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नई दिल्ली: इंडियन नेवी को इसी साल नीलगिरी क्लास का पहला गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट नीलगिरी मिल जाएगा। इसका वजह 6670 टन है और इसमें आठ ब्रह्मोस मिसाइलें लगी हैं। इसके साथ ही अगले कुछ महीने में रूस में बन रहा तलवार क्लास के तीसरे बैच का पहला गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट भी नेवी में शामिल हो जाएगा। दो फ्रिगेट के साथ ही नेवी को अगले कुछ महीने में एक डिस्ट्रॉयर भी मिलेगा।विशाखापट्टनम क्लास का चौथा और आखिरी गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर इंडियन नेवी में कमिशन होगा। यह डिस्ट्रॉयर 7400 टन वजन का है और इसमें ब्रह्मोस मिसाइल लगी हैं। जो लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल है। इसमें 32 बराक मिसाइल भी हैं, जो 100 किलोमीटर दूर तक मार कर सकती हैं। साथ ही दुश्मन की सबमरीन से निपटने के लिए रॉकेट और टारपीडो भी हैं।
दोनों ही हैं वॉरशिप
फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर दोनों ही वॉरशिप हैं। लेकिन फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर में साइज का तो फर्क है ही, इसके साथ ही क्षमता का भी फर्क है। फ्रिगेट साइज में कुछ छोटा होता है और फ्रिगेट के मुकाबले डिस्ट्रॉयर करीब डेढ़ गुना बढ़ा होता है। फ्रिगेट किसी एक तरह के रोल के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है और बाकी रोल में इसका इस्तेमाल रक्षात्मक भूमिका में करते हैं। जबकि डिस्ट्रॉयर में एक साथ कई रोल निभाने की क्षमता है। इसे एंटी सबमरीन, एंटी शिप या फिर एंटी एयरक्राफ्ट के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यह सभी में उतना ही सटीकता से अपना रोल निभाता है।
कोरवेट साइज में फ्रिगेट से भी छोटा होता है। इससे मल्टीपल टास्क नहीं कर सकते। जैसे एक कोरवेट अगर एंटी सबमरीन है तो उसमे एंटी एयर की कैपिसिटी नहीं होगी। फ्रिगेट अगर एंटी सबमरीन है तो वह कुछ हद तक एंटी एयर का भी काम कर सकता है, लेकिन उस तरह नहीं जिस तरह डिस्ट्रॉयर काम कर सकता है। डिस्ट्रॉयर एक साथ सभी टास्क में पूरी तरह फिट होता है। साइज के हिसाब से सबसे छोटे कोरवेट होते हैं, फिर फ्रिगेट और सबसे बड़े डिस्ट्रॉयर। नेवी के पास कमोर्ता क्लास, कोरा क्लास और खुखरी क्लास कोरवेट हैं। कमोर्ता क्लास कोरवेट पहले एंटी सबमरीन वॉरफेयर स्टेल्थ (जो दुश्मन की नजर से बच सकते हैं) कोरवेट हैं, जिसे इंडियन नेवी ने प्रोजेक्ट-28 के तहत डिजाइन किया। इसमें 90 पर्सेंट स्वदेशी कंटेंट है।
दोनों ही हैं वॉरशिप
फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर दोनों ही वॉरशिप हैं। लेकिन फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर में साइज का तो फर्क है ही, इसके साथ ही क्षमता का भी फर्क है। फ्रिगेट साइज में कुछ छोटा होता है और फ्रिगेट के मुकाबले डिस्ट्रॉयर करीब डेढ़ गुना बढ़ा होता है। फ्रिगेट किसी एक तरह के रोल के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है और बाकी रोल में इसका इस्तेमाल रक्षात्मक भूमिका में करते हैं। जबकि डिस्ट्रॉयर में एक साथ कई रोल निभाने की क्षमता है। इसे एंटी सबमरीन, एंटी शिप या फिर एंटी एयरक्राफ्ट के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यह सभी में उतना ही सटीकता से अपना रोल निभाता है।कोरवेट साइज में फ्रिगेट से भी छोटा होता है। इससे मल्टीपल टास्क नहीं कर सकते। जैसे एक कोरवेट अगर एंटी सबमरीन है तो उसमे एंटी एयर की कैपिसिटी नहीं होगी। फ्रिगेट अगर एंटी सबमरीन है तो वह कुछ हद तक एंटी एयर का भी काम कर सकता है, लेकिन उस तरह नहीं जिस तरह डिस्ट्रॉयर काम कर सकता है। डिस्ट्रॉयर एक साथ सभी टास्क में पूरी तरह फिट होता है। साइज के हिसाब से सबसे छोटे कोरवेट होते हैं, फिर फ्रिगेट और सबसे बड़े डिस्ट्रॉयर। नेवी के पास कमोर्ता क्लास, कोरा क्लास और खुखरी क्लास कोरवेट हैं। कमोर्ता क्लास कोरवेट पहले एंटी सबमरीन वॉरफेयर स्टेल्थ (जो दुश्मन की नजर से बच सकते हैं) कोरवेट हैं, जिसे इंडियन नेवी ने प्रोजेक्ट-28 के तहत डिजाइन किया। इसमें 90 पर्सेंट स्वदेशी कंटेंट है।
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