सुप्रीम कोर्ट ने ED की इतनी घोर बेइज्जती क्यों की, कांग्रेस राज में 1 भी नहीं और बीजेपी शासन में 40 केस में ही दोषी?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को एक बार फिर जमकर खरी-खोटी सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने ईडी की दोषसिद्धि दर कम होने पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जाता है तो क्य

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को एक बार फिर जमकर खरी-खोटी सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने ईडी की दोषसिद्धि दर कम होने पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जाता है तो क्या होगा? मुकदमे के लिए किसी को कब तक इंतजार करना पड़ सकता है?
पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत अर्जी पर यह सुनवाई करते हुए जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने ईडी की गिरफ्तारियों पर सवाल उठाया। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 2 साल से जेल में बंद चटर्जी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अरसे तक बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखने पर यह अहम टिप्पणियां कीं। जानते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय के 2005 में अमल में आने के बाद से 2024 तक कन्विक्शन रेट यानी दोषसिद्धि दर कितनी रही है और एजेंसी कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहां चूक जाती है।

जब सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी से कहा-सबूतों पर ध्यान दें

इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में कम सजा दर का हवाला देते हुए ईडी से गुणवत्तापूर्ण अभियोजन और सबूतों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा था। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा की दर बढ़ाने के लिए ईडी को वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए।
Supreme Court Justice


PMLA के तहत 5,297 केस दर्ज, 40 में ही दोषी करार

इससे पहले केंद्र सरकार ने इसी साल 6 अगस्त को लोकसभा में यह जानकारी दी थी कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत 2014 से 2024 तक कुल 5,297 मामले दर्ज किए गए, जबकि केवल 40 मामलों में सजा हुई और 3 बरी हो गए। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी के एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी थी।

पीठ ने तब क्या कहा था, यह समझने की जरूरत

दिल्ली में एडवोकेट और लीगल एक्सपर्ट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में ईडी को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की थी। उसने ईडी को कहा था कि आपको अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। ऐसे जो भी मामले जहां आपको यह लगता है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, उनमें आपको अदालत में इसे स्थापित करने की जरूरत है।

मौखिक साक्ष्य का कोई मतलब नहीं, साइंटिफिक जांच जरूरी

शिवाजी शुक्ला के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कुछ गवाहों के बयानों और हलफनामों को मौखिक साक्ष्य ही माना है और कहा है कि ऐसे मौखिक साक्ष्य भगवान भरोसे होते हैं। कल को गवाह अपने बयान पर कायम रहेगा या मुकर जाएगा। ऐसे में आपको पहले साइंटिफिक जांच करनी चाहिए।

सरकार ने 1.4 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क या जब्त की

इससे पहले सरकार की ओर से वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने यह जानकारी दी थी कि एजेंसी ने जुलाई, 2024 तक पीएमएलए के तहत 7,083 मामले दर्ज किए और अब तक 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क या जब्त की है।

132 मामले राजनेताओं से संबंधित, सजा सिर्फ 1 में

इसमें से 132 राजनेताओं यानी पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और अन्य राजनीतिक नेताओं या राजनीतिक दलों से जुड़े किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज हैं। सरकार के अनुसार, सबसे अधिक 34 ऐसे मामले (राजनेताओं के खिलाफ) 2022 में दर्ज किए गए। इसके बाद 2020 में 28 और 2021 और 2023 में 26-26 मामले दर्ज किए गए। इनमें से केवल 5 मामलों की सुनवाई पूरी हुई और एक में 2020 में सजा हुई।
ED DATA

यूपीए शासन में कोई दोषी नहीं ठहराया गया

ईडी के आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने पिछले दशक में 2,500 प्रतिशत अधिक लोगों को गिरफ्तार किया। वहीं, 63 व्यक्तियों को मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में दोषी ठहराया गया, जबकि पूर्ववर्ती कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के तहत किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया था।

यूपीए में 1,797 तो एनडीए में 5,155 केस दर्ज

ईडी ने यूपीए सरकार के शासन के दौरान पीएमएलए के तहत 1,797 मनी लॉन्ड्रिंग मामले दर्ज किए, जबकि एनडीए के शासन के दौरान 5,155 ऐसे मामले शुरू किए गए थे। आरोपपत्र तब दायर किए जाते हैं जब एजेंसी किसी मामले में अपनी जांच पूरी कर लेती है और प्रथम दृष्टया किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ आरोप स्थापित करती है। ईडी ने एनडीए के तहत 1,281 ऐसी शिकायतें दर्ज कीं, जबकि यूपीए के तहत केवल 102 शिकायतें दर्ज कीं।
ED


