केन्या (Kenya) ने भारत के अडानी ग्रुप के साथ दो अहम समझौते रद्द कर दिए, जिससे उसके बदलते अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों पर सवाल उठने लगे हैं. पहला रद्द किए गए सौदे की कीमत 700 मिलियन डॉलर थी, उसमें पावर ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण शामिल था. दूसरे सौदे की कीमत 1.8 बिलियन डॉलर थी, जो एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए था.
इन कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए कॉम्पटीशन करने वाली एक चीनी कंपनी थी. केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो की दो महीने पहले बीजिंग यात्रा एक अहम मोड़ साबित हुई. इस यात्रा के दौरान रुटो ने चीन के साथ आकर्षक सौदे किए, जिन्हें केन्या की मीडिया में बीजिंग की ओर से "उपहार" के रूप में बड़े स्तर पर सराहा गया था.
विश्लेषकों का कहना है कि केन्या के द्वारा रद्दीकरण की वजह चीन समर्थित अमेरिकी डीप-स्टेट संस्थाओं द्वारा गढ़े गए भू-राजनीतिक नैरेटिव्स थे. यह कदम केन्या के चीन के साथ गठबंधन को और मजबूत करता दिख रहा है, जिससे अफ्रीका में बढ़ते चीनी प्रभाव और अमेरिका के लिए इसके पीछे छिपे फायदों के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं.
क्या ग्लोबल टारगेट पर है अडानी ग्रुप?
समझौते रद्द करना अडानी ग्रुप को टारगेट करने वाली कोशिशों के नेचर में फिट बैठता है. अडानी ग्रुप पर लगे आरोप चीने के फायदों, वैश्विक गैर सरकारी संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के गठबंधन की ओर इशारा करते हैं, जो घरेलू और इंटरनेशनल लेवल पर अडानी के प्रोजेक्ट्स को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं.
जुलाई 2024 में, सीनियर वकील महेश जेठमलानी ने आरोप लगाया था कि चीन से संबंध रखने वाले एक बिजनेसमेन ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट का आदेश दिया था, जिसके कारण जनवरी 2023 में अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई थी. जेठमलानी ने दावा किया कि चीनी जासूस अनला चेंग और उनके पति मार्क किंगडन ने अडानी पर हानिकारक रिपोर्ट तैयार करने के लिए हिंडनबर्ग को काम पर रखा था.
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भारत के लिए क्या मायने?
भारत के लिए एक अहम सवाल यह है कि उसकी लीडरशिप रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ग्लोबल प्रोजेक्ट्स में अडानी की भागीदारी की आलोचना क्यों करता है, खासकर तब जब वे सीधे चीनी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं. इस तरह से समझौते रद्द होना, न केवल भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर करता है, बल्कि अफ्रीका जैसे इलाकों में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को भी बढ़ावा देते हैं.
केन्या में हुए घटनाक्रम बांग्लादेश जैसे अन्य इलाकों में देखे गए इस तरह के पैटर्न की तरफ इशारा करते हैं, जहां अमेरिका के द्वारा उठाए गए कदम से अप्रत्यक्ष रूप से भारत के हितों पर प्रभाव पड़ा. इन अनुबंधों के रद्द होने के बाद केन्या के सांसदों के जश्न के लहजे से ग्लोबल स्टैटेजिक रेस में चीन की अहम जीत का इशारा मिलता है.
भारत के लिए, यह चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने और विदेशों में अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों की रक्षा करने की एक और चुनौती है.
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