अडानी मुद्दे पर आज चौथे दिन भी कांग्रेस पार्टी ने संसद में सत्र को बाधित किया. राहुल गांधी केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी को हर रोज संसद में घेर रहे हैं पर अब यह ज्यादा दिन और नहीं चलने वाला है. क्योंकि अब वो अकेले पड़ते जा रहे हैं. इंडिया गठबंधन के दो प्रमुखदलों तृणमूल कांग्रेस और माकपा का तो अब बिल्कुल साथ नहीं मिलने वाला है. समाजवादी पार्टी का रुख भी इस संबंध में बहुत पॉजिटिव नहीं है. टीएमसी और माकपा को अपने राज्यों के विकास की चिंता है तो समाजवादी पार्टी को संभल हिंसा जैसे मुद्दों पर बात न होने की चिंता है. टीएमसी और माकपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वे अडानी के मामले में राहुल गांधी के साथ नहीं हैं. तृणमूल कांग्रेस ने तो यहां तक फैसला ले लिया है कि शीतकालीन सत्र के दौरान ऐसे किसी भी मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देगी जिसे कांग्रेस की ओर से उठाया जाएगा. टीएमसी ने फैसला लिया है कि वह विभिन्न योजनाओं के मद में केंद्र पर बंगाल सरकार बकाया फंड को लेकर संसद में अपनी आवाज उठाएगी. माकपा नेतृत्व वाली केरल सरकार ने बंदरगाह के विकास के लिए अडानी ग्रुप के साथ एक समझौता किया है. इसलिए माकपा को भी खालिस राजनीति के लिए अडानी विरोध समझ में नहीं आ रहा है. समाजवादी पार्टी ने अभी ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है पर यह निश्चित है कि अभी वह अडानी मुद्दे पर खुलकर साथ नहीं है. सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी आखिर क्यों अडानी के खिलाफ जबरन माहौल बनाना चाहते हैं.
1-टीएमसी और माकपा तो खुलकर कर लिया किनारा
टीएमसी ने कांग्रेस से दो टूक में कह दिया है कि अडानी का मुद्दा बहुत हो गया, हम चाहते हैं कि इसके अलावा जनता से सीधे जुड़े मुद्दे भी हैं, जिन्हें हम उठाना चाहते हैं. इस पर टीएमसी नेता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि अडानी मुद्दे पर सदन में विपक्ष द्वारा किए जा रहे हंगामे के कारण कई महत्वपूर्ण मुद्दे प्रभावित हो रहे हैं. सदन में हंगामे के कारण चर्चा नहीं हो पा रही है.बुधवार को पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने संसदीय दल की बैठक में सभी को हिदायत दी कि तृणमूल को अडानी मुद्दे से दूरी बनाकर चलेगी. केरल के मुख्यमंत्री पिनराईविजयन ने गुरुवार को राज्य सरकार और अडानी विझिनजाम पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक समझौते को साइन किया.विजयन ने एक्स पर पोस्ट करके कहा कि यह उपलब्धि समग्र विकास और वैश्विक कनेक्टिविटी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है.
2-सपा-के विरोध से कांग्रेस मुश्किल में पड़ सकती है
अडानी के मुद्दे पर अगर आम आदमी पार्टी को छोड़ दिया जाए तो चाहे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी हो, आरजेडी हो या डीएमके कोई भी अडानी के खिलाफ एक बार भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है. समाजवादी पार्टी ने भी सदन की कार्यवाही को लेकर कांग्रेस आलाकमान को सीधे तौर पर समझाया है. सपा का कहना है कि आप अडानी का मुद्दा तो रोज उठा रहे हैं. लेकिन संभल का मुद्दा हमारे सामने क्यों नहीं उठाया जा रहा है?
दरअसल विपक्ष को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अडानी को मुद्दा बनाने के बाद भी कांग्रेस को कोई सफलता न मिलने से लोगों को लग रहा है कि ये मुद्दा ही बेवजह है. विपक्ष को पता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साल 2017-18 में फ्रांस से राफेल विमान की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाए थे . पर जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. राहुल ने लोकसभा चुनाव 2019 का पूरा कैंपेन राफेल के कथित भ्रष्टाचार पर केंद्रित किया और ‘चौकीदार चोर है’ कैंपेन चलाया लेकिन इसका पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ.
3-अडानी की गिरफ्तारी की मांग कितनी जायज
राहुल गांधी को अडानी मुद्दे पर न जनता से और न ही साथी दलों का जोरदार समर्थन मिल पा रहा है इसके पीछे कई कारण हैं. आम लोग हों या राजनीतिक दलों के नेता सभी को लगता है कि राहुल गांधी अपने तो अडानी के खिलाफ आरोप लगाते रहते हैं जबकि उनकी पार्टी के नेता उसी अडानी का स्वागत करते नहीं थकते हैं. दूसरी बात अडानी पर आज तक कोई ऐसा आरोप नहीं लगा है जिससे ये पता चले कि उससे देश या जनता का नुकसान हुआ है. अमेरिका ने जो आरोप लगाए हैं उससे पब्लिक को ऐसा लगता है कि विदेशों से पैसा लाने के लिए कुछ किया गया होगा. दूसरे इसमें भी अधिकतर कांग्रेस नेता ही फंस रहे हैं इसलिए लोग राहुल की बात पर जल्दी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. शायद यही कारण है कि अडानी की गिरफ्तारी की मांग जनता के बीच कोई मुद्दा नहीं बन पा रहा है.
दूसरे जब जब अडानी पर कोई आरोप लगता है भारत के मिडिल क्लास की कमर टूट जाती है. शेयर ब भारतीय शेयर बाजार को एग्जिट पोल पर रिएक्शन करना था. लेकिन देर रात अडानी ग्रुप से जुड़ी आई खबर ने शेयर बाजार को हिलाकर रख दिया. जब जब ऐसी कोई खबर आती है तो कम से कम 3 करोड़ लोगों का नुकसान होना तय हो जाता है. अब सोचिए कि अगर अडानी की गिरफ्तारी होती है तो भारत की इकॉनमी पर क्या प्रभाव पड़ेगा. कितने लाख करोड़ का नुकसान भारतीय इकॉनमी को हो सकता है. भारत की पूरी अर्थव्यवस्था के हिलने के खतरा बढ़ जाएगा. कई साल तक की मंदी को क्या देश बर्दाश्त कर पाएगा. हो सकता है कि इसे राहुल गांधी न समझ रहें हो पर भारत के नागरिक जरूर समझ रहे हैं.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील महेश जेठमलानी से बात की. राहुल गांधी ने अदाणी मामले में इतनी जल्दी क्यों दिखाई? इसके जवाब में जेठमलानी ने कहा, गौतम अदाणी के खिलाफ अमेरिका में रिश्वत का मामला कंफर्म नहीं है. कोई सबूत नहीं है. राहुल झूठे आरोप लगा रहे हैं. जब वहां रिश्वत देने के कोई सबूत ही नहीं हैं, तो ये बात कहां से आई कि देश में हमारे एजेंसियों को अलर्ट होना चाहिए. अमेरिका में ये इल्जाम नहीं है कि किसी को पैसे खिलाए गए.
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