संविधान की प्रस्तावना भी बदली जा सकती है, सुप्रीम कोर्ट ने संसद के अधिकार को लेकर क्या कहा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द जोड़ने वाले 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संविधान में संशोधन का अधिकार स

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द जोड़ने वाले 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि संविधान में संशोधन का अधिकार संसद के पास है और संविधान में संशोधन की संसद की शक्ति प्रस्तावना पर भी लागू होती है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि संविधान की प्रस्तावना भी बदली जा सकती है। देश में लंबे समय से इस मुद्दे पर बहस चल रही है। कई नेता जो ये कहते हैं कि संविधान की मूल भावना को नहीं बदला जा सकता है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दे दिया है।

प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार संसद को

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं, लेकिन आज की सुनवाई के बाद एक पुरानी बहस जरूर खत्म होने वाली है। जब भी प्रस्तावना में संशोधन की बात होती है, तो कई नेताओं और समाज का एक वर्ग कहता है कि संविधान की मूल भावना को नहीं बदला जा सकता। इसे लेकर लंबी बहस सालों से चलती आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि संसद को संविधान की प्रस्तावना को संशोधित करने का अधिकार है, और संशोधन की वैधता पर अब सवाल नहीं उठाए जा सकते।

प्रस्तावना भी संविधान का हिस्सा

शीर्ष अदालत ने कहा कि संसद को संविधान में संशोधन का जो अधिकार मिला हुआ है है वह प्रस्तावना पर भी लागू होता है। प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसे अलग नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि इतने सालों बाद इस मुद्दे को उठाने का क्या औचित्य है। अदालत ने कहा कि इतने सालों बाद संशोधन प्रक्रिया को अमान्य नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि संविधान को अपनाने की तिथि अनुच्छेद 368 के तहत सरकार की शक्ति को कम नहीं करेगी और इसके अलावा इसे चुनौती भी नहीं दी जा रही है। उसने कहा कि संसद की संशोधन करने की शक्ति प्रस्तावना पर भी लागू होती है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है?’

पहले भी कई बार हो चुकी है न्यायिक समीक्षा

इससे पहले, पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि संबंधित संशोधन (42वां संशोधन) की इस अदालत द्वारा कई बार न्यायिक समीक्षा की गई है। संसद ने हस्तक्षेप किया है। बेंच के अनुसार, यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय (आपातकाल में) संसद ने जो कुछ भी किया वह सब निरर्थक था।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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