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नई दिल्लीः गुजरात की जेल मे बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का छोटा भाई अनमोल बिश्नोई अमेरिका के कैलिफोर्निया में पकड़ा गया है। इस क्राइम सिंडिकेट के कट्टर दुश्मन बंबीहा ग्रुप को ऑपरेट कर रहे घोषित आतंकी अर्शदीप सिंह उर्फ अर्श डाला कनाडा में हिरासत में है। भारत सरकार इन दोनों को डिपोर्ट कराने की प्रक्रिया में लगी है। दरअसल, विदेश से प्रत्यर्पण यानी भारत लाना आसान नहीं है। इसका लंबा प्रोसेस है, जिससे गुजरने और संबंधित देश को भरोसा देकर इन्हें भारत लाया जा सकेगा।देश में आर्थिक अपराध और हत्या जैसे जघन्य जुर्म करने के बाद विदेश भाग चुके मुलजिमों की लंबी फेहरिस्त है। एक अनुमान के मुताबिक, इनकी तादाद 300 के करीब है। भारत में अरबों रुपये का घोटाला करने वाले बिजनेस टायकून से लेकर आतंकी घोषित किए गैंगस्टर तक हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अब तक 180 से ज्यादा भगोड़ों की लोकेशन का पता लगा लिया है, जिनमें करीब 30 बिजनेस टायकून हैं तो करीब 26 नामी गैंगस्टर। अधिकतर भगोड़े ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब और थाईलैंड में ठिकाना बनाए हुए हैं।
50 देशों से हैं प्रत्यर्पण संधि
भारत की अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, यूएई, थाईलैंड, रूस, जर्मनी और फ्रांस समेत दुनिया के 50 देशों से प्रत्यर्पण संधि है, जबकि श्रीलंका, इटली, अर्मेनिया, न्यूजीलैंड और स्वीडन समेत 12 देशों के साथ इसके लिए अरेंजमेंट है। इसके बावजूद एक लंबी कानूनी प्रक्रिया है, जिसके बाद भी इन भगोड़ों को भारत लाना आसान नहीं है। भारत सरकार ने इन देशों से अपने यहां के 100 से ज्यादा भगोड़ों के प्रत्यर्पण की गुहार लगा रखी है, जो काफी समय से पेंडिंग चल रही है। सबसे ज्यादा अमेरिका, यूएई, कनाडा और ब्रिटेन में हैं।
प्रत्यर्पण क्यों है मुश्किल
एक्स्ट्राडिशन ट्रीटी यानी प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक, एक देश का अपराधी किसी दूसरे देश में चला जाता है तो उसे वापस भेजना होता है। अगर कोई देश अपने भगोड़े के प्रत्यर्पण की अपील करता है तो अपराधी उस देश के कोर्ट में अपील कर देता है या फिर शरण मांगता है। वह दलील देता है कि अपने देश की जेल में जान का खतरा है या रास्ते में ही उसकी हत्या हो सकती है। कुछ मुलजिम देश का मौसम उसकी सेहत के अनुकूल नहीं होने की दलील तक देते हैं।
देनी पड़ती है गारंटी
एक्सपर्ट बताते हैं कि भारतीय पुलिस और जांच एजेंसियों की दुनिया में अच्छी छवि नहीं है। दूसरे देश भारत में प्रत्यर्पण से पहले यह पुख्ता कर लेना चाहते हैं कि निष्पक्ष ट्रायल होगा, पूछताछ के दौरान प्रताड़ित नहीं किया जाएगा, जेल की हालत अच्छी हो और मृत्युदंड नहीं दिया जाए। भारत इनकी गारंटी देने में नाकाम रहता है तो प्रत्यर्पण में अड़चन आती है। प्रत्यर्पण को लेकर हर देश का अपना कानून है और उसकी अपनी प्रक्रिया है। इंटरनैशनल कानून के तहत राजनीतिक, सैन्य और धार्मिक अपराधी का प्रत्यर्पण नहीं हो सकता है।
अपराधी देते हैं ऐसी दलील
ब्रिटेन से डिपोर्ट कराना सबसे मुश्किल है। भारतीय जेलों में खराब मेडिकल सुविधा और भीड़भाड़ होना वहां के मानवाधिकार और प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ है। गोवा में 150 बच्चों से यौन शोषण का आरोपी ब्रिटिश नागरिक रेमंड वार्ले गोवा की जेल की खराब हालत को जान के लिए खतरा बताया था। विजय माल्या और नीरव मोदी ने भी जेलों की हालत का हवाला दिया था। संगीतकार नदीम सैफी ने कहा कि आरोप सही मंशा से नहीं लगाए गए थे और न्याय के हित में नहीं थे। इसे आधार मान लिया गया।
भारत को देना पड़ा भरोसा
अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम को पुर्तगाल से 2005 में, जबकि रवि पुजारी को 2020 में सेनेगल से इंटरपोल की मदद लेकर डिपोर्ट कराया गया था। अबु सलेम के मामले में भारत ने पुर्तगाल को भरोसा दिया कि उसे मौत की सजा नहीं दी जाएगी। बॉलिवुड एक्ट्रेस शाहरुख खान को धमकी देने वाले डॉन रवि पुजारी के मामले में भारत को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी। भारत के अधिकतर गैंगस्टर फर्जी नाम से ही विदेश गए हैं। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन को 2015 से इंडोनेशिया से डिपोर्ट करवाया गया था।
