली के एक रिटायर इंजीनियर ने ऐसे ही एक स्कैम में फंसकर 10 करोड़ रुपये गंवा दिए. आजतक इन घोटालों की उत्पत्ति की जांच कर रहा है और दक्षिण पूर्व एशिया के कुख्यात नए 'गोल्डन ट्राएंगल' - कंबोडिया, म्यांमार और लाओस में बैठकर रची जा रही डिजिटल अरेस्ट के सिंडिकेट के एक जटिल नेटवर्क का खुलासा कर रहा है.

कुख्यात 'गोल्डन ट्राएंगल', जो कभी ड्रग तस्करी का पर्याय था, अब एक और अधिक कपटी व्यापार का केंद्र बन गया है, जो है साइबर अरेस्ट. हजारों लोग, जिनमें कई भारतीय भी शामिल हैं, फर्जी नौकरी के प्रस्तावों के झांसे में आकर म्यांमार, कंबोडिया और लाओस में चीनी सिंडिकेट द्वारा संचालित क्रूर शोषण के शिकार हो रहे हैं.

साइबर क्राइन और मानव तस्करी का 'गोल्डन ट्राएंगल'

दक्षिण-पूर्व एशिया के चहल-पहल वाले पर्यटन केंद्रों से दूर,समुद्र तट के किनारे बंद पड़े कैसीनो और गेटेड कॉम्प्लेक्स अब इन सिंडिकेट के मुख्यालय के रूप में काम करते हैं. यहां से अपराधी साइबर स्कैम करते हैं और पीड़ितों व अनजाने अपराधियों को अपना शिकार बनाते हैं. दरअसल, भारत, बांग्लादेश, नेपाल और अन्य जगहों से हजारों पुरुषों और महिलाओं को झूठे बहाने से इन क्षेत्रों में तस्करी करके लाया जाता है, अक्सर आकर्षक नौकरी के अवसरों का वादा करके. लेकिन इसके बाद उन्हें साइबर क्राइम करने को मजबूर किया जाता है. इसके लिए उनका शारीरिक शोषण किया जाता है और धमकियां दी जाती हैं.

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आजतक की विशेष जांच टीम ने ऐसे ही अपराधियों के चंगुल से बचकर आए तीन लोगों का पता लगाया और उनके भयावह अनुभवों को रिकॉर्ड करने में कामयाबी हासिल की. इनके नाम हैं- प्रदीप कुशावाहा, नंदन साह और रोहित शर्मा.

प्रदीप कुशवाहा के इंजीनियर से साइबर गुलाम बनने की कहानी

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के इंजीनियरिंग स्नातक प्रदीप कुशावाहा ने अक्टूबर 2023 में थाईलैंड के चियांग माई में एक भारतीय रेस्तरां के मैनेजर के रूप में काम करने के लिए भारत छोड़ दिया. इस उनसे एक आकर्षक नौकरी की पेशकश में 40 प्रतिशत वेतन वृद्धि का वादा किया गया था, लेकिन यह एक जाल साबित हुआ. 12 मई को प्रदीप एक इंटरव्यू के लिए थाईलैंड के माई सोत गए. वहां पहुंचने पर उन्हें अंतिम स्थान के लिए दूसरी गाड़ी में सवार होने के लिए कहा गया. नौकरी के लिए इंटरव्यू के बजाय उन्हें दो हथियारबंद लोगों ने बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया.

कैद में जिंदगी और अत्याचार

प्रदीप को एक बड़े कॉम्प्लेक्स में रखा गया, जहां हर तरफ हथियारबंद गार्ड्स थे. यहां उनका काम था भारतीय और अन्य देशों के लोगों को ऑनलाइन ठगना. प्रदीप ने कहा, 'अगर हम टारगेट पूरा नहीं करते, तो डंडों से पीटा जाता, बिजली के झटके दिए जाते.'

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अपने देशवासियों को ठगने का गिल्ट इतना ज्यादा था कि प्रदीप ने चोरी-छिपे वीडियो रिकॉर्ड किया और अपने परिवार और भारतीय एम्बेसी को भेजा. लेकिन यह साहस महंगा पड़ा. उन्होंने बताया, '1 जुलाई से 20 जुलाई तक रोज मेरी पिटाई हुई. उन्होंने मेरे कमरे की तलाशी ली और वीडियो देखकर मुझे और ज्यादा यातना दी गई.'