यूपीए में 84 जांच तो एनडीए में 7,300 जांच

इस बीच, जांच एजेंसी ने 2005-2014 के बीच 84 के मुकाबले 2014-2024 के बीच 7,300 खोजें कीं। गिरफ़्तार किए गए लोगों की संख्या में भारी उछाल देखा गया और यह 29 से बढ़कर 755 हो गई। यूपीए सरकार ने किसी भी संपत्ति की जब्ती नहीं देखी, जबकि एजेंसी ने पिछले एक दशक में 15,710 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी।

ईडी का यह दावा, कितना सही

ईडी का दावा है कि उसके कुल मामलों में केवल 2.98 प्रतिशत मामले मौजूदा या पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ हैं, जबकि मनी-लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून के तहत इसकी सजा दर 96 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है। हालांकि, सरकार के आंकड़ों के अनुसार, ईडी के दावे में यह दम नहीं दिखता है। 132 मामलों में महज 1 में ही सजा हो पाई।
ED


17 साल में 5 हजार केस दर्ज, 992 ही अदालत पहुंचे, 23 ही दोषी करार

2022 में वित्त मंत्रालय ने संसद में यह बताया था कि ईडी ने पिछले 17 वर्षों में पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम), 2002 के तहत 5,422 मामले दर्ज किए। इसने 992 मामलों में अदालत में आरोपपत्र दायर किया था, लेकिन केवल 23 मामलों में अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया था। दरअसल, यह कानून बना तो था 2002 में, मगर यह 2005 में ही अमल में आ पाया।

एनडीए के दौर में ईडी के निशाने पर विपक्षी नेता

साल 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच ईडी कर रही है। इनमें से 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं यानी 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ हैं। वहीं, यूपीए के 2004 से लेकर 2014 के दस सालों में 26 नेताओं की जांच ईडी ने की। इनमें से 14 नेता विपक्षी पार्टियों के थे।
Shivaji Shukla Advocate

ईडी की कन्विक्शन रेट इतना कम क्यों है, कहां होती है चूक

शिवाजी शुक्ला के अनुसार, किसी भी जांच एजेंसी को जब राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है तो जाहिर है कि इसमें सुबूतों का अभाव होगा। मीडिया ट्रायल में भले ही एजेंसी को बढ़त मिल जाए, मगर कोर्ट में आकर उसके दावे कई बार फुस्स हो जाते हैं। केस को लेकर दो चीजें अहम होनी चाहिए। पहली तो केस को इस्टैब्लिश करने के लिए मजबूत साक्ष्य। दूसरा, यह कि कोर्ट में अपनी जांच को सही तरीके से पेश करना। कई बार एजेंसियों के मामले कोर्ट में आकर दम तोड़ देते हैं और उन्हें शर्मसार होना पड़ता है। यही वजह है कि उनकी दोषी ठहराने की दर बेहद कम होती है।


पीएमएलए की धारा 45, जिससे ED की बढ़ती है ताकत

एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के अनुसार, पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत की दोहरी शर्तें किसी आरोपी के लिए बेहद सख्त हैं। किसी व्यक्ति को अदालत में यह साबित करना होगा कि वह पहली नजर में अपराध के लिए निर्दोष है। दूसरे, आरोपी जज को यह समझा ले जाए कि वह जमानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा। सबूत का बोझ पूरी तरह से जेल में बंद आरोपी पर है, जो अक्सर शासन से लड़ नहीं पाता है। इन दोनों हालात में किसी आरोपी के लिए पीएमएलए के तहत जमानत पाना तकरीबन असंभव बना देता है। इसी वजह से ईडी की पावर असीमित हो जाया करती थी। जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एसके. कौल की पीठ ने जमानत के लिए दो अतिरिक्त शर्त जोड़ने वाली पीएमएलए की धारा 45(1) को मनमाना बताते हुए नवंबर 2017 में रद्द कर दिया था।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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