दिल्ली-एनसीआर गैंगस्टर, जो कराए डिपोर्ट
भगोड़ों का लाया गया भारत
नोटः इससे पहले 2002 से 2018 तक 66 भगोड़ों का विदेश से प्रत्यर्पण कराया गया था।
50 देशों से हैं प्रत्यर्पण संधि
भारत की अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, यूएई, थाईलैंड, रूस, जर्मनी और फ्रांस समेत दुनिया के 50 देशों से प्रत्यर्पण संधि है, जबकि श्रीलंका, इटली, अर्मेनिया, न्यूजीलैंड और स्वीडन समेत 12 देशों के साथ इसके लिए अरेंजमेंट है। इसके बावजूद एक लंबी कानूनी प्रक्रिया है, जिसके बाद भी इन भगोड़ों को भारत लाना आसान नहीं है। भारत सरकार ने इन देशों से अपने यहां के 100 से ज्यादा भगोड़ों के प्रत्यर्पण की गुहार लगा रखी है, जो काफी समय से पेंडिंग चल रही है। सबसे ज्यादा अमेरिका, यूएई, कनाडा और ब्रिटेन में हैं।
प्रत्यर्पण क्यों है मुश्किल
एक्स्ट्राडिशन ट्रीटी यानी प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक, एक देश का अपराधी किसी दूसरे देश में चला जाता है तो उसे वापस भेजना होता है। अगर कोई देश अपने भगोड़े के प्रत्यर्पण की अपील करता है तो अपराधी उस देश के कोर्ट में अपील कर देता है या फिर शरण मांगता है। वह दलील देता है कि अपने देश की जेल में जान का खतरा है या रास्ते में ही उसकी हत्या हो सकती है। कुछ मुलजिम देश का मौसम उसकी सेहत के अनुकूल नहीं होने की दलील तक देते हैं।
देनी पड़ती है गारंटी
एक्सपर्ट बताते हैं कि भारतीय पुलिस और जांच एजेंसियों की दुनिया में अच्छी छवि नहीं है। दूसरे देश भारत में प्रत्यर्पण से पहले यह पुख्ता कर लेना चाहते हैं कि निष्पक्ष ट्रायल होगा, पूछताछ के दौरान प्रताड़ित नहीं किया जाएगा, जेल की हालत अच्छी हो और मृत्युदंड नहीं दिया जाए। भारत इनकी गारंटी देने में नाकाम रहता है तो प्रत्यर्पण में अड़चन आती है। प्रत्यर्पण को लेकर हर देश का अपना कानून है और उसकी अपनी प्रक्रिया है। इंटरनैशनल कानून के तहत राजनीतिक, सैन्य और धार्मिक अपराधी का प्रत्यर्पण नहीं हो सकता है।
अपराधी देते हैं ऐसी दलील
ब्रिटेन से डिपोर्ट कराना सबसे मुश्किल है। भारतीय जेलों में खराब मेडिकल सुविधा और भीड़भाड़ होना वहां के मानवाधिकार और प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ है। गोवा में 150 बच्चों से यौन शोषण का आरोपी ब्रिटिश नागरिक रेमंड वार्ले गोवा की जेल की खराब हालत को जान के लिए खतरा बताया था। विजय माल्या और नीरव मोदी ने भी जेलों की हालत का हवाला दिया था। संगीतकार नदीम सैफी ने कहा कि आरोप सही मंशा से नहीं लगाए गए थे और न्याय के हित में नहीं थे। इसे आधार मान लिया गया।
भारत को देना पड़ा भरोसा
अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम को पुर्तगाल से 2005 में, जबकि रवि पुजारी को 2020 में सेनेगल से इंटरपोल की मदद लेकर डिपोर्ट कराया गया था। अबु सलेम के मामले में भारत ने पुर्तगाल को भरोसा दिया कि उसे मौत की सजा नहीं दी जाएगी। बॉलिवुड एक्ट्रेस शाहरुख खान को धमकी देने वाले डॉन रवि पुजारी के मामले में भारत को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी। भारत के अधिकतर गैंगस्टर फर्जी नाम से ही विदेश गए हैं। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन को 2015 से इंडोनेशिया से डिपोर्ट करवाया गया था।
दिल्ली-एनसीआर गैंगस्टर, जो कराए डिपोर्ट
नाम | देश | साल |
---|---|---|
कौशल चौधरी | दुबई | 2019 |
संजीव चावला | लंदन | 2020 |
राजू बसोदी | थाईलैंड | 2020 |
विकास लगरपुरिया | दुबई | 2022 |
वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा | थाईलैंड | 2022 |
दीपक पहल उर्फ बॉक्सर | मेक्सिको | 2023 |
सचिन बिश्नोई | अजरबेजान | 2023 |
विक्रम बराड़ | यूएई | 2023 |
राकेश उर्फ काला खैरमपुरिया | थाईलैंड | 2024 |
भगोड़ों का लाया गया भारत
साल | प्रत्यर्पण |
---|---|
2024 | 19 |
2023 | 29 |
2022 | 27 |
2021 | 18 |
नोटः इससे पहले 2002 से 2018 तक 66 भगोड़ों का विदेश से प्रत्यर्पण कराया गया था।
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