आखिरकार परिवार ने 10 लाख रुपये की फिरौती चुकाकर उन्हें छुड़वाया. हालांकि, म्यांमार आर्मी की छापेमारी ने उनकी रिहाई सुनिश्चित की.

नंदन साह को कंबोडिया में मिला धोखा

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के नंदन साह ने कंबोडिया में इलेक्ट्रिशियन की नौकरी के लिए दिल्ली के एक एजेंट को ₹1.3 लाख दिए. लेकिन वहां पहुंचते ही उनकी जिंदगी बदल गई. उन्हें कंबोडिया के स्वाई रियंग प्रांत के एक बड़े परिसर में बंद कर दिया गया. यहां नंदन को एक खास फोन और सिस्टम दिया गया, जिससे उन्हें भारतीयों से संपर्क कर फर्जी निवेश योजनाओं के लिए ठगना था.

पीटकर सड़क पर फेंका

जब नंदन ने मदद के लिए एजेंट से संपर्क किया, तो उसने न सिर्फ धमकी दी बल्कि नंदन को परिसर से बाहर निकालने के लिए पैसे की मांग की. विरोध करने पर नंदन को बुरी तरह पीटा गया और सड़क किनारे मरने के लिए छोड़ दिया गया. नंदन ने कहा, 'मुझे लगा था कि मैं कभी अपने परिवार को नहीं देख पाऊंगा.'

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रोहित शर्मा: IT प्रोफेशनल का बुरा सपना

हिमाचल प्रदेश के रोहित शर्मा, जो पहले चंडीगढ़ में इंफोसिस में काम करते थे, को कंबोडिया में डाटा एंट्री जॉब का झांसा दिया गया. चंडीगढ़ की एक कंपनी 'राइट स्टेप ओवरसीज कंसल्टेंट्स' ने उनसे ₹30,000 प्रोसेसिंग फीस ली थी. लेकिन कंबोडिया पहुंचने पर उन्हें एक साइबर ठगी रैकेट में फंसा दिया गया.

अत्याचार और बंधक बनाने की सजा

रोहित ने बताया, 'अगर मैं उनकी ठगी की टारगेट पूरी नहीं करता, तो मुझे भूखा रखा जाता, डंडों से पीटा जाता और अंधेरे कमरे में बंद कर दिया जाता.' जब उन्होंने कुछ भारतीयों को सचेत करने की कोशिश की, तो माफिया ने उन्हें खिड़की की ग्रिल से जंजीर में बांध दिया और दो दिनों तक जागते रहने की सजा दी.

इन पीड़ितों की कहानियां एक व्यापक संकट की केवल एक झलक हैं. म्यांमार, कंबोडिया और लाओस के हिस्सों को मिलाकर बना "गोल्डन ट्रायंगल" अब संगठित चीनी अपराध सिंडिकेट्स का गढ़ बन चुका है. पीड़ितों को फर्जी नौकरी के ऑफर्स के जरिए फंसाया जाता है और साइबर गुलामी में धकेल दिया जाता है, जहां उन्हें अत्यधिक शोषण और हिंसा का सामना करना पड़ता है.

चौंकाने वाले आंकड़े

  • 2022 से 2024 के बीच विजिटर वीजा पर इस क्षेत्र में गए 30,000 भारतीय अब तक वापस नहीं लौटे हैं.
  • पीड़ितों को गेटेड कॉम्प्लेक्स में बंद कर दिया जाता है, जहां उन्हें 12 घंटे की शिफ्ट में काम करने और लगातार निगरानी में रहने को मजबूर किया जाता है.
  • सिंडिकेट्स पीड़ितों के परिवारों से फिरौती मांगते हैं और साथ ही उनका शोषण जारी रखते हैं.

प्रदीप, नंदन और रोहित की कहानियां यह स्पष्ट करती हैं कि विदेशी देशों में फर्जी नौकरी के ऑफर्स के जाल में फंसने के क्या खतरनाक परिणाम हो सकते हैं. हालांकि ये लोग किसी तरह घर लौटने में सफल रहे, लेकिन कई अन्य अब भी फंसे हुए हैं, गुलामी झेल रहे हैं या लापता हैं.

(गाजीपुर में विनय कुमार सिंह, पश्चिमी चंपारण में अभिषेक, कांगड़ा में अशोक रैना के इनपुट के साथ)
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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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