राहुल गांधी आज संविधान दिवस के मौके पर तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेस के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.उन्होंने जो भी बातें की उन्हें सुनकर ऐसा लगा कि उन्हें शायद कांग्रेस पार्टी की बिल्कुल भी चिंता नहीं रह गईहै. या तो उनके सलाहकार चुक चुके हैं या वो अपने सलाहकारों का कहना भी अब नहीं मान रहे हैं. लगातार चुनावों में मात खाने के बाद भी वो उन्हीं मुद्दों पर लगे हुए हैं जिन्हें जनता सुनना नहीं चाहती है. आज के भाषण में भी वो लगातार अडानी-अंबानी, संविधान और जाति जनगणना आदि के मुद्दों के ही पीछे पड़े हुए हैं. महाराष्ट्र में बुरी तरह मात खाने के बाद भी सावरकर को टार्गेट करना नहीं छोड़ रहे हैं. हद तो तब हो गई जब माइक बंद होने के बाद वो ऐसा बर्तावकरने लगे जैसे सरकार को नहींअपनी ही पार्टी के लोगों को टार्गेट कर रहे हों.
कांग्रेस की सभा में उनकी माइक बंद करने का कौन साहस करेगा?
राहुल गांधी ने जैसे ही बोलना शुरू किया, तभी उनका माइक बंद हो गया. जिसके बाद पार्टी नेताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी. राहुल गांधी कई बार संसद में अपनी माइक बंद कराने का आरोप लगा चुके हैं. आज जब खुद अपनी ही पार्टी के कार्यक्रम में माइक बंद हो गया तो राहुल गांधी मुस्कुराए और फिर इंतजार करने लगे. माइक के चालू होने के बाद जब राहुल गांधी ने फिर से बोलना शुरू किया तो उन्होंने कहा कि मुझसे कहा गया कि आप जाकर बैठ जाइये. पर मैं नहीं माना, मैं यही खड़ा रहा.इस देश में जो भी दलितऔर पिछड़ों की बात करता है, उसका माइक इसी तरह से बंद हो जाता है. इतना ही नहीं राहुल ने कहा कि चाहे कितने भी माइक बंद कर लो, लेकिन मुझे कोई भी बोलने से नहीं रोक सकता. सवाल उठता है कि राहुल गांधी क्या समझ नहीं पा रहे थे कि यह संसद नहीं है? यह उनकी पार्टी का ही कार्यक्रम है. आखिर दलितो और पिछड़ों पर बात करने से उनकी ही पार्टी में उन्हेंकौन रोकेगा? सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी का इस तरह का भाषण सामान्य माना जाएगा?
राहुल गांधी का जाति राग आज कुछ ज्यादा ही हो गया
अपने हर स्पीच की तरह आज भी राहुल गांधी का फोकस जाति व्यवस्था और दलित पिछड़ों और आदिवासियों पर ही था. पर जातीय जनगणना की मांग फिर दोहराई. उन्होंने कहा कि देश के शीर्ष उद्योगपतियों में कोई भी दलित, पिछड़ा या आदिवासी वर्ग से नहीं है. आज राहुल और अडानी और अंबानी की जाति पूछने लगे. उन्होंने देश के शीर्ष 25 उद्योपतियों का हवाला देते हुए कहा कि इनमें से एक भी उद्योगपति आखिर दलित पिछड़ा और आदिवासी नहीं है. राहुल गांधी कहने लगे अडानी क्या है? क्या दलित? क्या पिछड़ा है? क्या आदिवासी है? राहुल गांधी की ये बातें कुछ लोगों को बहुत अच्छी लग सकती हैं पर वास्तव में यह जहर घोलने का काम है. वैसे अडानी और अंबानी ने अपनी जातिगत श्रेष्ठता के चलते पैसा नहीं बनाया है. अगर पैसा बनाने की एक मात्र योग्यता जातिगत श्रेष्ठता होती तो देश के टॉप उद्योगपतियों में ब्राह्मण और राजपूत भी होते. पर राहुल गांधी को शायद देश की सामाजिक संरचना को ज्ञान ही नहीं होगा. राहुल गांधी के दादा की जाति के लोग देश में कभी सबसे अमीर हुआ करते थे. टाटा उनके दादा फिरोज गांधी कीही जाति के हैं. देश कीअर्थव्यवस्था पर बहुत पहले से ही बनिया, पारसी, पंजाबी खत्री का कब्जा रहा है. बहुत कुछ आज भी वैसा ही है. फिलहाल अब तो देश के कई उद्योगपति पिछड़े और दलित और अल्पसंख्यक जातियों से भी आ रहे हैं. शिव नाडर और अजीम प्रेमजी को इन लोगों में ही शामिल हैं. मुंबई मेंतमाम दलित व्यवासायियों ने अपनी साख बनाई है.
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